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________________ अवणमिय-अवदेस पाइअसहमहण्णवो ७६ अवणमिय वि [अवनत] अवनत (सुपा | अवण्हअ पुं[अपह्नव] अपलाप (षड्)। अवत्थरा स्त्री [दे] पाद-प्रहार, लात मारना ४२६)। अवण्हवण न [अपह्नवन अपलाप (प्राचा)। (दे १,२२)। अवणमिय वि [अवनमित] नीचे किया हुआ, अवण्हाण न [अवस्नान] साबुन आदि से अवस्था स्त्री [अवस्था] दशा, अवस्थिति (ठा नमाया हुआ (सुर २, ४१)। स्नान करना (णाया १, १३; विपा १, १)। ८, कुमा)। अवणय वि [अवनत नमा हुमा (दस ५)। अवतंस देखो अवयंस = अवतंस (कुमा)। अवस्थाण न [अवस्थान] अवस्थिति (ठा ४, अवणय पुं[अपनय] १ अपनय, हटाना (ठा अवतंस पुं[अवतंस] मेरुपर्वत (सुज ५) १; स ६२७: महा सुर १, २)। ८)। २ निन्दा (पव १४०; विसे १४०३ टी)।. अवसिय वि [अवतंसित] विभूषित अवस्थाव सक [अव + स्थापय् ] १ स्थिर अवणयण न [अपनयन हटाना, दूर करना | (कुमा)। करना, ठहराना । २ व्यवस्थित करना । हेकृ. (सुपा ११, स ४८३; उप ४९६)। अत्रत वि [अवतष्ट] तनूकृत, छिला हुआ अवस्थाविदुंः अवस्थावइदु (शौ) (पि अवणाम पुं [अवनाम] ऊर्ध्व गमन, ऊंचा (सूत्र १, ५, २)। ५७३; नाट)। जाना; 'तुलाए णामावरणामव्व' (धर्मसं २४२) matमव' (धर्मसं २४२)। अवतट्रि देखो अवयट्टि = अवतष्टि (सूम | अवस्थाविद ( शौ) विr अवसथापित] अवणि स्त्री [अवनि] पृथिवी, भूमि (उप १, ७)। अवस्थित किया हुआ (नाट)। ३३६ टी)। अवतारण न [अवतारण] १ उतारना । २ अवस्थिय देखो अवट्रिय (महाः स २७४) । अवणित देखो अवणी = अप + नो। योजना करना (विसे ६४०)। अवस्थिय वि [अवस्तृत ] फैलाया हुआ, अवणिंद पुं [अवनीन्द्र] राजा, भूप (भवि)। अवतासण न [अवत्रासन] डराना (पव ७३ प्रसारित (णाया १, ८)। अवणिय देखो अवणीय; 'तं कुरणसु चित्तनिटी)। अवत्थु न [अवस्तु] १ अभाव, असत्त्व (भविः वसणमवणियनीसेसदोसमलं' (विवे १३८)। अवतित्थ न [अपतीर्थ] कुत्सित घाट, खराब प्रावम)। २ वि. निरर्थक, निष्फल (पएह १, अवणी देखो अवणि (सुपा ३१०)। सर किनारा (सुपा १५)। पुंश्वर] राजा, भूमिपति (भवि)। अवत्त वि [अव्यक्त] १ अस्पष्ट (विसे) । २ अवधभ देखो अवठंभ । संकृ. प्रवर्थभिय अवणी सक [अप + नी] दूर करना, हटाना। कम उमर वाला (बृह १)। ३ असंस्कृत (गच्छ (चेइय ४८१)। प्रवणेइ, अवरोमि (महा)। वकृ. अवणित, १)। ४ पुं. देखो अवग्ग (निचू २)। अवदग्ग देखो अवयग्ग (सूम २, २, ५)। अवणेत (निचू १; सुर २, ८)। कवकृ. अवत्त वि [अवात] पवनरहित (गच्छ १)। | अवत्त वि [अवाप्त प्राप्त, लब्ध। अवणेज्जत (उप १४६ टी)। कृ. अवणेअ अवदल वि [अपदल] १ निःसार, सारअवत्त न [अवत्र आसन-विशेष (निचू १)।। रहित । २ कच्चा, अपक्व (ठा ४, ४)। अवनय विविथल अवदहण न [अवदहन] दम्भन, गरम लोहे अवणीय वि [अपनीत] दूर किया हुआ (सुपा ५४)। १,३४)। के कोश आदि से चर्म (फोड़े आदि) पर अवणीयवयण न [अपनीतवचन] निन्दाअवत्तव्व वि [अवक्तव्य] १ वचन से कहने दागना (णाया १, ४)। वचन (पाचा २, ४, १, १)। के अशक्य, अनिर्वचनीय। २ सप्तभंगी का अवदाण न [अवदान] शुद्ध कर्म (ती १५)। अवणेत देखो अवणी = अप + नी। चतुर्थ भंग; अवदाय वि [अवदात] १ पवित्र, निर्मला अवणोय पुं [अपनोद] अपनयन, हटाना 'प्रत्यंतरभूएहि अनियएहि दोहि समयमाईहि । | "दिरणयरकरावदार्य भत्तं पेहित्तु चक्खुणा सम्म' वयणविसेसाईनं दबमबत्तयं पडई' (सम्म (विसे ६८२)। (सुपा ४९१) । २ श्वेत, सफेद (पएह १, अवणोयण न [अपनोदन] अपनयन, दूरी. ४ पा)। अवत्तिय न [अव्यक्तिक] १ एक जैनाभास करण (स ६२१)। अवदार न [अपद्वार] १ छोटी खिड़की। मत, निह्नवप्रचालित एक मत । २ वि. इस अवण्ण वि [अवर्ण] १ वर्णरहित, रूपरहित २ गुप्त द्वार (उप ६६१)। मत का अनुयायी (ठा ७)। (भग)। २ . निन्दा (पंचव ४)। ३ अपकीर्ति अवस्थंतर न [अवस्थान्तर] जुदी दशा, भिन्न अबदाल सक [अव + दलय] खोलना । (ोघ १८४ भा)। व वि [°वत् निन्दक, अवस्था (सृर ३, २०६)। अवदालेइ (प्रौप)। संकृ. अवदालेत्ता (प्रौप)। 'तेसिं अवएणवं बाले महामोहं पकुवई' (सम अवस्थग वि [अपार्थक] १ निरर्थक, व्यर्थ ।। अबदालिय वि [अवदलित] विकसित, विज५१)। वाय पुं [°वाद] निन्दा (द्र २६)। २ असम्बद्ध अर्थवाला (सूत्र वगैरह) (विसे)। म्भित; 'अवदालियपुंडरीयनयणे' (प्रौपः परह अवण्ण न [दे] अवज्ञा, निरादर (दे १, | अवस्थद्ध वि [अवष्टब्ध] अवलम्बन-प्राप्त, १७)। जिसको सहारा मिला हो वह (णाया १,१८) अवदिसा ख्री [अपदिक] भ्रान्त दिशा अवण्णा स्त्री [अवज्ञा] निरादर, तिरस्कार अवत्थय वि [अपार्थक] निरर्थक (विसे REE (स ५२६) । (औप)। | टी)। | अवदेस देखो अवएस (अभि ७६) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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