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________________ ३३२ आराधना कथाकोश करेगी, अपने कर्म पर पछतायेगी तब तेरे सिर परसे यह छत्री गिरेगी।" देवीके कहे अनुसार ब्राह्मणीने वैसा ही किया। तब कहीं उसका पीछा छूटा, छत्री सिरसे अलग हो सकी। इस आत्मा-निन्दासे ब्राह्मणीका पापकर्म बहुत हलका हो गया, वह शुद्ध हुई। इसी तरह अन्य भव्यजनोंको भी उचित है कि वे प्रतिदिन होनेवाले बुरे कर्मोंकी गुरुओंके पास आलोचना किया करें। उससे उनका पाप नष्ट होगा और अपने आत्माको वे शुद्ध बना सकेंगे। किसी पुरुषके शरीरमें काँटा लग गया और वह उससे बहुत कष्ट पा रहा है । पर जब तक वह काँटा उसके शरीरसे न निकलेगा तब तक वह सुखी नहीं हो सकता। इस लिए उस काँटेको निकाल फेंककर वैसे वह पुरुष सुखी होता है, उसी तरह जो आत्म-हितैषी जैनधर्मके बताये सिद्धान्त पर चलनेवाले वीतरागी साधुओंकी शरण ले अपने आत्माको कष्ट पहुँचानेवाले पापकर्मरूपी काँटेको कृतकर्मोंकी आलोचना द्वारा निकाल फैकते हैं वे फिर कभी नाश न होनेवाली आत्मीक लक्ष्मीको प्राप्त करते हैं। ८६. सोमशर्म मुनिकी कथा सर्वोत्तम धर्मका उपदेश करनेवाले जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर सोमशर्म मुनिकी कथा लिखी जाती है । ___ आलोचना, गर्हा, आत्मनिन्दा, व्रत, उपवास, स्तुति और कथाएँ इनके द्वारा प्रमादको, असावधानीको नाश करना चाहिए। जैसे मंत्र, औषधि आदिसे विषका वेग नाश किया जाता है। इसी सम्बन्धकी यह कथा है। ___ भारतके किसी एक हिस्सेमें बसे हुए पुण्ड्रक देशके प्रधान शहर देवीकोटपुरमें सौमशर्म नामका ब्राह्मण हो चुका है । सोमशर्म वेद और वेदांगका, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष, शिक्षा और कला का अच्छा विद्वान् था। इसकी स्त्रीका नाम सोमिल्या था। इसके अग्निभूति और वायुभूति दो लड़के थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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