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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
नेमिछं.मां
अलगी नांखइ सोवनत्रोटी. (सोनानी त्रोटी दूर फेंकी दे छे.)
जइ मझ सरिखी नारि थूक जिम अलगी लांखइ. (मारा जेवी स्त्रीओने यूंकनी जेम वेगळी करी नाखे छे | तजी दे छे.)
संपादके 'अळगी, जुदी, दूर' एम अर्थो नोंध्या छे तेमां 'जुदी'नी जरूर नथी. 'वेगळु, दूर' ए अर्थ स्पष्ट ज छे.
कादं (शा).मां -
रा आगली महेली ग्यु अलगु अंत्यज एहq भाखी. ((पोपटने) राजानी पासे मूकी, आq कहीने अंत्यज आघो जतो रह्यो.)
कां रही अलगी ? एटला माहां शुं थाकी ? (केम वेगळी - आघी थई गई ? एटलामा थाकी गई ?) राजाने नवडाववानुं बंध करनार दासी प्रत्येनी आ उक्ति छे.
संपादके 'जुईं अर्थ आप्यो छे ए योग्य नथी. बीजा उदाहरण परत्वे केशवलाल ध्रुवे पण 'वेगळी' एवो अर्थ ज कर्यो छे. नलाख्या.मां -
....कोएक नर आ मंदिर रही, हवडां मुझने स्पर्स ज थयु, झालूं एटलि अलगू थयु. - (कोई एक पुरुष आ महेलमां छे. हमणां मने एनो स्पर्श थयो, पण एने पकडं एटलामां तो ए दूर जतो रह्यो.)
संपादके 'जुदु' अर्थ आप्यो छे ते संदर्भमां योग्य रीते बंधबेसतो थतो नथी. उषाह.मां -
अधमाधम अलगेरी थटी. संपादके 'अळगी' अर्थ आप्यो छे तेमां एनो आजनो 'जुदी' ए अर्थ अभिप्रेत जणाय छे. देखीती रीते तो ए बेसे. द्वारकामां जुदाजुदा लोकोना वासना वर्णननी आ पंक्ति छे. तेथी सौथी हलका वर्णना लोकोनुं निवासस्थान जु, छे एवो आ पंक्तिनो अर्थ लई शकाय. पण निवासस्थान जुर्दु ज नहीं, दूर - सौथी दूर - छेल्ले होवानो अर्थ अभिप्रेत होवानो संभव छे. विमप्र.मां -
भड भडवाय हता घणा, ते तु आपणा अलग लेई जीव तु. (पराक्रमी वीर पुरुषो हता ते पण पोताना जीवने वेगळा लई जाय छे | नासीने
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