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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
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. घोडी शब्दार्थों
आरारा.मां पण आ शब्द वपरायेलो मळे छे: __ वहिली नावि तु तुं जाणि, मइ तुझ दीठउ अप्रमाण.
संपादके 'अप्रमाण'नो 'असिद्ध' एवो अर्थ आप्यो छे. अहीं 'असिद्ध' एटले 'अशक्य, असंभवित' : "वहेली न आवे तो तने हुं जोई शकुंते तुं अशक्य/असंभवित जाणजे (एटले के हुं-तुं मळी शकीशुं नहीं)."
२९. अबाह गुर्जरा.मां 'अबाह' शब्द आ प्रमाणे वपरायेलो छे : -
तापिइं पीडिउ विलवइ अवाह. संपादकोए 'अबाह'ना मूळमां 'बाह' शब्द मानी एनो अर्थ 'without hands' (हाथ विना) एवो आप्यो छे. आ अर्थ अहीं असंगत छे ते सहेलाईथी समजाय एवं छे. रडवानुं वळी बाहु विनानुं केQ ? ए स्पष्ट छे के 'अबाध परथी 'अबाह' आवेलो छे ने एनो अर्थ थाय 'अंतराय विना, अत्यंत, खूब' : "तापथी पीडवामां आवेलो ते खूब विलपे छे."
ए नवाईनी वात छे के अन्यत्र ‘अबाहु' शब्द वपरायेलो छे त्यां संपादकोए एने 'अबाध'मांथी व्युत्पन्न करी एनो 'without obstacle, freely' (अन्तराय विना, विघ्न विना, मुक्तपणे) एवो अर्थ आप्यो छे. निर्दिष्ट प्रयोगो आ प्रमाणे छ :
(१) पांचि पंचाले लिउ सनाहु, आविउ घडूउ कूयरु अबाहु.
(२) धाइं धसई ते ऊधसई, विलसइं हसइं अबाहु. बीजा उदाहरणमां 'मुक्तपणे' अर्थ चाली शके तेम छे पण 'अन्तराय विना' एटले 'खूब' ए अर्थ पण करी शकाय : "मुक्तपणे/खूब हसे छे." पण पहेला उदाहरणमां ए अर्थ योग्य रीते बंध बेसशे नहीं. त्यां 'अबाहु' कुंवर घटोत्कचनुं विशेषण छे. एटले 'जेने कशी अंतराय नडतो नथी एवो वीरपुरुष, अप्रतिरोध्य' एवो कंईक अर्थ लेवो जोईए एम लागे छे : "अप्रतिरोध्य घटोत्कच कुंवर आव्यो." ३०. अभोखउ, आभोखउ, अभोखण, अभोखj, अंबोषण, अबोखण विक्रच.मां 'अभोखु' शब्द आम वपरायेलो छ :
खापरउ जाम पहुतु बारि, दीयउ अभोतु पाणीधारि. संपादके 'अभोखुनो 'अपोषण' अर्थ आप्यो छे. 'अपोषण' (सं.आपोशान) एटले जमती वखते, आरंभे के अंते आचमन लेवू ते. अहीं ए अर्थ केवी रीते संगत बने? भोजन प्रसंग तो अहीं छे ज नहीं. खापरो बारणे आवे छे त्यारे तेना करवामां आवता सत्कार- अहीं वर्णन छे, जेमां पाणीनी धाराथी 'अभोखु' आपवामां आव्यु एम कहेवामां आव्युं छे. ए वर्णन आचमन साथे बंध बेसे नहीं.
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