________________
अवस्सं-अवहिय
पाइअसहमहण्णवो
अवस्सं अ[अवश्यम् ] जरूर, निश्चय (पि अवहर सक [गम्] जाना । अवहरइ (हे ४, । (णाया १, ६)। ३ चोरी (सुपा ४४६) । ४ ३१५)। १६२)।
बाहर करना, निकालना (निचू ७)। ५ भागाअवस्सप्पिणी देखो अवसप्पिणी (संबोध | अवहर अक [ नश्] भाग जाना, पलायन कार (भग २५, ४)। ६ नाश, विनाश (सुर
करना । अवहरइ (हे ४,१७८ कुमा)। ७, १२५)। अवस्साअ देखो अवसाय (विक्र)। अवहर सक [अप + ह] १ छीन लेना, अप- अवहार पुं[अवधार] निश्चय, निर्णय । व अवस्सिय वि [अवाश्रित आश्रित, अवलग्न हरण करना। २ भागाकार करना, भाग | वि[वत् 1 निश्चय वाला (ठा १०)। (अनु ६)।
देना । अवहरइ (महा) अवहरेजा (उवा)। अवहार पुं [अवधार्य] ध्रुव राशि, गणितअवह सक [रच् ] निर्माण करना, बनाना।
कवकृ. अवहरिजंत, अवहीरमाग (सुर प्रसिद्ध राशिविशेष (सुज १०, ६ टी)। अवहइ (हे ४, ६४)।
३, १४२; भग २५, ४ रणाया १, १८)। अवहारण न [अवधारण] निश्चय, निर्णय (से
संकृ. अवहरिऊण, अवहट्ट (महा: प्राचा ११, १५; स १६६)। अवह स [ उभय ] दोनों, युगल (हे २, भग)।
अवहारय वि [अपहारक] छीननेवाला, अप१३८)।
अवहर सक [अप + ह] परित्याग करना। हरण करनेवाला (सूर ११, १२)। अवह वि अवह] न बहता हुआ, जो चालू नहीं
संकृ. अवहट्ट (सूत्र १, ४, १, १७)। अवहारि वि [अपहारिन् अपहारक, छीननेहै, बंद; 'प्रोसप्पिणीइ अपहो इमाइ जाओ अवहर वि [अपहर] अपहारक, छीन लेने- वाला (सुपा ५०३)। तम्रो य सिद्धिपहो (धर्मवि १५१)। वाला (गा १५६)।
अवहारिय वि [अवधारित] निश्चित (स अवहइ स्त्री [अपहति] विनाश (विसे २०- अवहरण न [अपहरण] छीन लेना (कुमाः ५७६; पउम २३, ६; सुपा ३३१)। सुपा २५०)।
अवहाव सक [क्रप्] दया करना, कृपा अवहट्ट वि [दे] अभिमानी, गर्वित (दे १, अवहरिअ वि [गत] गया हुआ (कुमा)। करना । अवहावेइ (षड्; हे ४, १५१)। २३)।
अवहरिवि [अपहृत छीन लिया हुआ अवहावसु (कुमा)। अवहट्ट देखो अवहर = अप+ हु। (सुर ३, १४१, कुम्मा ६)।
अवहाविअवि [अवधावित] गमन के लिए अवह वि [अपहृत] ले लिया गया, छीना अवहस सक [अव, अप + हस्] तुच्छ प्रेरित (सिरि ४३४)। हुआ (सुपा २६६ पएह १, ३)।
करना, तिरस्कार करना, उपहास करना। अव- अवहास पुं[अवभास] प्रकाश, तेज (गउड; अवहड वि [अवहृत] ऊपर देखो (प्रारू)। हसइ (णामा १, १८)।
प्राप्र)। अवहड न [दे] मुसल (दे १, ३२)। अवहसिय वि[अप, अवहसित] तिरस्कृत, अवहासिणी स्त्री [अवहासिनी] नासारज्जु, अवण्ण पुं[दे] ऊखल, ओखल, उदूखल उपहसित (गाया १,८; सुर १२, ६७)। 'मोत्तव्वे जोत्तमपग्गहम्मि अवहासिणी मुक्का' (दे १, २६)।
अवहाउ सक [दे] आक्रोश करना । प्रवहाडेमि (गा ६६४)। अपहत्य पुं [अपहस्त] मारने के लिए या (दे १, ४७ टी)।
अवहासिय वि [अवभासित] प्रकाशित निकाल बाहर करने के लिए ऊंचा किया | अवहाडिअ विदे1 उत्कृष्ट. जिस पर आक्रोश | (सुपा १४२) । हुआ हाथ, 'अवहत्थेण हो कुमरों' (महा)। किया गया हो वह (दे १, ४७)। अवहि देखो ओहि (सुपा ८६, ५७८; विसे अवहत्थ सक [अपहस्तय] १ हाथ को | अवहाण न [अवधान] १ ख्याल, उपयोग ८२, ७३७)। ऊंचा करना। २ त्याग करना, छोड़ देना।
(सुर १०,७१ कुमा)। २ ज्ञान, जानना (बसे अवहिह वि [दे] दर्पित, अभिमानी, गर्वित अवहत्थेइ (महा) । संकृ. अवहत्थिऊण,
८२)। अवहत्थेऊण (पि ५८६; महा)। अवहाय पुं[दे] विरह, वियोग (दे १, ३६)। अवहिट्ट न [दे] मैथुन, संभोग (सूम १, ६, अवहत्थरा स्त्री [दे] लात मारना, पाद-प्रहार अवहाय प्र[अपहाय] छोड़ कर, त्याग कर (दे १, २२)। (भग १५)।
अवयि वि [अपहृत] छीन लिया हुआ अवहत्थिय वि [अपहस्तित] परित्यक्त, दूर अवहार सक [अव + धारय् ] निर्णय (पउम २०, ६६; सुर ११, ३२ सुपा ४१३)। किया हुआ (महाः काप्र ५२४; गा ३५३; |
अवहिय वि [अपहित अहित (चंड)। सुपा १६३ मंदि)। (स १६६) । हेकृ. अवहारेउं (भास १६)।
अवहिय वि [अवधृत] नियमित (विसे अवय वि [अपहत] नष्ट, नाश-प्राप्त (से | अवहार (अप) देखो अवहर = अप + ह। २६३३)।। १४, २८)।
अवहारइ (भवि)। संकृ. अवहारिवि (भवि)। अवहिय न [अवधृत अवधारण (वव १)। अवय वि [अघातक] अहिंसक (ोष अवहार पुं[अपहार १ अपहरण (पएह १, अवहिय वि [अवहित] सावधान, ख्यालवाला ७५०)।
| ३; सुपा २७५) । २ दूर करना, परित्याग (पामा महा: पाया १, २, पउम १०, ६५;
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org