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गव्वं मा वहसु
पुण्णिमायंद |
दीसिहिसि तुमं कइया जह भग्गो वलय खंडो व्व ॥
अरे पूर्णचन्द्र ! गर्व मत करो । दिखाई दोगे ।
तुम कभी टूटे कंकण के टुकड़े के समान
-वजालग्ग ( ५० / १८ )
णिच्चमाउत्तो ।
जो अवमाणकरणं, दोसं परिहरइ सो णाम होदि माणी, ण दु गुणवत्तेण माणेण ॥
जो दूसरे को अपमानित करने के दोष का सदा सावधानीपूर्वक परिहार करता है, वही यथार्थ में मानी है । गुणशून्य अभिमान करने से कोई मानी नहीं होता ।
- भगवती आराधना ( १४२६ )
माणी विस्सो सव्वस्स होदि कलह-भय- वेर - दुक्खाणि । पावदि माणी णियदं इह-परलोए य अवमाणं ॥
घमण्डी व्यक्ति सबका वैरी हो जाता है । और परलोक में कलह, भय, वैर, दुःख, और करता है ।
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धम्ममहिंसासमं
अहिंसा के समान अन्य कोई धर्म नहीं है ।
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अभिमानी व्यक्ति इस लोक अपमान को अवश्य ही प्राप्त
- अर्हत्प्रवचन ( ७/३६ )
नत्थि ।
जीव वहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ।
किसी भी दूसरे जीव की हत्या वास्तव में अपनी ही हत्या है और दूसरे जीव की दया अपनी ही दया है ।
- भक्तपरिज्ञा (६३)
अहिंसा
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- भक्तपरिज्ञा ( ११ )
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