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सम्यग्दर्शनके प्रभावकी कथा
३९३ फिर बड़े उत्सवके साथ यहाँ इसका श्रेणिक महाराजके साथ ब्याह हो गया । पुण्यके उदयसे श्रेणिककी सब रानियोंमें चेलिनीके ही भाग्यका सितारा चमका-पट्टरानो यही हुई।
यह बात ऊपर लिखी जा चुकी है-श्रेणिक एक संन्यासोके उपदेशसे वैष्णवधर्मी हो गये थे और तबसे वे इसी धर्मको पालते थे। महारानी चेलिनी जैनी थी । जिनधर्म पर जन्मसे ही उसकी श्रद्धा थी। इन दो धर्मोंको पालनेवाले पति-पत्नीका अपने-अपने धर्म की उच्चता बाबत रोज-रोज थोड़ा बहुत वार्तालाप हुआ करता था। पर वह बड़ी शान्तिसे । एक दिन श्रेणिकने चेलिनीसे कहा-प्रिये, उच्च घरानेकी सुशील स्त्रियोंका देव पूछो तो पति है तब तुम्हें मैं जो कहूँ वह करना चाहिए । मेरो इच्छा है कि एक बार तुम इन विष्णभक्त सच्चे गुरुओंको भोजन दो। सुनकर महारानो चेलिनीने बड़ी नम्रताके साथ कहा-अच्छा नाथ, दूंगी। __इसके कुछ दिनों बाद चेलिनीने कुछ भागवत् साधुओंका निमंत्रण किया और बड़े गौरवके साथ उन्हें अपने यहाँ बुलाया। आकर वे लोग अपना ढोंग दिखलानेके लिये कपट, मायाचारीसे ईश्वराराधन करनेको बैठे। उस समय चेलिनीने उनसे पूछा-आप लोग क्या करते हैं ? उत्तरमें उन्होंने कहा-देवी, हम लोग मलमूत्रादि अपवित्र वस्तुओंसे भरे इस शरीरको छोड़कर अपने आत्माको विष्णु अवस्थामें प्राप्त कर स्वानुभवका सुख भोगते हैं।
सुनकर चेलिनीने उस मंडपमें, जिसमें कि सब साधु ध्यान करनेको बैठे थे, आग लगवा दी । आग लगते ही वे सब भाग खड़े हुए। यह देख श्रेणिकने बड़े क्रोधके साथ चेलिनीसे कहा-आज तुमने साधुओंके साथ अनर्थ किया । यदि तुम्हारो उन पर भक्ति नहीं थी, तो क्या उसका यह अर्थ है कि उन्हें जानसे मार डालना ? बतलाओ उन्होंने तुम्हारा क्या . अपराध किया जिससे तुम उनके जीवनकी ही प्यासी हो उठी ? __रानी बोली-नाथ, मैंने तो कोई बुरा काम नहीं किया और जो किया वह उन्हींके कहे अनुसार उनके लिए सुखका कारण था। मैंने तो केवल परोपकार बद्धिसे ऐसा किया था। जब वे लोग ध्यान करनेको बैठे तब मैंने उनसे पूछा कि आप लोग क्या करते हैं, तब उन्होंने मुझे कहा कि-हम अपवित्र शरीरको छोड़कर उत्तम सुखमय विष्णुपदको प्राप्त करते हैं । तब मैंने सोचा कि-ओहो, ये जब शरीर छोड़कर विष्णुपद प्राप्त करते हैं तब तो बहुत ही अच्छा है और इससे यह और उत्तम होगा
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