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थोडी शब्दार्थचर्चा
मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
ए नोंधपात्र छे के उक्तिर. 'अभोखउ' (तेमज 'अभोखणं') शब्दनो अर्थ 'अभ्युक्षणम्' आपे छे, जेनो अर्थ थाय छे 'सिंचन, छंटकाव'. वणी अन्य कृतिओमां 'अभोखण' शब्द वपरायेलो मळे छे त्यां बधे सत्कारनो प्रसंगसंदर्भ छे. सत्कारमां पाणीथी पण धोवानी प्रणालिका जूना समयमां हती. तेथी अहीं 'अभोखुं' एटले 'सत्कार रूपे पाणीनुं सिंचन' एवो अर्थ ज लेवो जोईए.
अन्य प्रयोगो आ प्रमाणे छे
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विमप्र.मां
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सोवन करवी दीइ अभोखण, साजण हरखि भरिया.
संपादके 'आवकार' अर्थ आप्यो छे, पण "सुवर्णनी झारीथी पाणी सींचे छे” एवो अर्थ स्पष्ट छे.
- लावल.मां
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मनि विण अयोजन दि घणां, वीरमती मेल्हइ बेसणां.
संपादके 'अभोखण' नुं मूळ सं. 'अम्भोष्ण' मानी 'गरम पाणी' एवो अर्थ क छे. पण सत्कार रूपे सींचवामां आवता पाणीनो अर्थ स्पष्ट छे. बेसणां आपवानुं पछी आवे छे ते पण सूचक छे.
आरारा. मां
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संपुटि मिल्या बारि ए, आभोखइ आपउ वारि ए.
लग्न वेळाए वरने पोंखवामां आवे छे ते प्रसंगनो अहीं संदर्भ छे एटले संपादके 'अभोखइ' नो लीघेलो 'सत्कार रूपे पाणीनुं सिंचन करवामां' ए अर्थ यथायोग्य छे. अभिऊ. मां 'अंबोषण' शब्द मळे छे :
राणी सुदर्शना दीघलां भृंगार रे, अंबोषण सहूनि मानिं हवा.
संपादके 'अंबोषण'नो 'कीगळा' अर्थ आप्यो छे, जे भाग्ये ज प्रस्तुत गणाय. प्रसंग महेमानोना स्वागतनो के एटले 'अंबोषण' ते 'अभोखण' ने स्थाने आवेलो होय एम लागे छे. "बधांने मान रूपे पाणीनुं सिंचन करवामां आव्युं" एवो अर्थ लई शकाय
छे.
'अबोखण', अलबत्त, सिंहा (शा). मां 'अपोशण' एटले 'भोजन वेळाना आचमन' ना अर्थमां वपरायेलो मळे छे :
अबोट अबोखण अति घणां, को भिक्षावश थाय.
ब्राह्मणना व्यवहारोना वर्णनमां आ आवे छे तेथी अबोट करवा, आचमन लेवुं, भिक्षा मागवी वगेरेने ब्राह्मणना व्यवहारो तरीके समजी शकाय छे. आथी संपादके आपेलो 'अपोशण' अर्थ योग्य छे. पण 'अभिवन-ऊझणुं 'मां 'अंबोषण' ए 'अभोखण' नो
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