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सोमशर्म मुनिको कथा यहाँ विष्णुदत्त नामका एक और ब्राह्मण रहता था। इसकी स्त्रीका नाम विष्णुश्री था। विष्णुदत्त अच्छा धनी था। पर स्वभावका अच्छा आदमी न था। किसी दिन कोई खास जरूरत पड़ने पर सोमशर्मने विष्णुदत्तसे कुछ रुपया कर्ज लिया था। उसका कर्ज अदा न कर पाया था कि एक दिन सोमशर्मको किसी जैनमुनिके धर्मोपदेशसे वैराग्य हो जानेसे वह मुनि हो गया । वहाँसे विहार कर वह कहीं अन्यत्र चला गया और दूसरे नगरों और गाँवोंमें धर्मका उपदेश करता हुआ एक बार फिर वह कोटपुरमें आया । विष्णुदत्तने तब इसे देखकर पकड़ लिया और कहा-साधुजी, आपके दोनों लड़के तो इस समय महा दरिद्र दशामें हैं। उनके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है। वे मेरा रुपया नहीं दे सकते। इसलिये या तो आप मेरा रुपया दे दोजिये, या अपना धर्म बेच दोजिये । सोमशर्म मुनिके सामने बड़ी कठिन समस्या उपस्थित हई। वे क्या करें, इसकी उन्हें कुछ सूझ न पड़ी। तब उनके गुरु वीर-भद्राचार्यने उनसे कहा-अच्छा तुम जाओ और धर्म बेचो ! उनकी आज्ञा पाकर सोमशर्म मुनि मसानमें जाकर धर्म बेचने लगे। इस समय एक देवीने आकर उनसे पूछा-मुनिराज, जिस धर्मको आप बेच रहे हैं, भला, कहिये तो वह कैसा है ? उत्तर में मुनिने कहा-मेरा धर्म अट्ठाईस मूलगुण और चौरासी लाख उत्तरगणोंसे युक्त है तथा उत्तम-क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य इन दश भेद रूप है। धर्मका यह स्वरूप श्रीजिनेन्द्र भगवान्ने कहा है । मुनि द्वारा अपने बेचे जानेवाले धर्मको इस प्रकार व्याख्या सुनकर वह देवी बहुत प्रसन्न हुई। उसने मुनिको नमस्कार कर धर्मको प्रशंसामें कहा-मुनिराज, आपने जो कहा वह बहुत ठोक है । यही धर्म संसारको वश करनेके लिए एक वशीकरण मंत्र है, अमूल्य चिन्तामणि है, सुखरूप अमृतकी धारा है, और मनचाही वस्तुओंके दुहने-देनेके लिये कामधेनु है । अधिक क्या, किन्तु यह समझना चाहिये कि संसारमें जो-जो मनोहरता देख पड़ती है वह सब एक धर्महोका फल है। धर्म एक सर्वोत्तम अमोल वस्तु है। उसका मोल हो ही नहीं सकता। पर मुनिराज, आपको उस ब्राह्मणका कर्ज चुकाना है। आपका यह उपसर्ग दूर हो, इसलिये दीक्षा समय लोंच किये आपके बालोंको उसे कर्जके बदले दिये देती हैं। यह कहकर देवी उन बालोंको अपनी देवी-मायासे चमकते हुए बहुमूल्य रत्न बनाकर आप अपने स्थान पर चल दी। सच है, जैनधर्मका प्रभाव कौन वर्णन कर सकता है, जो कि सदा ही सुख देनेवाला और देवों द्वारा पूजा किया जाता है।
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