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पाइअसद्दमहण्णवो
परग-परसु
परग न [दे. परक] १ तृण-विशेष, जिससे फूल गूथे जाते हैं (प्राचा २, २, ३, २०; सूत्र २, २, ७)। २ धान्य-विशेष (सूप २, २,११)। परग वि [पारग] परग तृण का बना हुआ (प्राचा २, १, ११, ३, २, २, ३, १४)। परगासय वि [प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला (तंदु ४६)। परग्घ वि [पराघ] महर्ष, महँगा, बहुमूल्य (दस ७, ४३)। परज (अप) सक [परा + जि] पराजय करना, हराना । परज्जइ (भवि) । परजिय (अप) वि [पराजित पराजय
प्राप्त, हराया हुआ (भवि)। परज्म वि [दे] १ पर-वश, पराधीन, परतन्त्रः 'जेसंखयाः तुच्छपरप्पवाई ते पेज्जदोसारणगया परज्झा' (उत्त ४, १३ बृह ४)। २ पुंन. परतन्त्रता, पराधीनता (ठा १०पत्र ५०५, भग ७, ८-पत्र ३१४)। परट्ट देखो परिअट्ट = परिवर्त (जीवस २५२; पव १६२; कम्म ५, ५६)। परडा स्त्री [दे] सर्प-विशेष (दे ६, ५), 'उच्चारं कुणमाणो अपाणदेसम्मि गरुयपरडाए, दट्ठो पीडाए मो' (सुपा ६२०)। परदारिअ [पारदारिक] परस्त्री-लम्पट
(पउम १०५, १०७)। परद्ध वि [दे] १ पीड़ित, दुःखित (दे ६, | ७०; पानसुर ७, ४, १६, १४४, उप पृ २२०; महा)। २ पतित। ३ भीरु, डरपोक (दे ६, ७०)। ४ व्याप्तः 'जोइ परद्धा जीवा न दोसगुणदसिणो होंति' (धम्मो १४)। परप्पर देखो परोप्पर (पि ३११; नाटमालती १६८)। परब्भवमाण देखो पराभव = परा + भू। परभत्त वि [दे] भीरु, डरपोक (षड् )। परभाअ पुं[दे] सुरत, मैथुन (दे ६, २७)। परम वि [परम] १ उत्कृष्ट, सर्वाधिक (सूत्र १, ६; जी ३७)। २ उत्तम, सर्वोत्तम, श्रेष्ठ (पंचव ४ धर्म ३; कुमा)। ३ प्रत्यर्थ, अत्यन्त (पएह १, ३, भगः प्रौप)। ४ प्रधान मुख्य (प्राचा; दस ६, ३)। ५ पुं.
मोक्ष, मुक्ति। ६ संयम, चारित्र (आचा: परमाहम्मिय वि [परमधार्मिक] सुख का सूत्र १, ६)। ७ न. सुख (दस ४)। ८ | अभिलाषी (दस ४, १)। लगातार पांच दिनों का उपवास (संबोध | परमिट्टि [परमेष्ठिन] १ ब्रह्मा, चतुरानन ५८) । "ह पुं[१] १ सत्य पदार्थ, (पामा सम्मत्त ७८) । २ अहंन्, सिद्ध, वास्तविक चीज: 'अयं परमट्टे सेसे अण?' प्राचार्य, उपाध्याय और मुनि (सुपा ६५; (भगः धर्म १)। २ मोक्ष, मुक्ति (उत्त १८ प्राप६८; गण ६ निसा २०)। पएह १, ३)। ३ संयम, चारित्र (सूत्र १, परमुक्त वि [परामुक्त] परित्यक्त (पउम ७१, ६)। ४ पुंन. देखो नीचे त्थ = थि; 'पर- २६)। मट्ठनिटिअट्ठा' (पडि, धर्म २)। °ण देखो। परमुवगारि । वि [परमोपकारिन्] बड़ा 'न्न (सम १५१)। त्थ पुन [र्थ] १
परमुवयारि । उपकार करनेवाला (सुर २, तत्त्व, सत्य, 'तत्तं परमत्थं (पाय), 'परम- ४२, २, ३७)। स्थदो' (अभि६१)। २-४ देखो °ट परमुह देखो परम्मुह (से २,१६)। (सुपा २४. ११०; सण प्रासू १६४; महा)।
परमेट्टि देखो परमिट्ठि (कुमाः भविः चेइय स्थ न [स्त्र] सर्वोत्तम हथियार, अमोघ अस्त्र (से १. १)। दंसि कि [दशिन्]
परमेसर पुं [ परमेश्वर ] सर्वेश्वयं-संपन्न, १ मोक्ष देखनेवाला। २ मोक्ष-मार्ग का
परमात्मा (सम्मत्त १४४; भवि)। जानकार (प्राचा)। न न [न] १ खीर,
7 खीर परम्मुह वि [पराङ्मुख विमुख, मुँह-फिरा, दुग्ध-प्रधान मिष्ट भोजन (सुपा ३६०)। २
उदासीन (णाया १, २, काप्र ७२३; गा एक दिन का उपवास (संबोध ५.)। पय
६८८)। न [पद] मोक्ष, निर्वाण, मुक्ति (पानः
परय न [परक] प्राधिक्य, अतिशय (उत्त भवि, प्रजि ४०; पंचा १४)। 'प्प j
३४, १४)। [त्मन् ] सर्वोत्तम प्रात्मा, परमेश्वर
परलोइअ वि [पारलौकिक] जन्मान्तर(कुमा; सुपा ८३, रयण ४३)। "प्पय संबन्धी (प्राचाः सम ११६; परह १, ५)। देखो पय (सुपा १२७)। °प्पय देखो परवाय वि [प्ररवाज] १ प्रकृष्ट शब्द से
प्प (भवि) । पया स्त्री [त्मता] मुक्तिः | प्रेरणा करनेवाला । २ पुं. सारथि, रथ मोक्ष: 'सेलेसिं पारुहिउं अरिकेसरिसूरी होकनेवाला (श्रा २३)। परमप्पयं पत्तो' (सुपा १२७)। बोधिसत्त
परवाय वि [प्रारवाय] १ श्रेष्ठ गाना गानेपुं[बोधिसत्त्व] परमाहत, अहंन देव का
वाला । २ पृ. उत्तम गवैया (श्रा २३) । परम भक्त ( मोह ३)। संखिज्ज न
परवाय पुं [प्ररपाज नाज (अन्न) भरने का [संख्येय संख्या-विशेष (कम्म ४, ७१)। सोमणस्सिय वि [सौमनस्यित]
कोठा, वह घर जहाँ नाज संगृहीत किया सर्वोत्तम मनवाला, संतुष्ट मनवाला (प्रौप;
जाता है, कोठार, बखार (था २३)। कप्प) । सोमणस्सिय वि ['सौमनस्यिक]
परवाया स्त्री [प्ररवाप्] गिरि-नदी, पहाड़ी वही अर्थ (प्रौप कप्प)। हेला स्त्री [हेला]
नदी (श्रा २३)। उत्कृष्ट तिरस्कार (सुपा ४७०)। उ न
परस (अप) देखो फास = स्पर्श (पिंगः भवि)। [युस्] १ लम्बा आयुष्य, बड़ी उमर
'मणि पुं [मणि] रत्न-विशेष, जिसके (पउम १०, ७)। २ जीवित काल, उमर
स्पर्श से लोहा सुवर्ण होता है (पिंग)। ( विपा १,१)। णु [णु] सर्व-सूक्ष्म परसण्ण (अप) देखो पसण्ण (पिंग)। वस्तु (भगः गउड)। हम्मिय [°धार्मिक] | परसु पुं [परशु] अस्त्र-विशेष, परश्वध, कुठार, असुर-विशेष, नारक जीवों को दुःख देनेवाले कुल्हाड़ी (भग ६, ३३, प्रासू ६६२ देवों की एक जाति (सम २८)। होहिअ काल)। राम पुं[राम] जमदग्नि ऋषि वि [धिोवधिक अवधिज्ञान-विशेषवाला, का पुत्र, जिसने इक्कीस बार निःक्षत्रिय पृथिवी ज्ञानि-विशेष (भग)।
की थी (कुमा; पि २०८)।
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