________________
पाइअसद्दमण्णवो
अवहार-अवमाणण
अवद्दार । देखो अवदार (णाया १, २, अवपुट्ट वि [अवस्पृष्ट] जिसका सशं किया अवभासय वि [अवभासक] प्रकाशक अबद्दल प्रारू)। गया हो वह,
(विसे ३१७, २०००)। अवदाहणा स्त्री. देखो अवदहण (विपा १, 'जीए ससिकंतमणिमंदिराई
अवभासि वि [अवभासिन् ] देदीप्यमान,
निसि ससिकरावपुट्ठाई। प्रकाशने वाला (गउड)। अवदुस न [दे] उलूखल आदि घर का वियलियबाहजलाई रोयंतिव,
अवभासिय वि [अवभासित प्रकाशित सामान्य उपकरण, गुजराती में जिसको 'राच
___ तरणितवियाई' (सुपा ३)। (विसे)। रचिलु" कहते हैं (दे १, ३०)।
अवपुसिय वि [दे] संघटित, संयुक्त (दे १, | अवभासिय वि [अपभाषित] आक्रुष्ट, अवद्धंस पुं[अवध्वंस] विनाश (ठा ४, ४)। ३६)।
अभिशप्त (वव १)। अवधंसि वि [अपध्वंसिन् विनाशकारक अवपूर सक [अव + पूरय ] पूर्ण करना। अवम देखो ओम (पाचा) (उत्त ४, ७)।
अवपूरंति (स ७१२)। अवधार सक [अव + घारय् ] निश्चय अवपेक्ख सक [अवप्र +ईक्ष. ] अवलोकन
अवमग पुं [अपमार्ग] कुमार्ग, खराब करना । कृ. अवधारियव्य (पंचा ३)।
रास्ता (कुमा)। करना । अवपेक्खह (उत्त ६, १३)। अवधारण न [अवधारण] निश्चय, निर्णय अवप्पओग पुं [अपप्रयोग उलटा प्रयोग,
अवमग्ग ' [अपामार्ग] वृक्ष-विशेष, चिचड़ा, (श्रा ३०)।
लटजीरा (दे १, ८)। विरुद्ध प्रौषधियों का मिश्रण (बृह १)। अवधारणा स्त्री [अवधारणा] दीर्घकाल तक |
अवमच्चु [अपमृत्यु अकाल मृत्यु, बिना अवफार पुं [अवस्फार विस्तार, फैलाव याद रखने की शक्ति (सम्मत्त ११८)।
मौत मरण (द ६, ३; कुमा)। 'ता किमिमिणा अहोपुरिसियावप्फारपाएणं' अवधारिय वि [अवधारित] निश्चित, निर्णीत | (स २८८)।
अवमज सक [अव + मृज् ] पोंछना, (वसु)। अवबंध [अवबन्ध] बन्ध, बन्धन (गउड)।|
झाड़ना, साफ करना । संकृ. अवमन्जिऊण अवधारियव्य देखो अवधार । अवबद्ध वि [अवबद्ध बंधा हुआ, नियन्त्रित
(स ३४८)। अवधाव सक [अप + धाव] पीछे दौड़ना। (धर्म ३)।
अवमण्ण सक [अव + मन् तिरस्कार अवधावइ (सण)। वकृ. अवधावंत (स | अवबाण वि [अपबाण ] बाणरहित
करना । अवमएणंति (उवर १२२) । २३२)।
(गउड)।
| अवमह [अवमर्द मर्दन, विनाश (परह अवधिका स्त्री [दे] उपदेहिका, दीमक (पएह |
अवबुज्झ सक [अव + बुध् ] १ जानना । | १,१)।
२ समझना, 'जत्थ तं मुझसी रायं, पेचत्थं | अवमहग वि [अवमर्दक] मर्दन करने वाला अवधीरिय वि [अवधीरित] तिरस्कृत, अप- नावबुज्झसे' (उत्त १८, १३) । वकृ. अव- (पाया १, १६)। मानित (बृह १, ४)।
बुज्झमाण (स ८५) । संकृ. अवबुज्झेऊण अवमन्न सक [अव + मन्] अवज्ञा करना, अवधुण । सक [अव+धू] १ परित्याग (स १६७)।
निरादर करना। अवमन्नइ (महा)। वकृ. अवधूण करना।२ अवज्ञा करना । संकृ.अबोहअवरोध१जान बोध (सपा अवमन्नंत (सूत्र १,३,४) संकृ. अवमन्निअवधूणिअ, अवधूणिअ (माल २३२वेणी |
१७)। २ विकास (गउड)। ३ जागरण ऊण (महा)।
(धर्म २) । ४ स्मरण, याद (आचा)। अवमन्निय) वि [अवमत] अवज्ञात, अवअवधूय वि [अवधूत १ अवज्ञात, तिरस्कृत अवबोह्य वि [अवबोधक अवबोध-कारक,
अवमय गणित (सुर १६, १२७; महा; (ोघ १८ भा. टी)। २ विक्षिप्त (प्राव ४)।
उव)। 'भवियकमलावबोहय, मोहमहातिमिरपसरभरअवनिद्दय पुं[अपनिद्रक] उजागर, निद्रा
अवमाण पुं [अपमान] तिरस्कार (सुर १, का प्रभाव (सुर ६, ८३)। सूर' (काल)।
२३५)। अवन्न देखो अवण्ण = प्रवर्ण (भग; उब: | अवबोहि अवबोधि १ ज्ञान । २ निश्चय,
अवमाण पुंन [अवमान] १ अवज्ञा, तिरमोघ ३५१)। निर्णय (प्राचू १, विसे ११५४)।
स्कार । २ परिमाण (ठा ४, १)। अवन्ना देखो अवण्णा (मोघ ३८२ भाः सुर | अवभास अक [अव + भास् ] चमकना,
अवमाण सक [अव + मानय् ] अवगणना १६, १३१, सुपा ३७२)।
प्रकाशित होना। अवगुण
करना । अवमाणइ (भवि)। अवभास पु [अवभास] प्रकाश (सुज ३)। सक[दे] खोलना। अवगुणे अक्पंगुर (सून १, २, २, १३)। भव- अवभास पुं [अवभास] ज्ञान (धर्मसं | अवमाणण न [अवमानन] अनादर, अवज्ञा पंगुरे (दस ५, १, १८)। १३३३)।
(पण्ह १, ५; औप)। अवपक्का स्त्री [अवपाक्या] तापिका, तबी, अबभासण वि [अवभासन] प्रकाश-कर्ता | अवमाणण न [अपमानन] तिरस्कार, अपछोटा तवा (णाया १, १ टी-पत्र ४३)। (सुख १,४०)।
मान (स १०)।
Jain Education Intemational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org