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आत्मनिन्दा की कथा
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ही उनकी मालकिन - पट्टरानी बनाकर उन सबको उसकी सेवा करनेके लिए बाध्य किया ।
जिस प्रकार बुद्धिमतीने अपनी आत्म-निन्दा की, उसी तरह अन्य बुद्धिवानों और क्षुल्लक आदिको भी जिन भगवान् के सामने भक्तिपूर्वक आत्मनिन्दा - पूर्वकर्मोकी आलोचना करना उचित है ।
उत्तम कुल और उत्तम सुखोंकी देनेवाली तथा दुर्गतिके दुःखोंकी नाश करनेवाली जिन भगवान्की भक्ति मुझे भी मोक्ष का सुख दे ।
८५. आत्मनिन्दा की कथा
सब दोषोंके नाश करनेवाले और सुखके देनेवाले ऐसे जिन भगवान्को नमस्कार कर अपने बुरे कर्मोंकी निन्दा - आलोचना करनेवाली बीरा ब्राह्मणीकी कथा लिखी जाती है ।
दुर्योधन जब अयोध्याका राजा था तब की यह कथा है । यह राजा बड़ा न्यायी और बुद्धिमान् हुआ है । इसकी रानीका नाम श्रीदेवो था । श्रीदेवी बड़ी सुन्दरी और सच्ची पतिव्रता थी ।
यहाँ एक सर्वोपाध्याय नामका ब्राह्मण रहता था । इसकी स्त्रीका नाम बीरा था । इसका चाल-चलन अच्छा न था । जवानीके जोरमें यह मस्त रहा करती थी । उपाध्यायके घर पर एक विद्यार्थी पढ़ा करता था । उसका नाम अग्निभूति था । बीरा ब्राह्मणी के साथ इसकी अनुचित प्रीति थी । ब्राह्मणी इसे बहुत चाहती थी । पर उपाध्याय इन दोनोंके सुखका काँटा था । इसलिये ये मनमाना ऐशोआराम न कर पाते थे । ब्राह्मणीको यह बहुत खटका करता था । सो एक दिन मौका पाकर ब्राह्मणीने अपने पतिको मार डाला । और उसे मसानमें फेंक आनेको छत्रोमें छुपाकर अन्धेरी रात में वह घरसे निकली । मसानमें जैसे हो वह उपाध्यायके मुर्देको फेंकनेको तैयार हुई कि एक व्यन्तरदेवीने उसके ऐसे नीच कर्म पर गुस्सा होकर छत्रीको कील दिया और कहा - "सबेरा होने पर जब तू सारे शहरकी स्त्रियोंके घर-घर पर जाकर अपना यह नीच कर्म प्रगट
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