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पाइअसद्दमहण्णवो
उज्जाणी-उज्मर उज्जाणी स्त्री [औद्यानी] गोष्ठी, गोठ को जानना। २ वि. उक्त मनो-ज्ञानवाला ७२८ टी)। ३ पुं. सूर्य, रवि । ४ एक प्रसिद्ध (सुपा ४८५) V
(पएह २, १; औप)। वालिया स्त्री जैनाचार्य (गु ७; सार्ध ६२)1 उज्जायण न [उद्यायन] गोत्र-विशेष (सुज्ज [°वालिका] नदी-विशेष, जिसके किनारे उज्जोअय वि [उद्योतक] १ प्रकाशक । १०, १ टी)।
भगवान महावीर को केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ २ प्रभावक, उन्नति करनेवाला (उर ८, १२) ।। उज्जाल सक [उत् + ज्वालय् ] उज्ज्वल था (कप्पः स ४३२) । सुत्त पुं[सूत्र] उज्जोइंत देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय ।। करना, विशेष निर्मल करना। संकृ. उज्जा
वर्तमान वस्तु को ही माननेवाला नय-विशेष उज्जोइय वि [उयोतित प्रकाशित (सम लियं (श्रावक ३७६)।
(ठा ७)। सुय पुं[श्रुत] देखो पूर्वोक्त १५३; सुपा २०५)। उज्जाल सक [उद् + ज्वालय ] १ उजाला
अर्थः ‘पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुनो गयविही उज्जोएमाण देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय।। करना। २ जलाना। संकृ. उज्जालिय,
मुणेअब्बो' (अण)। हत्थ पुं [हस्त] उज्जोमिआ स्त्री [दे] रश्मि, रस्सी (दे १, उज्जालित्ता (दस ५, प्राचा)। दाहिना हाथ (ोघ ५११)।
११५) उज्जालणन [उज्ज्वालन] जलाना (दस ५) उज्जु पुऋजु संयम (सूम १, १३, ७) उज्जोव देखो उज्जोअ = उद् + द्योतय । वकृ. उज्जालग न [उज्ज्वालन] उज्ज्वल करना उम्जुअवि ऋजुक] ऊपर दखा (माचार | उज्जाव
उज्जुअ वि [ऋजुक] ऊपर देखो (प्राचाः | उज्जोवंत, उज्जोवयंत, उज्जोवेंत, उज्जो(सिरि ६८०) । कुमा ; गा १५६ ३५२)।
वेमाण (पउम २१, १५; स २०७ ६३१; उज्जालय वि [उज्ज्वालक आग सुलगाने- उज्जुआ इअ वि [ऋजुकारित सरल किया । ठा) IV वाला (सूअ १, ७, ५) । हुमा (से १३, २०)।
उज्जोवण न [उद्योतन ] प्रकाशन (स उज्जालिअ वि [उज्ज्वालित] जलाया हुआ, उज्जुग देखो उज्जुअ (पि ५७) ।
६३१) ।। सुलगाया हुआ (सुर ६, ११७) ।।
उज्जुत्त वि [उद्युक्त] उद्यमी, प्रयत्नशील उज्जोविय देखो उज्जोइय (कप्प; णाया १, उज्जावण न [उद्यापन] व्रत का समाप्ति(सुर ४, १५: पात्र)
१; परह १, ४ पउम , १६०; स ३६) ।। कार्य (प्रारू)।
उज्जुरिअ वि [दे] १ क्षीण, नट। २ शुष्क, उज्झ सक [उज्झ ] त्याग करना, छोड़ उज्जाविय विदे] विकासित (सण)। सूखा (दे १, ११२)
देना । उज्झइ (महा) । कवकृ. उभिजमाण उज्जित देखो उज्जयंत (गाया १, १६);
उज्जूढ वि [उद्व्यूढ] धारण किया हुआ (उप २११ टी)। संकृ. उझिअ, उज्झिउं, (संबोध ५३)।
उज्झिऊण (अभि ६० पि ५७६; राज)। 'उज्जिंतसेलसिहरे, दिक्खा
उज्जेणग पुं [उज्जयनक] श्रावक-विशेष, हेकृ. उज्झित्तए (गाया १,८) । कृ.उभिनाणं निसीहिया जस्स । एक उपासक का नाम (प्राचू ४)।
यव्व (उप ५९७ टी)। तं धम्मचक्कट्टि,
उज्जेणी देखो उजइणी (महा; काप्र ३३३) उज्झ पुं[उज्झ, उद्ध्य] उपाध्याय, पाठक ___अरिट्ठनेमि नमसामि' (पडि)।
उज्जोअ सक [उद् + द्योतय] प्रकाश (विसे ३१९८) . उज्जीरिअ वि [दे] निर्भसिंत, अपमानित, करना, उद्योत करना । उज्जोएइ (महा)। वकृ. उज्झवि [उज्झक] त्याग करनेवाला, तिरस्कृत (दे १,११२)।
उन्जोयंत, उज्जोइंत, उज्जोयमाण, उज्जो- उज्झग ) छाड़नवाला (सूत्र १, ३; उज्जीवण न [उज्जीवन] १ पुनर्जीवन, | एमाण (णाया १, १; सुपा ४७; सुर ८, जिलाना; 'तस्सपभावो एसो कुमरस्सुज्जीवणे ८७; सुपा २४२, जीव ३)
उज्मण न [उज्झन परित्याग (उप १७६% जागो' (सुपा ५०४) । २ उद्दीपन (सण)। उज्जोअj [उद्योग] प्रयत्न, उद्यम (पउम |
पृ ४०३ पउम १,६०; औप)V उज्जीविय वि [उज्जीवित] पुनर्जीवित,
उज्झणया। स्त्री [उज्झना] परित्याग (उप ३, १२६; सूक्त ३६ पुप्फ २८, २९) ।
उज्झणा ५६३ आव ४)जिलाया हुआ (सुपा २७०)।
उज्जोअ [उयोत] १ प्रकाश, उजेला। उज्झणि वि [दे] विक्रीत, बेचा हुआ। २ उज्जु वि [ऋजु] सरल, निष्कपट, सीधा गर वि [°कर] प्रकाशक; 'लोगस्स उज्जो- | निम्नीकृत, नीचा किया हुआ (षड् )IV (औप; आचा)। °कड़ वि [कृत] १ अगरे, धम्मतित्थयरे जिणे (पडिपानः हे उज्झमण न [दे] पलायन, भागना (दे १, निष्कपट तवस्वी (प्राचाः उत्त)। कड़ १, १७७)। २ उद्द्योत का कारण-भूत कर्म- १०३)। वि [कृत् ] माया-रहित आचरणवाला विशेष (सम ६७; कम्म १) । 'त्थ न [ ] उज्झमाण वि [दे] पलायित, भागा हुआ (आचा)। जड़, जड्ड वि [जड़] सरल शस्त्र-विशेष (पउम१२, १२८)।
(षड् )। किन्तु मूर्ख, तात्पर्य को नहीं समझनेवाला उज्जोअग वि [उद्योतक] प्रकाशक, 'सव्व उज्झर पुं [निर्भर] पर्वत से गिरनेवाला जल(पंचा १६; उत्त २६) । मइ स्त्री [मति] जगुज्जयोगस्स' (णंदि)।
प्रवाह, पहाड़ का झरना (णाया १, १; १ मनःपर्यव ज्ञान का एक भेद, सामान्य उज्जोअण न [उद्द्योतन] १ प्रकाशन, अब- गउडा गा ६३६)। 'वण्णी स्त्री ["पर्णी] मनोज्ञान, सामान्य रीति से दूसरों के मनोभाव भासन । २ वि. प्रकाश करनेवाला (उप , उदक-पात, जल-प्रपात (निचू ५)
टी)V
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