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पाइअसहमहण्णवो
उच्छाय-उच्छेव
उच्छाय सक [अव + छादय् ] आच्छादन उच्छि? वि [उच्छिष्ट] जूठा, उच्छिट (सुपा 'रइणावि अणुच्छुराणा, करना, ढकना। संकृ. उच्छाइऊण (चेइय ११७७ ३७५; प्रासू १५८)
वीसत्थं मारुएण वि अगालिद्धा । ४८५)10 उच्छिट्ट वि [उच्छिष्ट] अशिष्ट, असभ्य (दस |
तिअसेहिवि परिहरिमा, उच्छायण वि [अवच्छादन] आच्छादक, एक, ३, १ टी)।
पवंगमेहि मलिया सुवेलुच्छंगा' ढकनेवाला (स ३२३)। उच्छिण्ण वि [उच्छिन्न उच्छिन्न, उन्मूलित
(से १०, २)। उच्छायण वि [उच्छादन] नाशक (स| (ठा ५)।
उच्छुद्ध वि[दे] १ विक्षिप्त । २ पतित ३२३; ५६३)।
उच्छित्त वि [दे] १ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ। (मोघ २२० भा) । उच्छायणया। स्त्री [उच्छादना] १ उच्छेद, | २ विक्षिप्त, पागल (दे १, १२४)
उच्छुभ सक [अप + क्षिप् ] आक्रोश उच्छायणा विनाश (भग १५) । २ व्यव- |
उच्छित्त वि [उत्क्षिप्त] फेंका हया (ले ५, करना, गाली देना । उच्छुभह (भग १५)। च्छेद, व्यावृत्ति (राज)।V ६१; पात्र)
उच्छभण न [उत्क्षेपण] ऊँचा फेंकना (पव उच्छार देखो उत्थार=पा + क्रम् (हे ४, उच्छित्त देखो उद्विग (से २, १; गउड)M
किया . M७३ टी)। १६० टी) उच्छित्त वि [उसिक्त] सींचा हुआ, सिक्त
उच्छर वि [दे] अविनश्वर. स्थायी (दे १, उच्छाल सक [उत् + शालय ] उछालना,
।। (दे १, १२३)। ऊँचा फेंकना। वकृ. उच्छालिंत (कुम्मा ४)। उच्छिन्न देखो उच्छिण्ण (कप्प)।
उच्छुरण न [दे] १ ईख का खेत । २ ईख, उच्छालण न [उच्छालन] उछालना, उत्क्षे- उच्छिप्पंत देखो उक्खिव ।।
ऊख (दे १, ११७) ।। पण (कुम्मा ५)।
उच्छिय वि [उच्छित] उन्नत, ऊँचा (राज)। उच्छुल्ल पुं[दे] १ अनुवाद । २ खेद, उद्वेग उच्छालिअ बि [उच्छालित] फेंका हुआ,
उच्छिरण वि [दे] उच्छिट, जूठा (षड्) (१.१ उत्क्षिप्त (सुपा ६७)IV
उच्छिल्ल न दे] १ छिद्र, विवर (द १, उच्छूढ़ वि [६] प्रारूढ़, ऊपर बैठा हुआ उच्छास देखो ऊसास (मै ६८) ६५)। २ वि. अवजीर्ण (षड)
(षड्) उच्छाह सक [उत् + साह्य] उत्साह
उच्छु देखो इक्खु (पाना गा १४१; पि १७७; उच्छूट वि [उरिक्षप्त] १ त्यक्त, उज्झित दिलाना, उत्तेजित करना। उच्छाहर (सुपा
ओघ ७७१; दे १,११७)। जंत न [यंत्र (गाया १, १ उव)। २ मुषित, 'चुराया ३५२)
ईख पेरने का सांचा (दे ६, ५१)। हुया (राज)। ३ निष्कासित, बाहर निकाला उच्छाह [उत्साह] १ उत्साह (ठा २,१)। उच्छु [दे] पवन, वायु (दे १, ८५)। हुआ (औप)। २ दृढ़ उद्यम, स्थिर प्रयत्न (सुज २०)। ३ उच्छुअ वि [उत्सुक] उत्कण्ठित (हे २, उच्छूढ वि [उरक्षुब्ध] ऊपर देखोः 'उच्छूढउत्कंठा, उत्सुकता (चंद २०)। ४ पराक्रम, २२)।
सरीरघरा अन्नो जीवो सरीरमन्नं ति' (उव बल । ५ सामर्थ्य, शक्ति (आचू १; हे १, उच्छुअन दे] डरते-डरते की हुई चोरी (दे| पि ६६) ११४; २, ४८; पउम २०, ११८) १,६५)
उच्छूर देखो उल्लूर = तुड़ (हे ४, ११६ टि)। उच्छाह पुं [दे] सूत का डोरा (दे १,६२) उच्छुअरण न [दे] ईख का खेत (दे १,
उच्छूल देखो उच्चूल (उव)। उच्छाहण न [उत्साहन] उत्तेजन, प्रोत्साहन ११७)।
उच्छेअ पुं[उच्छेद] १ नाश, उन्मूलन (उप ५६७ टी)। उच्छुआर वि [दे] संछन्न, ढका हुअा (दे १,
'एगंतुच्छेअम्मिवि सुहदुक्खविअप्परणमजुत्त" उच्छाहिय वि [उत्साहित] प्रोत्साहित,
(सम्म १८)। २ व्यवच्छेद, व्यावृत्तिः 'उच्छेप्रो उत्तेजित (पिंड)।। उच्छंडिअ वि [दे] १ बाण वगैरह से
सुत्तत्थाणं ववच्छेउत्ति वुत्तं भवति' (नीचू १)।' उच्छिद सक [उत् + छिद्] उन्मूलन करना,
पाहत। २ अपहृत, छीना हुआ (दे १,
उच्छेयण न [उच्छेदन विनाश, उन्मूलन; उखाड़ना । संकृ. उच्छिदिअ (सूक्तः ४४) ।
१३५)। उच्छुग देखो उच्छुअ (सुर ८,६१)। भूय
'चितेइ एस समयो एयस्सुच्छेयरणे मझ उच्छिदण न [दे] उधार लेना, करजा लेना, वि [ीभूत] जो उत्कण्ठित हुआ हो (सुर |
(सुपा ३३५)। सूद पर लेना (पिंड ३१७) । २, २१४)।
उच्छेर अक[उत् + श्रि] १ ऊँचा होना, छपग वि [अवच्छिम्पक चोरों को| उच्छुच्छु वि [दे] दृप्त, अभिमानी (दे १, उन्नत होना। २ अधिक होना, अतिरिक्त खान-पान वगैरह की सहायता देनेवाला (पएह | ६९)
होना। वकृ. उच्छेरंत (काप्र १९४) । उच्छुण्ण वि [उत्क्षुण्ण] १ खण्डित, तोड़ा उच्छेव पुं [उत्क्षेप] १ ऊँचा करना, उठाना। उच्छिपण न [उत्क्षेपण] १ ऊपर फेंकना। हमा, 'उच्छरण महिमं च निलिमं (पाप)। २ फकना (वय २, ४) Tv २ बाहर निकालना (पएह १,१)TV २ आक्रान्त,
। उच्छेव पुं[उत्क्षेप] प्रक्षेप (वव ४) ।
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