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परिक्खेवि-परिघग्घर
पाइअसहमहण्णवो परिक्खेवि वि [परिक्षेपिन] तिरस्कार गमन करना। २ चारों ओर से वेष्टन करना। परिगुण सक [परि + गुणय् ] परिगणन करनेवाला (उत्त ११, ८)।
३ व्याप्त करना । संकृ. परिगंतु (सण)। करना, गिनती करना। परिगुणहु (अप) परिखंध दे] काहार, कहार, जलादि-शिप नसिमना गया. पर्याय (पिग)। वाहक, नोकर (दे २, २७)।
'परिगमणं पज्जारो अणेगकरणंगुणोत्ति परिगुणण न [परिगुणन] स्वाध्याय (प्रोघ परिखज्ज सक [परि + खर्ज. ] खुजाना,
एगत्था' (सम्म १०६)। २ समन्ताद् गमन ६२)। खुजलाना। कवक 'परिखज्जमाणमत्थयदेसो' (निचू ३)।
परिगुव अक[ परि + गुप्] १ व्याकुल (उप ६८६ टि)।
परिगमिर वि [परिगन्] जानेवाला (सरण)। होना। २ सक. सतत भ्रमण करना। वकृ. परिखण न [परीक्षण परीक्षा-करण, परीक्षा लेने, परखने या जाँच करने का काम (पव परिगय वि [परिगत] १ परिवेष्टितः 'मण
परिगुवंत (राज)। स्सवग्गुरापरिगए' (उवा गा ६६), 'बहुपरि
परिगुव सक परि + गु] शब्द करना । परिखविय वि [परिक्षपित ] परिक्षीणः | यणपरिगया' (सम्मत्त २१७)। २ व्याप्त
वकृ. परिगुवंत (राज)। 'गुरुप्रट्टज्माणपरिखवियसरीरो' (महा)। __ 'विसपरिगयाहि दाढाहि' (उवा)।
परिगुव्व अक [ परि + गुप ] १ व्याकुल परिखाम बि [परिक्षाम] अति दुर्बल, विशेष परिगर पुं [परिकर] परिवार; 'सेसाण तु
होना। २ सक. सतत भ्रमण करना। वकृ. कृश (गा १९६)। हरियव्वं परिंगरविहवकालमादीणि णाउं'
परिगुव्वंत (ठा १०-पत्र ५००)। परिखित्त देखो परिक्खित्त (सग)। (धर्मसं ६२६)।
परिगू सक [परि+गू] शब्द करना । परिखिव देखो परिक्खिव। परिखिवइ परिगरिय वि [परिकरित देखो परिअरिय | कवकृ. परिगुव्वंत (ठा १०-पत्र ५००)। (भवि); 'राया तं परिखिवई दोहग्गवईण (सुपा १२७)।
परिगेण्ह) सक [परि + ग्रह] ग्रहण मज्झम्मि' (सम्मत्त २१७ चेइय ६५५)। परिगल अक [ परि + गल] १ गल जाना, परिग्गह । करना, स्वीकार करना (प्रामा)। परिखिविय देखो परिखित्त (सण)। क्षीण होना। २ झरना, टपकना। परिगलइ वक. पारग्गहमाण (प्राचा १, ८, ३, १)। परिखुहिय वि [परिक्षुब्ध] अतिशय क्षोभ | (काल)। वकृ. पारगलन (पउम ११२, संकृ. परिगिज्झिय, परिघेत्तूण (राजा पि को प्राप्त (भवि)। १५; तंदु ४४)।
५८६)। हेकृ. परिघेत्तुं (पि ५७६)। कृ. परिखेइय वि [परिखेदित] विशेष खिन्न परिगलिय वि [परिगलित] गला हुआ, परिगिज्झ, परिघेतव्व, परिघेत्तव्य (उत्त किया हुआ (सण)। परिक्षीण (कुप्र ७; महा; सुपा ८७; ३६२) ।
१, ४३; सुपा ३३; सूत्र २, १, ४८, पि परिखेद (शौ) पुं [परिखेद] विशेष खेद परिगलिर वि [परिगलित] गल जानेवाला,
५७०)। (स्वप्न १०, ८०)। क्षीण होनेवाला (सण)।
परिग्गय देखो परिगय (दस ६, २, ८)। परिखेय सक [ परि + खेदय् ] अतिशय
परिगह देखो परिगेण्ड । संकृ. परिगहिअ परिग्गह पुं [परिग्रह] १ ग्रहण, स्वीकार । खिन्न करना। परिखेवइ (सण)। संकृ. (मा ४८)।
२ धन आदि का संग्रह (पएह १, ५; प्रौप)। परिखेइवि (अप) (सण)। परिगह देखो परिग्गह (कुमा)।
३ ममत्व, मूर्छा (ठा १)। ४ ममत्व-पूर्वक परिखेविय (अप) देखो परिखिविय (सण)।
जिसका संग्रह किया जाय वह (प्राचा, ठा परिगहिय देखो परिग्गहिय (बृह १)। परिगंतु देखो परिगम।
३, १; धर्म २)। "वेरमण न [विरमण] परिगा सक [परि + ग] गान करना। परिगण सक [परि + गणय ] १ गणना
परिग्रह से निवृत्ति (ठा १, परह २, ५) । करना। २ चिन्तन करना, विचार करना।
कवकृ. परिगिजमाण (णाया १, १)। "वित वि [°वत् ] परिग्रह-युक्त (प्राचा वकृ-'एस थक्का मम गमणस्स त्ति परि
HAIRA नि परित परिगालण न [परिगालन] गालन, छानन पि ३९६) । गणंतेण विएणविनो राया' (महा)। (पएह १, १)।
परिग्गद्दि वि [परिग्रहिन] परिग्रह-युक्त परिगप्पण न [परिकल्पन] कल्पना (धर्मसं परिगिजमाण देखो परिगा।
(सून १, ६)। ६८१)। परिगिझ सोपा
परिग्गहिय वि [परिगृहीत] स्वीकृत (उवाः परिगप्पणा स्त्री [परिकल्पना] ऊपर देखो परिगिझिय ।
औप)। (धर्मसं ३०५)।
परिगिण्ह देखो परिगेण्ड । परिगिरहइ (पाचू परिग्ग या स्त्री [पारिग्रहिकी] परिग्रहपरिगप्पिय वि[परिकल्पित] जिसकी कल्पना । १)। वकृ. परिगिण्हंत, परिगिण्हमाण सम्बन्धी क्रिया (ठा २, १; नव १७)। की गई हो वह (स ११३; धर्मसं ६६६)। (सूम २, १, ४४. ठा ७–पत्र ३८३)। परिघग्घर वि [परिघधर] बैठी हुई देखो परिकप्पिय ।
परिगिला प्रक [परि + ग्लै] ग्लान होना। (आवाज); 'हरिणो जयइ चिरं विहयसहपरिपरिगम सक [परि + गम् ] १ जाना, वकृ. परिगिलायमाण (आचा)।
घग्घरा वारणी' (गउड)।
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