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परसुहत्त-पराहुत्त
पाइअसहमहण्णवो परसुहत्त पुं[दे] वृक्ष, पेड़, दरख्त (दे ६, पराणग वि [परकीय] अन्य का, दूसरे का पराय प्रक[प्र+राज् ] विशेष शोभना । २६)।
'जत्थ हिरएणसुवरणं हत्थेण पराणगंपि नो वकृ. परायंत (कप्प)। परस्सर पुंस्त्री [दे.पराशर] गेंडा, पशु-विशेष छिप्पे (गच्छ २, ५०)।
पराय [पराग] १ धूली, रज; 'रेणू पंसू (पएण १ राज) । स्त्री. 'री (पएण ११)।
पराणिय वि [पराणीत] पहुँचा हुप्रा (भवि)। रमो परामो य' (पास) । २ पुष्प-रज (कुमा; परहुत्त वि [पराभूत] पराजित, हराया गया
पराणी सक [परा + णी] पहुँचाना । पराणए गउड)। (पउम ६१, ८)।
(भवि)। पराणेमि (स २३४); 'जइ भणसि | पराय । वि पिरकीय] पर-संबन्धी, इतर परा अ [परा] इन अर्थों का सूचक अव्यय
ता निमेसमित्तण तुमं तायमंदिरं पराणेमि'
परायग) से संबन्ध रखनेवाला; 'नो अप्पणा १ आभिमुख्य, संमुखता । २ त्याग । ३
पराया गुरुणो कयावि हंति सुद्धाणं' (कुप्र ६०)। धर्षण । ४ प्राधान्य, मुख्यता। ५ विक्रम । परानयण न [पराणयन] पहुँचानाः नियम- |
(सट्ठि १०५ हे ४, ३७६; भग ८; ५)। ६ गति, गमन । ७ भङ्ग । ८ अनादर । ६
गिणीपरानयणे का लजा, अवि य ऊसवो परायण वि [परायण] तत्पर (कम्म १, तिरस्कार । १० प्रत्यावर्तन (हे २, २१७)।
एस' (अ ७२८ टी)। ११ भृश, अत्यन्त (ठा ३, २,श्रा २३)।
पराभव सक [परा + भू] हराना । कवकृ. परा स्त्री [दे. परा] तृण-विशेष (पएह २,
परारि अपरारि] आगामी तीसरा वर्ष ३-पत्र १२३)।
(प्रासू ११०; वै २)। पराभविजंत, परब्भवमाण (उप ३२० टी; णाया १, २, १८)।
पराल देखो पलाल (प्रासू १३८) । पराइ सक [परा + जि] हराना, पराजय करना । संकृ. पराइइत्ता (सूअनि १६६)। पराभव पुं [पराभव] पराजय, हार (विपा
पराव (अप) सक [प्र + आप्] प्राप्त
करना । परावहिं (हे ४, ४४२) । १,१)। पराइअ वि [पराजित] पराभव-प्राप्त (पउम २, ८६ औपः स ६३४ सुर ६, २५, १३,
पराभविअ वि [पराभूत] अभिभूत, हराया। परावत्त प्रक [परा + वृत् ] १ बदलना; १७१; उत्त ३२, १२)। हुप्रा (धर्मवि ६८)।
पलटना । २ पीछे लौटना । परावत्तइ (उवर पराइअ (अप) वि [परागत] गया हुआ पराम? देखो परामुट्ठ (पउम ६८, ७३)।
८८) । वकृ. परावत्तमाण (राज)। (भवि)।
परामरिस सक [परा+ मृश १ विचार परावत्त सक[परा + वतेय ] १ फिराना । पराइण देखो पराजिण । पराइणइ (पि करना, विवेचन करना। २ स्पर्श करना।
२ प्रावृत्ति करना । परावत्तंति (पव ७१), ४७३; भग)। परामरिसइ (भवि) । वकृ. परामरिसंत
परावत्तेसि (मोह ४७)। संकृ. 'तो सागरेण पराई स्त्रो [परकीया] इतर से संबन्ध रखने(भवि) । संकृ. परामरिसिअ (नाट-मृच्छ ।
भरिणयं अरे परावत्तिऊण निययरह (कुप्र वाली, वह नायिका जो परपुरुष से प्रेम करे ८७)।
३७८)। (हे ४, ३५०; ३६७ ) । देखो पराय = परामरिस पुं [परामर्श] १ विवेचन, विचार
परावत्त पुं [परावर्त] परिवर्तन, हेरफेर, परकीय। (प्रामा) । २ युक्ति, उपत्ति । ३ स्पर्श । ४
हेराफेरी (स ६२, उप पृ. २७; महा)। पराकम देखो परक्कम (सूत्र २, १, ६)।
न्याय- शास्त्रोक्त व्याप्ति-विशिष्ट रूप से पक्ष का परावात्त वि[परावतिन् । परिवर्तन करनेपराकय वि [पराकृत] निराकृत, निरस्त ज्ञान (हे २, १०५)।
वाला; 'वेसपरावत्तिणी गुलिया' (महा) । (अज्झ ३०)।
परामिट्ट। वि [परामृष्ट] १ विचारित, परावत्ति स्त्री [परावृत्ति परिवर्तन, हेराफेरी पराकर सक [परा + कृ] निराकरण करना।
परामुट्ठ विवेचित। २ स्पृष्ट, छया हुआ (उप १०३१ टो)। पराकरोदि (शौ) (नाट-चैत ३५) ।
(नाट-मृच्छ ३३; हे १ १३१; स १००; परावत्तिय वि [परावर्तित] परिवर्तित, पराजय पुं [पराजय] परिभव, अभिभव, कुप्र ५१)।
बदला हुआ (महा)। हार (राज)।
परामुस सक [परा + मृश] १ स्पर्श परासर पुं[पराशर] १ पशु-विशेष (राज) । पराजय । सक [परा + जि] पराजय
करना, छूना । २ विचार करना, विवेचन २ ऋषि-विशेष (प्रौपः गा ८६२)। पराजिण करना, हराना । भूका. पराज
करना । ३ पाच्छादित करना। ४ पोंछना। परासु वि [परासु] प्राण-रहित, मृत (श्रा यित्था (पि ५१७) । भवि. पराजिणिस्सइ
५ लोप करना। परामुसइ (कस)। कर्म. १४ धर्मसं ६७)। (पि ५२१) । संकृ. पराजिणित्ता (ठा ४, २)। हेकृ. पराजिणित्तए (भग ७, ६)।
'सूरो परामुसिजइ णाभिमुहुक्खित्तधूलिहि' पराव देखो पराभव = पराभव (गुण ६)। पराजिणिअ) देखो पराइअ पराजित (उवर १२३)। वकृ. 'निय उत्तरिज्जेण
पराहुत्त वि [दे. पराङ्मुख विमुख, मुंहपराजिय (उप पृ ५२ महा)। नयरलाई परामुसंतेण भणियं' (कुप्र ६६)।
फिरा (ग २४५; से १०, ६४, उप पृ३८८ पराण देखो पाण = प्राण (नाट-चैत ५४; कवकृ. परामुसिज्जमाण (स ३४६)।
अोष ५१४, वज्जा २६), 'महविणयपराहुत्तो' पि १३२)।
परामुसिय देखो परामुद्र (महा; पाम)। (पउम ३३, ७४, सुख २,१७)।
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