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पाइअसहमहण्णवो
अवहिय-अविक्खग सुपा ४२३) । मण वि [ मनस् ] तल्लीन, अवहोडय देखो अवओडगः 'सो बद्धो अवहोड- | अवार वि [अपार] पार-रहित, अनन्त (मै एकाग्र-चित्त (सुपा है)। | एण' (सुख २, २५) ।
६८)। अवहिय वि [रचित] निर्मित, बनाया हुअा अवहोमुह वि [उभयमुख दोनों तरफ मुंह
अवार पु[दे] दूकान, हाट (दे १, १२)। (कुमा)। वाला (प्राकृ ३०)।
अवारी स्त्री [दे] ऊपर देखो (दे १, १२) । अबहीण वि [अवहीन हीन, उतरता, कम अवहोल अक [अव + होलय ] १ झूलना।
अवालुआ स्त्री [दे] होठ का प्रान्त भाग (दे दरजा वाला (नाटः पि १२०)। २ संदेह करना। वकृ. अवहोलन्त (गाया
१,२८)। अवहीय वि [अपधीक] निन्द्य बुद्धिवाला,
अवाव पुं[अवाप] रसोई, पाक । कहा स्त्री दुर्बुद्धि (पएह १, २)।
[कथा] रसोई-सम्बन्धी कथा (ठा ४, २)। अवाइ वि [अपायिन्] १ दुःखी। २ दोषी, अवहीर सक [अव + धीरय] अवज्ञा अपराधी; 'निम्भिच्चसच्चवाई होइ अवाई य नेह
(अप) देखो अवसे ( षड्) । करना, तिरस्कार करना । अवहीरेइ (महा)।
लोएवि' (सुपा २७५)। वकृ. अवहीरंत (सुपा ३१२)। कवकृ.
अवाह पुं[अवाह] देश-विशेष (इक)। अवहीरिजंत (सुपा ३७६)। संकृ. अव
अवाईण वि [अवाचीन] अधोमुख (णाया अवाह। देखो अबाहा (प्रौप)। हीरिऊण (महा)।
अवि प्र[अपि] निम्नलिखित अर्थों का सूचक अवहारण न [अवधीरण] अवहेलना, तिर- अवाईण वि [अवातीन] वायु से अनुपहत अव्यय-१ प्रश्न (से ५, ४) । २ अवधारण, स्कार (गा १४६, अभि६८ गउड)। (गाया १, १)।
निश्चय (आचा: गा ५०२) । ३ समुच्चय (विसे अवहीरणा स्त्री [अवधीरणा] ऊपर देखो (से । अवाउड वि [अ-व्यापृत] किसी कार्य में
३५५१, भग १,७)। ४ संभावना (विसे १३, १६; वेणी १८)।
३५४८; उत्त ३)। ५ विलाप (पाप)। ६-७ न लगा हुआ (उप पृ ३०२) । अवहीरमाण देखो अवहर = अप + हु।
वाक्य के उपन्यास और पादपूर्ति में भी इसका अवाउड वि [अप्रावृत] अनाच्छादित, नग्न, अवहारिअ वि [अवधीरित] अवज्ञात, तिर- दिगम्बर (णाया १, १, ठा ५, १) ।
प्रयोग होता है (आचाः पउम ८, १४६;
षड्)। स्कृत (से ११, ७; गउड)।
अवाडिअ विदे] बञ्चित, प्रतारित (षड्)। अवि अवि] १ प्रज। २ मेष (विसे अवहील देखो अवहीर । अबहीलह (सण)। अवाण देखो अपाण (पान; विपा १, ६)।
१७७४)। अबहीला स्त्री [अवहेला] अनादर (सिरि अवाय पु [अपाय] पानी का प्रागमन (श्रा अविअ विदे] उक्त, कथित (दे १, १०)। १७६)। २३)।
अविअ बि [अवित] रक्षित (दे ५, ३५) । अवहूय वि [अवधूत] मार भगाया हुआ अवाय वि [अपाय] भाग्यरहित (था २३)।
अविअ अ [अपिच] विशेषण-सूचक अव्यय (संबोध ५२)। अवाय वि [अपाग] वृक्षरहित (श्रा २३)।।
(पंचा ७, २१)। अबहेअ वि [दे] दया-योग्य, कृपा-पात्र (दे १, अवाय वि [अपाक] पापरहित (श्रा २३)।
| अविअ अ [अपिच] समुच्चय-द्योतक अव्यय २२)। अवाय पुं[अवाय प्राप्ति (था २३)।
(सुर २, २४६; भग ३, २)। अवहेड सक [मुच् ] छोड़ना, त्याग करना।
अवाय पुं[अपाय १ अनर्थ, अनिष्ट (ठा १)। Maiचिका मेष भेड (प्राचा)। अवहेडइ (हे ४, ६१)। संकृ. अवहेडिउं २ दोष, दूषण (सुर ४, १२०) । ३ उदाहरण
अविउ वि [ अवित् ] अश, मूर्ख (सट्ठि ४६)। विशेष (ठा ४, ३)। ४ विनाश (धर्म १)। अविउतिय वि [अव्युत्क्रान्तिक उत्पत्ति(कुमा)। अवहेडगन [अवहेटक] प्राधे सिर का ६ वियोग, पार्थक्य (एंदि)। ६ संशय-रहित
रहित (भग)। अवहेडय । ददं, प्राधा सीसी रोग (उत्तनि ३)। निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष (ठा ४, ४ गाद)। अविउसरण न [अव्युत्सर्जन] अपरित्याग, अवहेडिय वि [दे] नीचे की तरफ मोड़ा हुआ,
देसि वि [°दर्शिन्] भावी अनर्थों को
पास में रखना (भग)। अवमोटित (उत्त १२)। जाननेवाला (ठा ८द्र ४६)। "विजय न
अविकंप वि [अविकम्प] निश्चल (पंचा १८, अवहेरि स्त्री [अवहेला] अवगणना, तिर
[विचय, विजय] ध्यान-विशेष (ठा ४,२)। अवहेरी।स्कार (उप २६०, ५६७ टी भवि; अवाय पुं[अवाय] संशय-रहित निश्चयात्मक
अविकरण न [अविकरण] गृहीत वस्तुओं को सपा २६१, महा)। ज्ञान-विशेष, मति ज्ञान का एक भेद (ठा ४,
यथास्थान न रखना (बृह ३)। अवहेलअ वि [अवहेलक] तिरस्कारक (सुपा ४ दि)।
विक्ख देखो अवेक्ख । प्रविक्खइ (महा)। अवाय वि [अम्लान] अम्लान, म्लानरहित, हेकृ. अविक्खिउं (स ३०७)। कृ. अविअवहेलण दि [अवहेलन] उपेक्षा करने वाला ताजाः 'अवायमल्लमंडिया' (स ३७२) । क्खणिज (विसे १७१६)।। (सूत्र २, ६, ५३)।
अवायाण न [अपादान] कारक-विशेष, स्था- विक्खग वि [अपेक्षक] अपेक्षा करने वाला अवहोअ पुंदि] विरह, वियोग ( षड् )।। नान्तरीकरण (ठा ८; विस २०६६)। (विमे १७१६) ।
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