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चित्तसं.
फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५५.
संगृहीत कृतिओ रचनावर्ष धरावती नथी, पण ए १४००थी १४७५ना आसपासना गाळामां रचायेली होवानुं नक्की थई शके छे.
शब्दकोशमां १५० जेटला शब्दो छे. शब्दोना संस्कृत-प्राकृत-देश्य मूळ दाव्यां छे. (अखाजीकृत) चित्तविचारसंवाद, संपा. कीर्तिदा जोशी, प्रका. पोते, अमदावाद, १९९२. ___ कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग नक्की थई शके छे.
शब्दकोश बे विभागमां वहेंचायेलो छे - सामान्य शब्दकोश तथा पारिभाषिक अने पौराणिक कोश. आ संकलित शब्दकोशमां सामान्य शब्दकोशना शब्दो ज लीधा छे, परंतु एमां पारिभाषिक कोशनो हवालो आप्यो छे त्यां पारिभाषिक कोशने आधारे आ संकलित कोशमां अर्थ आप्यो छे.
सामान्य शब्दकोशमां ६०० उपरांत शब्दो छे. शब्दो परत्वे प्राप्त बधा संदर्भो नोंध्या छे. थोडाक शब्दो वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे. जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि, संपा. अगरचन्द नाहटा, प्रका. सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टिट्यूट, बिकानेर, सं.२०१७.
___ आमां समाविष्ट बे दीर्घ कृतिओ १६०८ अने १६२२नां रचनावर्षों धरावे छे, पण बीजी घणीबधी लघु कृतिओ रचनावर्षो धरावती नथी. ते उपरांत जयकीर्तिगणिनो जिनराजसरि रास पण आमां समावायो छे. जिनराजसूरिनो जीवनकाळ १५९१थी १६४३ अने कवनकाळ १६०८थी १६४३ प्राप्त छे. जिनराजसूरि रास एमनी हयातीमां ज रचायो छे.
शब्दकोशमां आशरे ५०० शब्दो छे. संगृहीत कृतिओमां कोईक प्राकृत छे ने घणा जैन पारिभाषिक शब्दो धरावे छे तेना शब्दो पण आ कोशमां छे. एकथी वधु स्थानो निर्देशायां छे, पण केटलाक शब्दोना अर्थ आपवाना रही गया छे. अर्थ हिंदी भाषामां आप्या छे तेनुं आ संकलित कोशमां, जरूर लागी त्यां, गुजराती करी लीधुं छे. शब्दो क्वचित वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे. तेरमा-चौदमा शतकनां त्रण प्राचीन गुजराती काव्यो, संपा. हरिवल्लभ चू. भायाणी, प्रका. फार्बस गुजराती सभा, मुंबई, १९५५. संगृहीत कृतिओ
जिनरा.
तेरका.
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