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नेमिछं.
पंचवा.
प्रधुचु.
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सिंहासन बत्रीसीनी २३मी वार्ता होई ए १७२९थी १७४५ सुधीमां रचायेली गणाय. शामळनी अन्य कृतिओ १७१८थी १७६५नां रचनावर्षो बतावे छे.
बन्ने कृतिओना अलग शब्दकोशो छे. नंदबत्रीसीना शब्दकोशमां आशरे ९० तथा कस्तुरचंदनी वारताना शब्दकोशमां आशरे ७५ शब्दो छे.
( कवि लावण्यसमयविरचित) नेमि रंगरत्नाकर छंद, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९६५.
कृति १४९० (सं. १५४६) मां रचायेली छे.
शब्दकोशमां ९०० जेटला शब्दो छे. 'अणावइ' 'करि' (=करमां, कर वडे) जेवा केवळ मध्यकालीन अंत्य प्रत्ययवाळा शब्दोनो समावेश छे अने 'गयणंगण' 'गयणंगणं' 'गयणंगणि' ए जुदां विभक्तिरूपोवाळा शब्दो पण अलग नोंध्या छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो घणे स्थाने ओळखाव्यां छे ने व्युत्पत्ति पण दर्शावी छे.
( अज्ञात गुजराती गद्यकार विरचित) पंचदंडनी वार्ता, संपा. सोमाभाई धू. पारेख, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७४.
कृतिनुं रचनावर्ष नथी, परंतु एनी हस्तप्रतनुं लेखनवर्ष १६८२ (सं. १७३८) मळे छे.
शब्दकोशमां आशरे २०० शब्दो छे. '०का' जेवा कोई प्रत्ययनो पण एमां समावेश छे. शब्दो विशे व्युत्पत्तिदर्शक विस्तृत नोंध छे ते उपरांत केटलाक शब्दोना अर्थने पूर्वपरंपरा आपीने वीगतथी समजाव्या छे. लेखनमां 'ष' पण उच्चारमां 'ख' थी आरंभाता शब्दो 'ख'ना क्रममां ज लीधा छे.
'उणे' (= एणे), 'उवा' (=९), 'क' (=के), 'कणे' (=कोणे), 'क्यु' (क) वगेरे शब्दो बतावे छे के कृतिनी हस्तप्रत तद्दन लौकिक, ग्राम्य उच्चारणोने अनुसरे छे.
(वाचक कमलशेखरकृत) प्रद्युम्नकुमार चुपई, संपा. महेन्द्र बा. शाह, अमदावाद, १९७८.
कृतिनुं रचनावर्ष १५५० (सं. १६२६) छे.
शब्दकोश आशरे २०० शब्दोने समावे छे. घणा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे अने केटलाक शब्दोना अर्थो माटे आधारो आप्या छे.
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