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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
प्रेमानंदकृत 'नळाख्यान'मां पण 'अन्या' शब्द वपरायेलो छ :
नळ छ कुंवारो, नथी कन्या, छे ब्रह्मानो मोटो अन्या. नळने माटे कन्या नथी सर्जी ए ब्रह्मा एटलेके विधातानो मोटो दोष छे एम अहीं अभिप्रेत छे. कस्तुवा.मां -
लोभे लक्षण जाय, अन्या अति अधर्मे. संपादके 'अन्या'नो 'अन्याय' एवो अर्थ आप्यो छे, पण अहीं लोभनां परिणामो वर्णव्यां छे. तेथी 'दोष'नो अर्थ लेवो ज वाजबी छ : "लोभ करवाथी सारां लक्षण नष्ट थाय छे, अधर्मनो दोष थई जाय छे." वेताप.मां -
पारवती बोल्या मावडी, 'अरे शीव, अन्या आवडी,
जीव ए सहु कोना जाय छे, ए पाप आपरणे थाय छे.' संपादके 'अन्याय' अर्थ आप्यो छे ते देखीती रीते चाले, पण पांच पुरुषो मरवा तैयार थया छे ते संदर्भमां आ वाक्य बोलायुं छे तेथी 'खोटुं कर्म' एवो अर्थ ज वधारे उचित गणाय : “अरे शिव, आ केटलुं खोटुं थाय छे ! आ सहुना जीव जाय छे एर्नु पाप आपणने लागे छे." चंद्रवा.मां -
जुए सौ को जगत, कोये केहे नहि अंबा. निशा विशेनी समस्यामां आ पंक्ति आवे छे तेथी संपादके आपेलो अर्थ 'दोष, वांक, खोडखांपण' यथायोग्य छे : "आखं जगत एने जुए छे अने कोई एमां कशी खोडखांपण होवानुं कहेतुं नथी." ..एमां ज -
कीधो पितानो काळ, एह पण मोटो अन्या. छास विशेनी आ समस्या छे तेथी संपादके आपेलो 'दोष' ए अर्थ बराबर छ : "एणे पोताना पितानी हत्या करी छे, ए एनो मोटो दोष / मोटुं दुष्कृत्य छे."
नरका.मां - ___ओ पेलो ओशियाळो आवे, अजैयो अपार.
अहीं 'अन्नैयो' ए 'अन्यायी'ने स्थाने छे. संपादके एना 'वांकाबोलो, अणचियो' एवा अर्थो आप्या छे, एमांथी 'वांकाबोलो' ए अर्थ माटे कोई आधार जणातो नथी. नटखट कृष्णने अनुलक्षीने आ उद्गार छे एटले 'अणचियो' अर्थ चाले, पण वधारे योग्य अर्थ 'अटकचाळो, तोफानी, मस्तीखोर' ए गणाय.
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