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उच्छेवण-उज्जाणिगा
पाइअसहमहण्णवो
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उच्छेवण न [उत्क्षेपण] ऊपर देखो (से ६, | उजग्गिर न [उज्जागर] जागरण, निद्रा का | उज्जल वि [दे] देखो उजल्ल (हे २, २४)। अभाव (द १; ११७ वज्जा ७४)।
१७४ टि)। उच्छेवण न [दे] घृत, घी (दे १, ११६)।
उज्जग्गुज्ज वि [दे] स्वच्छ, निर्मल (दे १ उज्जलग वि [उज्ज्वलन चमकीला, देदीप्यउच्छेह पुं [उत्सेध] ऊँचाई (दे १, १३०)। ११३) ।
मानः 'जालुज्जलणगअंबरंव कत्थइ पयंतं उच्छोडिय वि [उच्छोटित] छुड़ाया हुमा, उजड वि [द] उजाड़, वसति-रहित (दे अइवेगचंचलं सिहि' (कप्प)। मुक्त किया हुआ. 'उच्छोडिय-बंधो सो रन्ना
उज्जलिअ ' [उज्ज्वलित] तीसरी नरक-भूमि भरिणो य भद्द ! उवविससु' (सुर १, १०५);
'उक्किएणरयभरोरणयत
का सातवाँ नरकेन्द्रक-नरक-स्थान विशेष 'पासट्ठियपुरिसेहिं तक्खरणमुच्छोडिया य से
लजज्जरभूविसट्टबिलविसमा
(देवेन्द्र ८)। बंधा' (सुर २, ३६)।
थोउज्जडक्कविडवा इमाओ
उजलिअ वि [उज्ज्वलित] १ उद्दीप्त, प्रकाउच्छोभ वि [उच्छोभ १ शोभा-रहित ।
ता उन्दरथलीओ' (गउड)।
शित (पउम ११८, ८८ औप)। २ ऊँची २ न. पिशुनता, चुगली (राज)। उज्जणिअवि [दे] वक, टेढ़ा (दे १, १११)।
ज्वालाओं से युक्त (जीव ३)। ३ न. उद्दीपन उच्छोल सक [ उत् + मूलय् ] उन्मूलन | उज्जम अक [ उद् + यम् ] उद्यम करना,
(राज) करना, उखाड़ना । वकृ. उच्छोलंत (राज)। प्रयत्न करना। उज्जमइ (धम्म १४)।
उजल्ल वि [दे] स्वेद-सहित, पसीनावाला, उच्छोल सक [उत् +क्षालय ] प्रक्षालन उज्जमह (उव)। वकृ. उज्जमंत, उज्जम
मलिनः 'मुंडा कंडूविणठेंगा उज्जल्ला करना, धोना । बकृ. उच्छोलंत (निचू १७)। माण (पण्ह १, ३); 'रण करेइ दुक्खमोक्खं
असमाहिया (सूप १, ३)। २ बलवान, प्रयो., वकृ. उच्छोलावंत (निचू १६) ।। उज्जममाणावि संजमतवेसु' (सूत्र १, १३) ।
बलिष्ठ (हे २, १७४)। उच्छोलण न [उत्क्षालन] प्रभूत जल से
कृ. उज्जमिअव्व, उजमेयव्य (सुर १४,
उजल्ल न [औज्ज्वल्य] उज्ज्वलता (गा ८३: सुपा २८७, २२४)। हेकृ. उज्जमिउं प्रक्षालन, 'उच्छोलणं च कक्कं च तं निज्ज
६२६) परियाणिया' (सूत्र १, १; औप)। (उव)।
उजल्ला स्त्री [दे] बलात्कार, जबरदस्ती उच्छोलणा स्त्री [उत्क्षालना] प्रक्षालन उज्जम पुं [उद्यम] उद्योग, प्रयत्न (उवः |
(दे १, ६७)। (दस ४)।
जी ५० प्रासू ११५) ।
उज्जमण (अप) न [उद्यापन] उद्यापन, व्रतउच्छोला स्त्री [दे] प्रभूत जल, 'नहदंतकेरारो
उज्जव अक [उद् + यत् ] प्रयत्न करना।
वकृ. 'सु ठुवि उज्जवमाणं पंचेव करंति मे जमेइ उच्छोलधोयणो अजओ' (उव)।' समाप्ति-कार्य (भवि)।
रित्तयं समणं' (उव)। उच्छोलित्तु वि [उत्क्षालयित] डूबोनेवाला, उजमि वि [उद्यमिन उद्योगी (कुप्र ४१६)
उजवण देखो उज्जावण (भवि)। निमग्न करनेवाला ( सूत्र २, २, १८) -
उज्जमिय (अप) वि [उद्यापित] समापित उजु देखो उज्जु (प्राचा; कप्प)। (व्रत) (भवि)।
उजह सक [उद् + हा] प्रेरणा करना। उज्जम्ह अक [उत् + जम्भ ] जोर से
संकृ. उज्जहित्ता (उत्त २७, ७)।। उजुअ देखो उज्जुअ (नाट)। उज्ज देखो ओय ओजस् (कप्प)।
जभाई लेना। उज्जम्हइ (प्राकृ६४)। उज्जाअर पुं[उज्जागर] जागरण, निद्रा उज्ज न [ऊर्ज] १ तेज, प्रताप। २ बल उज्जय हि [उद्यत] उद्योगी, उद्युक्त, प्रयत्न- उज्जागर ) का प्रभाव (गा ४८२; वज्जा ७६)।
शील (पामः काप्र १६६ गा ४४८) उज्जाडिअ वि दि] उजाड़ किया हया उजअणी । श्री [उज्जयनी, यिनि] "मरण न [ मरण] मरण-विशेष (पाचा) (भवि)।। उजइणी नगरी-विशेष, मालव देश की | उजयंत कुं[उज्जयन्त गिरनार पर्वत, 'इय | उजाण न [उद्यान] उद्यान, बगीचा, उपवन प्राचीन राजधानी, आजकल भी यह 'उज्जैन' उज्जयंतकप्पं, अवियप्पं जो करेइ जिणभत्तो (अणुः कुमा)। जत्ता स्त्री [ यात्रा] गोष्ठी, नाम से प्रसिद्ध है (चारु ३९; पि ३८६)। (ती; विवे १८); 'ता उज्जयंतसत्तंजएसु गोठ (गाया १, १)। पालअ, वाल वि उज्जंगल न [द] बलात्कार, जबरदस्ती। तित्थेसु दोसुवि जिरिणदे' (मुरिण १०९७५)।
[पालक, पाल] बगीचा का रक्षक, माली २ वि. दीर्घ, लम्बा (दे १, १३५) । उज्जर वि [दे] १ मध्य-गत, भीतर का ।
(सुपा २०८, ३०५)। उज्जगरय पुं [उज्जागरक] १ जागरण, २ पुं. निर्जरण, क्षय (तंदु ४१)।' उज्जाणिअ वि [औद्यानिक] उद्यान-संबंधी, निद्रा का प्रभाव
उज्जल अक [उद् + ज्वलू ] १ जलना। बगीचा का (भग १४, १)। 'जत्थ न उज्जगरप्रो, २ प्रकाशित होना, चमकना । उजलंति
उज्जाणिअ वि [दे] निम्नीकृत, नीचा किया जत्थ न ईसा विसूरणं माणं। (विक्र ११४)। वकृ. उज्जलंत (शंदि)।
हुमा (दे १, ११३)। सम्भावचाडुयं जत्थ,
उज्जल वि [उज्ज्वल] १ निर्मल, स्वच्छ उज्जाणिआ। स्त्री [औद्यानिका] गोष्ठी, नत्थि नेहो तहि नत्थि' (भग ७, ८ कुमा)। २ दीप्त, चमकीला | उज्जाणिगा। गोठ: 'उज्जाणं जत्थ लोगो (वज्जा ६८)। । (कप्पा कुमा)।
उज्जारिणमाए वच्चई (निचू ८ स १५१) ।
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