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ना करने
पार उतरनाख कायरात्रि
३९८ पाइअसहमहण्णवो
णिण्हवग-णिय कर्म. णिएहवीशदि ( शौ) (नाट-रत्ना | णित्थणण न [निस्तनन] विजय-सूचक ध्वनि मए तीए' (सुर ६, ८२, उप ९९७ साधं ३६)। वकृ.णिण्हवंत, णिण्हवेमाण (उप (सुर २, २३३)। २११ टीः सुर ३, २०१)।
| णित्थर सक [निर् + तृ] पार करना, णिदरिसण देखो णिदंसण (उवः उप ३८४)। णिण्हवग वि [निहावक] अपलाप करने- पार उतरना। रिपत्थरेइ (सुपा ४४६); णिदरिसिम वि [निदर्शित] उपदर्शित, बतवाला (ोघ ४८ भा)।
'णित्थरति खलु कायरावि पायनिज्जामय- लाया हुआ (धर्मसं १०००)। णिण्हवण न [निह्नवन] अपलाप (विपा १, गुणेण महएणव' ( स १६३ ) । कवकृ. णिदा स्त्री [दे] १ वेदना-विशेष, ज्ञान-युक्त २; उव)।
णित्थरिजंत (राज)। कृ. णित्थरियव्व वेदना (भग १६, ५)। २ जानते हुए भी णिण्हवण वि [निह्नवन] अपलाप-कर्ता (णाया १, ३, सुपा १२६)।
की जाती प्राणि-हिंसा (पिंड)। (संबोध ५)।
णित्थरण न [निस्तरण] पार-गमन, पार- णिदाण देखो णिआण (विपा १, १; अंत णिण्हविद देखो णिण्हुविद (नाट-शकु प्राप्ति (ठा ४, ४उप १३४ टी)। १५; नाट–वेणी ३३)। १२६)।
णित्थरिअ देखो णित्थिण्ण (उप १३४ टी)। णिदाया देखो णिदा (पएण ३५)। णिण्हुय वि [निहनुत] अपलपित (सुपा
णित्थाण वि[निःस्थान] स्थान-रहित, स्थान
|णिदाह ( [निदाघ] १ धर्म, घाम, उष्ण । २६८)। भ्रष्ट (णाया १, १८)।
२ ग्रीष्म-काल, गरमी का मौसिम । ३ जेठ णिण्हुव देखो णिण्हव = नि + हू । कर्म.
मास (आव ५)। णिएहुविज्जंति (पि ३३०)। जित्थाम वि [निःस्थामन्] निबल, कमजोर,
णिदाह [निदाघ] तीसरा नरक का एक णिण्हुविद (शौ) वि [नि + हत] अप
मन्द (पान गउड सुपा ४८६) ।
नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)। लपित (पि ३३०)। णित्थार सक [निर् + तारय] १ पार
णिदाह ' [निदाह] असाधारण दाह (प्राव णितिय देखो णिच (प्राचा: ठा १०)। उतारना, तारना । २ बचाना, छुटकारा णितुडिअ वि [नितुडित] टूटा हुआ, छिन्न देना। णित्थारसु (काल)।
णिदेस पु [निदेश] प्राज्ञा, हुकुम (कुप्र (मच्चु ५४)।
णित्थार पुं[निस्तार] १ छुटकारा, मुक्ति। ४२६)। णित्त देखो णेत्त (पाम; सुपा २६१, लहुअ २ बचाव, रक्षा । ३ उद्धार (गाया १,६ णिदेसिअ वि [निदेशित] १ प्रदर्शित । २
टी-पत्र १६६ सुर २, ५१, ७, २०१ उक्त, कथित (पउम ५, १४५) । णित्तम वि [निस्तमस् ] १ अन्धकार-रहित । सुपा २६६)।
णिदोच्च न [दे] १ भय का प्रभाव । २ २ अज्ञान-रहित (अजि ८)। णित्थारग वि [निस्तारक] पार जानेवाला,
| स्वास्थ्य, तंदुरुस्ती (पव २६८) । णित्तल वि [दे] अनिवृत्त (भग १५)। पार उतरनेवाला (स १८३)।
णिभाण न [निद्राध्यान] निद्रा में होता णित्ति (अप) देखो णाइ (भवि) । णित्थारणा स्त्री [निस्तारण] पार-प्रापण,
ध्यान, दुर्ध्यान-विशेष (माउ)। णित्तिस वि [निस्त्रिंश] निर्दय, करुणा-हीन
पार पहुँचाना (जं ३)।
णिबंद वि [निर्द्वन्द्व] द्वन्द्व-रहित, क्लेश-वजित (सुपा ३१५)।
णिस्थारिय वि [निस्तारित] बचाया हुआ, (सुपा ४५५)। णित्तिरडि वि [दे] निरन्तर, अव्यवहित (दे | रक्षित, उद्धृत (भग; सुपा ४४६)। णिभ वि [निर्दम्भ] दम्भ-रहित, कपट-रहित ४,४०)।
णिस्थिण्ण) विनिस्तीर्ण]१ उत्तीर्ण, पार- (सुपा १४७) । णित्तिरडिअ वि [दे] त्रुटित, टूटा हुमा (दे णित्थिन्न प्राप्त णिथिएणो समुई (सणिद्दडी (अप) देखो णिहा = निद्रा (पि ५६६)।
३६७)। २ जिसको पार किया हो वह, णिहडढ वि [निदग्ध] १ जलाया हुआ, णित्तुप्प वि[दे] स्नेह-रहित, घृत आदि से
"रिणत्थिना आवया गरुई (सुर८.८९) भस्म किया हुआ (सुर १४, २६ अंत १५)। वजित (बृह १)। 'निथिएणभवसमुद्दों' (स १३६)।
२ पुं. नृप-विशेष (पउम ३२,२२)। ३ रत्नणित्तुल वि [निस्तुल] १ निरुपम, असाधारण णिदंस सक [नि + दर्शय ] १ उदाहरण प्रभा-नामक नरक-पृथिवी का एक नरकावास (उप पृ ५३)। २ क्रिवि. असाधारण रूप बतलाना, दृष्टान्त दिखाना। २ दिखाना। (ठा ६)। मज्म पुं[मध्य] नरकावाससे 'परणहा नित्तुलं मरसि' (सुपा ३४५)। रिणदंसेइ (पिंग )। वकृ. णिदंसंत (सुपा विशेष, एक नरक-प्रदेश (ठा ६)। वित्त पुं णित्तुस वि [निस्तुष] तुष-रहित, भूसा | ८६)।
[वर्त] नरकावास-विशेष (ठा ६)। से रहित, विशुद्ध (पएह २, ४, उप १७९ णिदसण न [निदर्शन] १ उदाहरण, दृष्टान्त | सिह पुं [वशिष्ट] नरक-प्रदेश-विशेष टी)।
(अभि २०३) । २ दिखाना (ठा १०)। । (ठा ६)। णित्तेय वि [निस्तेजस् ] तेज-रहित (णाया णिसिअ वि [निदर्शित प्रदर्शित, दिखाया णिदय वि [निर्दय] दया-हीन, करुणा-रहित,
हुमाः ‘एवं विचितिऊणं निर्दसिमो नियकरो । निष्ठुर (पएह १, १७ गउड)।
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