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आराधना कथाकोश
उन मुनिराजोंको मैं नमस्कार करता हूँ, जो मोहको जीतनेवाले हैं, रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रसे विभूषित हैं और जिनके चरण-कमल लक्ष्मीके-सब सुखोंके स्थान हैं।
इस प्रकार देव, गुरु और शास्त्रको नमस्कार कर शास्त्रदान करनेवालेको कथा संक्षेपमें यहाँ लिखी जाती है। इसलिये कि इसे पढ़कर सत्पुरुषोंके हृदयमें ज्ञानदानकी पवित्र भावना जाग्रत हो। ज्ञान जीवमात्रका सर्वोत्तम नेत्र है। जिसके यह नेत्र नहीं उसके चर्म नेत्र होने पर भी वह अन्धा है, उसके जीवनका कुछ मूल्य नहीं होता। इसलिये अकिंचित्कर जीवनको मूल्यवान् बनानेके लिए ज्ञान-दान देना ही चाहिये। यह दान सब दानोंका राजा है । और दानों द्वारा थोड़े समय की और एक ही जीवनकी ख्वाइशें मिटेंगी, पर ज्ञान-दानसे जन्म-जन्मकी ख्वाइशें मिटकर वह दाता और वह दान लेनेवाला ये दोनों ही उस अनन्त स्थानको पहुँच जाते हैं, जहाँ सिवा ज्ञानके कुछ नहीं है, ज्ञान ही जिनका आत्मा हो जाता है। यह हुई परलोककी बात । इसके सिवा ज्ञानदानसे इस लोकमें भी दाताकी निर्मल कीर्ति चारों ओर फैल जाती है। सारा संसार उसकी शत-मुखसे बड़ाई करता है । ऐसे लोग जहाँ जाते हैं वहीं उनका मनमाना आव-आदर होता है । इसलिये ज्ञान-दान भुक्ति और मुक्ति इन दोनोंका हो देनेवाला है । अतः भव्यजनोंको उचित है, उनका कर्तव्य है कि वे स्वयं ज्ञान-दान करें और दूसरोंको भी इस पवित्र मार्ग में आगे करें । इस ज्ञान-दानके सम्बन्धमें एक बात ध्यान देनेकी यह है कि यह सम्यक्पनेको लिये हए हो अर्थात् ऐसा हो कि जिससे किसी जीवका अहित, बुरा न हो, जिसमें किसी तरहका विरोध या दोष न हो। क्योंकि कुछ लोग उसे भी ज्ञान बतलाते हैं, जिसमें जीवोंकी हिंसाको धर्म कहा गया है, धर्मके बहाने जीवोंको अकल्याणका मार्ग बतलाया जाता है और जिसमें कहीं कुछ कहा गया है और कहीं कुछ कहा गया है जो परस्परका विरोधी है । ऐसा ज्ञान सच्चा ज्ञान नहीं किन्तु मिथ्याज्ञान है। इसलिए सच्चे-सम्यग्ज्ञान दान देनेकी आवश्यकता है । जीव अनादिसे कर्मोके वश हुआ अज्ञानी बनकर अपने निज ज्ञानमय शुद्ध स्वरूपको भूल गया है और माया-ममताके पेंचीले जालमें फँस गया है, इसलिए प्रयत्न ऐसा होना चाहिए कि जिससे यह अपना वास्तविक स्वरूप प्राप्त कर सके । ऐसी दशामें इसे असुखका रास्ता बतलाना उचित नहीं । सुख प्राप्त करनेका सच्चा प्रयत्न सम्यग्ज्ञान है। इसलिये दान, मान, पूजा-प्रभावना, पठन-पाठन आदिसे इस सम्यग्ज्ञानकी
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