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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
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थोडी शब्दार्थचर्चा
नलाख्या.मां -
राजाइ सा माटि मेहेली, एहेवु नही अन्याई. अहीं 'अन्याई' ए 'अन्यायी'ने स्थाने छे. संपादके 'अन्याय करनार' एवो एनो अर्थ आप्यो छे ते चाले तेम छे. 'खोटुं करनार' पण चाली शके : “राजाए शा माटे तने तजी ? ए एवो अन्याय करे तेवो, खोटुं करे तेवो नथी."
३४. अरज 'अरज' शब्द आपणे 'विनंती, प्रार्थना' एवा अर्थमां वापरीए छीए. मदमो.मां एनो प्रयोग कंईक जुदा अर्थमां होय एवं जणाय छ :
पापपुन्यनी ए शी अरज, आपणे तो विद्यानी गरज. मोहनाने पंडित पासे भणाववा मूकती वखते पंडित कोढियो छे, केवांकेवां पाप करवाथी माणस कोढियो थाय अने एनुं मों जोवाथी केवु पाप लागे ए बधुं राजा मोहनाने समजावे छे त्यारे मोहना आ वाक्य बोले छे. देखीती रीते ज अहीं 'अरज'नो 'प्रार्थना, विनंती' ए अर्थ बंध न बेसे. संपादके 'फरियाद' एवो अर्थ आप्यो छे एनो कशो आधार जणातो नथी, ते उपरांत संदर्भमां ए अर्थ पण भाग्ये ज संतोषकारक गणाय. वस्तुतः अरबी 'अर्ज' शब्दनो 'प्रार्थना' उपरांत 'निवेदन, रजूआत, दरखास्त' एवो अर्थ पण छे अने एवा ज कोईक अर्थमां ए शब्द अहीं प्रयोजायेलो जणाय छे : "पापपुण्यनी आ शी रजूआत ? (पापपुण्यनी आवी वात शा माटे कहो छो ?) आपणे तो विद्या साथे ज काम छे."
३५. अलगुं, अलगेरी 'अळगुं' शब्दने आजे आपणे बहुधा 'जुना अर्थमां वापरीए छीए. पण एनो एक अर्थ 'वेगळं, दूर, आधु' पण छे अने मध्यकाळमां ‘अळगुं' शब्द सामान्य रीते ए अर्थमां ज वपरायेलो जोवा मळे छे. जेमके, आरारा.मां -
वाडी मांही दीठउ कूउ....
जोवा लागी अलगी थाई... (वाडीमां कूवो जोयो. आधी जईने एमां जीवा लागी.)
राइ अणावइ अलगी गई, कन्या आवइ हरखित थई. (दूर गयेली ए कन्याने राजा बोलावे छे. ए हर्षित थईने आवे छे.) ____ अलगांची पाणी रे आणतां, मत तुझ विससंका होइ रे. (दूरथी पाणी लावीने तने विषनी शंका थाय एवं करवू न हतुं.) संपादके पण 'अलगुंनो 'दूर, आधु' एवो अर्थ ज आप्यो छे.
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