________________
परिअत्ता - परिकम्मण
के बन्ध या उदय को रोक कर स्वयं बन्ध या उदय को प्राप्त होती है (पंच ३, १४; ३, ४३ कम्म ५, १ टी) ।
परित्ता स्त्री [परिवर्ता] ऊपर देखो (कम्म ५, १) ।
परिअत्तिअ वि [परिवर्तित ] १ मोड़ा हु 'वालिप्रयं परियत्ति (पान)। २ देखो परिट्ट (भवि ) ।
परिअर सक [ परि + चर ] सेवा करना । वकृ. परिअरंत (नाट - - शकु १५८ ) । परिअर वि [] लीन, निमग्न (दे ६, २४) । परिअर [परिकर ] १ कटि-कन्धनः 'सन्नद्धबद्धपरियर भडेहि' (भवि ) । २ परिवार; 'किरणकिलामियपरियरभुयं गविसजल रणधूमतिमिरेहिं ' ( गउड चेइय ९४ ) ।
परिअरपुं [परिचर] सेवक, भृत्यः अणु जिंतं रक्खापरिरधुप्रधवल चामरणि हे ' ( गउड) ।
परिअरण न परिचरण ] सेवा (संबोध
३६) ।
परिअरणा स्त्री [परिचरणा ] सेवा ( सम्मत २१५)।
परिअर वि [परिकरित, परिवृत] १ परिवार-युक्त; ' हयगयर ह जोहसुहडपरियरिमो' ( महा भवि सरण) । २ परिवेष्टित; 'तम्रो तं समायरिणऊरण सुइसुहं तारण गेयं समंतत्रो परियरिया सव्वलोगेणं' (महा; सिरि १२८२ ) । परिअल सक [ गम् ] जाना, गमन करना । परिअल (हे ४, १६२ ) ।
परिअल पुंस्त्री [दे ] थाल, थलिया, भोजनपरिअलि ) पात्र (भवि दे ६, १२) । परिअलिअवि [गत ] गया हुआ (कुमा) । परिअल देखो परिअल । परिमल्लइ (हे ४,
१६२) । संकृ. परिअल्लिऊण (कुमा) । परिआरअ वि [ परिचारक ] सेवक, भृत्य (चारु ५३) । स्त्री. 'रिआ ( श्रभि १६९ ) । परिल सक [ वेष्टय् ] वेष्टन करना, लपेटना । परिश्रालेइ (हे ४, ५१) । परिआल वि [] परिवृत, परिवेष्टितः 'सो जयइ जामइल्लायमाण
मुलालिवलयपरिश्रालं ।
Jain Education International
पाइअसहम
लच्छिनिवेसंतेउरवई व
जो वह वरणमा' (गउड) । परिआल देखो परिवार (गाया १, ५ ठा ४, २० औप ) ।
[ष्ट ] लपेटा हुआ, बेढ़ा परिओस पुं [परितोष ] श्रानन्द, संतोष, खुशी ( से ११, ३; गा ६८ २०६६ स ६ सुपा ३७० ) ।
परिओस पुं [दे. परिद्वेष ] विशेष द्वेष (भवि) ।
परिओसिय वि [परितोषित ] संतुष्ट किया हुआ (से १३, २५ भवि ) । परित देखो परी = परि + इ । परिकंख सक [ परि + काङ्क्ष ] १ विशेष अभिलाषा करना । २ प्रतीक्षा करना । परिकखए ( उत्त ७, २) ।
परिकंद पुं [परिकन्द ] श्राक्रन्द, चिल्लाहट ( हम्मीर ३० ) ।
परिकंपि वि [परिकम्पिन् ] श्रतिशय कँपानेवाला (गउड) |
हुमा (कुमा पा) ।
परिआव देखो परिताव ( दस १, २, १४) । परिविअ सक [ पर्या + पा ] पीना । परिप्राविएजा ( सू २, १, ४९ ) । परिआसमंत (अप) अ [ पर्यासमन्तात् ] चारों ओर से (भवि ) ।
परिइसक [परि + इ] पर्यटन करना । परि ति (उत्त२७, १३) ।
परिण[ि परिकीर्ण ] व्याप्त (सम्मत १५६) ।
परिइद (शौ) वि [परिचित ] परिचय-विशिष्ट, ज्ञात, पहचाना हुआ (अभि २४५) । परिडंब सक [परि + चुम्ब] चुम्बन करना । परिरंबई (भवि ) ।
परिडंबण न [परिचुम्बन ] सर्वतः ब (गा २२ हास्य १३४ ) । परिबणा श्री [ परिचुम्बना ] ऊपर देखो; ‘गंडपरिउंबणावुलइचंग ण पुणो चिराइस्स' (गा २० ) ।
परिवि [पर्युज्झित ] सर्वथा व्यक्त (सण) ।
परिउट्ठ वि [परितुष्ट] विशेष तुष्ट (स ७३४)। परित्थवि [दे] प्रोषित, प्रवास में गया हुम्रा (दे ६, १३) । परिसिवि [पर्युषित] बासी, ठण्ढा, भाफ निकला हुआ (भोजन) (दे १, ३७) । परिऊढ वि [दे. परिगूढ ] क्षाम, कृश, पतला; 'उप्फुल्लिमा खेल्लउ मा
णं वारेहि होउ परिऊढा । मा जहणभार गरुई पुरिसाती लिम्मिहि' (गा १९६) । परिकरण न [ परिपूरण] परिपूर्ति (नाटशकु८) ।
परिएस देखो परिवेस = परि + विष् । कवकृ. परिएसिज्जमाण (प्राचा २, १, २, १) ।
५५१
|परिएस देखो परिवेस = परिवेश ( स ३१२ ) । परिओस सक [ परि + तोषय् ] संतुष्ट करना, खुशी करना । परिश्रोसर ( भवि (सण) ।
For Personal & Private Use Only
परिकपिर वि [परिकम्पिट] विशेष काँपनेवाला (सण) ।
परिच्छिवि [ परिकक्षित ] परिगृहीत (राय) ।
परिकलिअ वि [ दे ] एकत्र पिण्डीकृत (पिंड २३९) ।
परिकढ सक [ परि + कृष् ] १ पार्श्व भाग में खींचना। २ प्रारम्भ करना । वक्र. परि कडूढे माण (राज)। संकृ. परिकड्ढिऊण ( पंचव २ ) ।
परिकणि वि [ परिकठिन ] श्रत्यन्त कठिन (गउड) ।
परिकप्प सक [ परि + कल्पयू ] १ निष्पादन करना । २ कल्पना करना । परिकप्पयंति (सूत्र १, ७, १३) । संकृ परिकल्पिऊण (चेइय १४ ) । परिकप्पिय वि [परिकल्पित ] छिन्न, काटा हुमा ( परह १, ३ ) । देखो परिगप्पिय । परिकब्बुर वि [ परिकर्बुर] विशेष कबरा - चितकबरा (गउड ) | परिक्रम्म } न [परिकर्मन्] १ गुण-विशेष परिक्रमण का प्रधान, संस्कार करण 'परिक्रम्मं किरियाए वत्थूणं गुणविसेस
www.jainelibrary.org