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परिणामों' (विसे ε२३; सुर १३, १२४), | वि पट्टा कार्य सरीरपरिकम्मरी एवं (कुप्र २७१ कप्प उव) । २ संस्कार का कारण-भूत शास्त्र (दि) । ३ गणितविशेष । ४ संख्यान-विशेष एक तरह की गणना (ठा १०-पत्र ४९१) ( पत्र १२२) ।
निष्पादन
'खेत्तमरूवं
परिकम्मणा स्त्री. ऊपर देखो निच्चं न तस्स परिकम्मणा नय विरणासो' (विसे ६२४ सम्म ५४० संबोध ५३: उपपं ३४) । परिकमिव
1
[परिमित ] परिकर्मविशिष्ट संस्कारित (प)। परिकर देखो परिअर परिकर (पिन) परिकलन [परिकलन] उपभोगः 'अमरपरिकलम कमल भूमि यसरों' (सुपा ३ ) | परिकलिन [परिकलित] १ युक्त, सहित ( सिरि ३८१ ) । २ व्याप्त ( सम्मत्त २१५) । ३ प्राप्त; 'अंजलिपरिक लियजलं व गलइ इह जो (धर्मनि २५) ।
परिचवला श्री [परिकलना ] भत
'हरियपरितापूगी (पा३ ।
=
परिकविल वि [परिकपिल ] सर्वतोभाव से
कपिलवल(गड) |
परिकविस वि [परिकपिश] अतिशय रंगवाला (गउड) |
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पाइस मण्णवो
परिकित्तिअ वि [ परिकीर्त्तित] व्यावणित, श्लाघित ( ११०) | परिकिन्न [परिकीर्ण] १ परिवृत, वेष्टित, 'नियपरियर परिकिन्नो' (धर्मवि ५४ ) । २ व्याप्त (सुर १, ५६ ) । परिचित वि [परिक्लान्त]] विशेष खिन्न (उप १६४ टी) ।
परिकिलेस सक [ परि + क्लेशय् ] दुःखी करना, हैरान करना परिभग) । परिकिलेसंति । संकृ. परिकिलेसित्ता (भ)। परिसि[परिश] दुःख बा हैरानी ( सू २ २ ५५; श्रप स ६७५; धर्मसं १००४) ।
|
परिकीतिर वि[परिकीडिन] अतिशय मोड़ा करनेवाला (स परिकुंठिया वि (रिले १०३) । परिकुलि वि [परिकुटिल] विशेष (सुर १, १
[ परिकुण्ठित ] जड़ीभूत
परिकुद्ध वि [ परिक्रुद्ध ] अत्यन्त कुपित (धर्मवि १२४) ।
परिकुवियनि [परिकुपित] प्रति कुछ
क्रुद्ध
( रणाया १, ८ उक सरण) ।
परिकोमल वि [ परिकोमल ] सर्वथा कोमल
( गउड ) ।
विपरित [पराकारत] पराक्रम-युक्त (सूम वि १, ३, ४, १५) ।
परिक्कम सक [ परि + क्रम् ] १ पाँव से चलना । २ समीप में जाना । ३ पराभव करना । ४ श्रक. पराक्रम करना । परिक्कमदि ५५ ) रुक्मि परिक्रमंत
(४६) परिसि] ( परिक्रमेश) (४१) (नाट) कृ. परिकमिय
(गाया है, ५ - पत्र १०३ ) । संकृ. परिक्कम्म (सूम १, ४, १, २ ) ।
परिक्कम देखो परिक्कम पराक्रम (गाया १, १; सरः उत्त १८, २४) ।
परिकरण न [परिक' ] खींचाव ( गउड ) । परिकह सक [ परि + कथय् ] प्ररूपण करना, कहना। परिवइ (उत्रा), परिकहंतु ( कम्म ६, ७५ )। कर्म. परिकहिज्जइ (पि ५४३) । हे. परिकहेउं ( प ) । परिक्षण [परिकधन] प्राध्यान, प्रणपण (सुपा २) |
परिणा स्त्री [ परिकथना ] ऊपर देखो ( श्रावम) 1
परिका स्त्री [परिकथा] १ बातचीत । २ (१२६)।
परिक्कहिअ देखो परिकहिय ( सुपा २०८ ) । परिकदिय[परिकथित ] प्ररूपित, परिकाम देखो परिक्रमपरि कम् + ।
आख्यात (महा) ।
परिकिण देखो परिकिन्नः 'चेडियाचक्कवालपरिका (उमा)।
परिक्कामदि (पि ४८१ त्रि ८७) । परिक्ख सफ [ परि + ईक्ष ]
=
परखना,
1 परीक्षा करना । परिक्खइ, परिक्खए, परिक्खेति,
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परिकम्मणा - परिक्लेव
परिक्खउ (भवि महाः वज्जा १५८ स ४५७) । वकृ. परिक्खतः परिक्खमाण ( श्रोघ ८० भा; श्रा १४) । संक. परिक्खिय (ब) परिवियन्त्र (काल) । परिक्ख वि [परीक्षक] परीक्षा करनेवाला (सुपा ४२७; श्रा १४) ।
परिक्ख वि [परिक्षत] पातजसको घाव हुआ हो वह (से ८ ७३)। परिक्स [परिक्षय] १ क्रमशः हानि पुं 'बहुलपक्खचंदस्स जोरहापरिक्खओ विन' ( चारु ८) । २ क्षय, नाश (गउड ) । परिक्खण न [ परीक्षण ] परीक्षा ( स ४६६६ कप्पू, सुपा ४४६ गाया १, ७ भवि ) । परिक्खणा श्री [परीक्षण ] परीक्षा (पउम ६१, ३३) । परिक्खमाण देखो परिक्ख । परिक्खल प्रक [ परि + स्खल ] स्खलित होना । वकृ. परिक्खलंत ( से ४, १७) । परिक्यवि [परिस्थति] स्थलना
(३०६) ।
परिक्खा स्त्री [परीक्षा ] परख, जाँच (नाटपरिक्लाइअअवि [६] परिनी (प) मालवि २२) । [दे] परिक्षीण षड् । परिक्खाम वि [ परिक्षाम ] श्रतिशयश
(उत्तर ७२३ नाट - रत्ना ३ ) ।
परिक्सि वि [परिक्षिन ] परखनेवाला, परीक्षक (श्रा १४) । परिक्सि वि [परिक्षिप्त ] १ पेटित पेरा हुआ (मौप पात्र से १,५२६ वसु ) । २ सर्वथा क्षिप्त (श्रम) । ३ चारों ओर से व्याप्त (राय) ।
परिविवि [परीक्षित] जिसकी परीक्षा की गई हो वह (प्रासू १५ ) परिविस्य
[परि + क्षिप्] न करना । २ तिरस्कार करना । ३ व्याप्त करना । ४ फेंकना 'एयं खु जरामरणं परिक्खिव वागुराव मयजूह' (तंदु ३३; जीवस १८६ ) । कम. परिक्खिवीग्रामो (पि ३१६) । परिक्खिविय वि [ परिक्षित ] फेंका हुआ (हम्मीर ३२) ।
परिक्खेव वि [परिक्षेप] घेरा, परिधि (भग सम ५६ : कस औप ) |
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