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आराधना कथाकोश श्रेणिककी वीरता और बुद्धिमानी देखकर उपश्रेणिकको निश्चय हो गया कि राजा यही होगा और इसी के यह योग्य भी है। श्रेणिक के राजा होनेकी बात तब तक कोई न जान पाये जब तक कि वह अपना अधिकार स्वयं अपनी भुजाओं द्वारा प्राप्त न कर ले। इसके लिए उन्हें उसके रक्षाको चिन्ता हुई। कारण उपश्रेणिक राज्यका अधिकारी तिलकवतीके पुत्र चिलातको बना चुके थे और इस हालतमें किसी दुश्मनको या चिलातके पक्षपातियोंको यह पता लग जाता कि इस राज्यका राजा ता श्रेणिक हो होगा, तब यह असम्भव नहीं था कि वे उसे राजा होने देनेके पहले हो ' मार डालते ? इसलिये उपश्रेणिकका यह चिन्ता करना वाजिब था, समयोचित और दूरदर्शिताका था । इसके लिये उन्हें एक अच्छी युक्ति सूझ गई और बहुत जल्दी उन्होंने उसे कार्य में भी परिणित कर दिया। उन्होंने श्रेणिकके सिर यह अपराध मढ़ा कि उसने कुत्तोंका झूठा खाया, इसलिये वह भ्रष्ट है। अब वह न तो राजघरानेमें ही रहने योग्य रहा और न देश में हो । इसलिये मैं उसे आज्ञा देता हूँ कि वह बहुत जल्दो राजगृहसे बाहर हो जाये। सच है पुण्यवानोंकी सभी रक्षा करते हैं।
श्रेणिक अपने पिताकी आज्ञा पाते ही राजगृहसे उसी समय निकल गया। वह फिर पलभरके लिए भी वहाँ न ठहरा। वहाँसे चलकर वह द्राविड़ देशको प्रधान नगरो काञ्चोमें पहुंचा। इसने अपनी बुद्धिमानीसे वहाँ कोई ऐसा वसीला लगा लिया जिससे इसके दिन बड़े सुखसे कटने लगे।
इधर उपश्रेणिक कुछ दिनों तक तो और राजकाज चलाते रहे। इसके बाद कोई ऐसा कारण उन्हें देख पड़ा जिससे संसार और विषयभोगोंसे वे बहुत उदासीन हो गये। अब उन्हें संसारका वास एक बहुत ही पेंचोला जाल जान पड़ने लगा। उन्होंने तब अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार चिलातपुत्रको राजा बनाकर नव जीवोंका कल्याण करनेवाला मुनिपद ग्रहण कर लिया।
चिलात-पुत्र राजा हो गया सही, पर उसका जाति-स्वभाव न गया । और ठीक भी है कौएको मोरके पांख भले ही लगा दिये जायँ, पर वह मोर न बनकर रहेगा कौआका कौआ ही। यही दशा चिलातपुत्रको हुई । वह राजा बना भी दिया गया तो क्या हआ, उसमें अगतके तो कुछ गुण नहीं थे, तब वह राजा होकर भी क्या बड़ा कहला सका? नहीं। अपने जातिस्वभावके अनुसार प्रजाको कष्ट देना, उस पर जबरन जोर-जुल्म करना
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