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चिलात-पुत्रकी कथा
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उनके मन में यह खटका सदा बना रहता था कि कहीं इसके हाथमें राज्य जाकर धूलधानी न हो जाय ! जो हो, पर वे अपनी प्रतिज्ञाके तोड़नेको लाचार थे । एक दिन उन्होंने एक अच्छे विद्वान् ज्योतिषीको बुलाकर उससे पूछा - पंडितजी, अपने निमित्तज्ञानको लगाकर मुझे आप यह समझाइए कि मेरे इन पुत्रोंमें राज्यका मालिक कौन होगा ? ज्योतिषीजी बहुत कुछ सोच-विचार के बाद राजा से बोले - सुनिये महाराज, मैं आपको इसका खुलासा कहता हूँ । आपके सब पुत्र खीरका भोजन करनेको एक जगह बैठाये जायँ और उस समय उन पर कुत्तोंका एक झुंड छोड़ा जाय । तब उन सबमें जो निडर होकर वहीं रखे हुए सिंहासन पर बैठ नगारा जाता जाय और भोजन भी करता जाय और दूरसे कुत्तोंको भी डालकर खिलाता जाय, उसमें राजा होनेकी योग्यता है । मतलब यह कि अपनी बुद्धिमानी से कुत्तोंके स्पर्शसे अछूता रहकर आप भोजन कर ले |
दूसरा निमित्त यह होगा कि आग लगने पर जो सिंहासन, छत्र, चंवर आदि राज्यचिन्हों को निकाल सके, वह राजा हो सकेगा । इत्यादि और भी कई बातें है, पर उनके विशेष कहने की जरूरत नहीं ।
कुछ दिन बीतने पर उपश्रेणिकने ज्योतिषीजीके बताये निमित्तकी जाँच करनेका उद्योग किया। उन्होंने सिंहासन के पास ही एक नगारा रखवाकर वहीं अपने सब पुत्रों को खीर खानेको बैठाया । वे जीमने लगे कि दूसरी ओरसे कोई पाँच सौ कुत्तोंका झुण्ड दौड़कर उन पर लपका । उन कुत्तोंको देखकर राजकुमारोंके तो होश गायब हो गये । वे सब चीख मारकर भाग खड़े हुए। पर हाँ एक श्रेणिक जो इन सबसे वीर और बुद्धिमान् था, उन कुत्तोंसे डरा नहीं और बड़ी फुरतीसे उठकर उसने खीर परोसी हुई बहुत-सी पत्तलोंको एक ऊँची जगह रख कर आप पास हो रखे हुए सिंहासन पर बैठ गया और आनन्दसे खीर खाने लगा । साथ में वह उन कुत्तों को भी थोड़ी-थोड़ी देर बाद एक एक पत्तल उठा-उठा डालता गया और नगारा बजाता गया, जिससे कि कुत्ते उपद्रव न करें ।
इसके कुछ दिनों बाद उपश्रेणिकने दूसरे निमित्तकी भी जाँच की । अबकी बार उन्होंने कहीं कुछ थोड़ी-सी आग लगवा लोगों द्वारा शोरोगुल करवा दिया कि राजमहल में आग लग गई । श्रेणिकने जैसे ही आग लगनेकी बात सुनी वह दौड़ा गया और झटपट राजमहल से सिंहासन, चँवर आदि राज्यचिन्हों को निकाल बाहर हो गया । यही श्रेणिक आगे तोर्थंकर
होगा ।
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