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[६४] पूरतो अहीं एनो उपयोग कर्यो छे. मोसाच. (विश्वनाथ जानीरचित) मोसाळाचरित्र, संपा. महेन्द्र अ. दवे, प्रका.
परिमाण प्रकाशन, अमदावाद, १९८७..
आ कृतिनुं रचनावर्ष १६५२ (सं.१७०८) छे.
शब्दकोशमां आशरे ८० शब्दो छे. (शिवदासकृत) रूपसेन चतुष्पदिका, संपा. कनुभाई, व्र. शेठ, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९६८.
कृतिमां रचनावर्ष नथी, परंतु कवि शिवदास सोळमी सदीना अंतमां के सत्तरमी सदीना आरंभमां थया होवानुं अनुमान थयुं छे.
शब्दकोशमा ७० जेटला शब्दो छे. एमां क्वचित् वर्णक्रमभंग देखाय
रूपच.
रूस्तस.
ललिरा.
(कवि शामळ भट्टरचित) रूस्तमनो सलोको, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५६.
कृतिनी रचना १७२५ (सं.१७८१)मां थयेली छे.
शब्दकोशमा ८० जेटला शब्दो छे. एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे.
परिशिष्ट रूपे एक प्रतमांनी टिप्पणीओ नोंधी छे तेमां केटलाक शब्दार्थो छे ते शब्दकोशना शब्दो परत्वे पण क्यांक मार्गदर्शक बने छे. (क्षमाकलशकृत) ललितांगकुमार रास, संपा, कनुभाई व्र. शेठ, धनवंत ति. शाह, प्रका. समता प्रकाशन, अमदावाद, १९८२.
कृतिनुं रचनावर्ष १४९७ (सं.१५५३) छे.
शब्दकोशमां आशरे ८० शब्दो छ. एमां छापभूलो छ ने स्थाननिर्देशमां पण क्यांक भूल थयेली छे. कवि लावण्यसमयनी लघु काव्यकृतिओ, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. पोते, विरमगाम, १९६९.
संगृहीत कृतिओ १४९७(सं.१५५३)थी १५३१ (सं.१५८७) आसपासनां रचनावर्षो दर्शावे छे.
शब्दकोशमा १४०० उपरांत शब्दो छे. एमां 'गढ' 'दोट' जेवा अत्यारे जाणीता कोई शब्दो छ, 'नई' 'नवउ' 'नडइ' जेवा अत्यारना शब्दथी केवळ अंत्य स्वरनो ज उच्चारभेद दर्शावता शब्दो छे, ने 'पइठउ' 'पइठा' जेवा केवळ व्याकरणी रूपे करीने जुदा पडता शब्दो पण छे.
लावल.
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