________________
चारुदत्त सेठकी कथा
१७७
पुत्रकी युवावस्था में यह दशा देखकर उसकी माँको बड़ी चिन्ता हुई । चारुदत्तकी विषयों की ओर प्रवृत्ति हो, इसके लिए उसने चारुदत्तको ऐसे लोगोंकी संगति में डाल दिया, जो व्यभिचारी थे । इससे उसकी माँका अभिप्राय सफल अवश्य हुआ । चारुदत्त विषयों में फँस गया और खूब फँस गया । पर अब वह वेश्याका ही प्रेमी बन गया। उसने तबसे घरका मुँह तक नहीं देखा । उसे कोई लगभग बारह वर्ष वेश्याके यहाँ रहते हुए बीत गये । इस अरसे में उसने अपने घरका सब धन भी गवा दिया । चम्पा में चारुदत्तका घर अच्छे धनिकों की गिनती में था, पर अब वह एक साधारण स्थितिका आदमी रह गया । अभीतक चारुदत्तके खर्च के लिए उसके घरसे नगद रुपया आया करता था । पर अब रुपया खुट जानेसे उसकी स्त्रीका गहना आने लगा। जिस वेश्याके साथ चारुदत्तका प्रेम था उसको कुट्टिनो माँने चारुदत्तको अब दरिद्र हुआ समझकर एक दिन अपनी लड़की से कहाबेटी, अब इसके पास धन नहीं रहा, यह भिखारी हो चुका, इसलिए अब तुझे इसका साथ जल्दी छोड़ देना चाहिए। अपने लिए दरिद्र मनुष्य किस कामका | वही हुआ भी । वसन्तसेनाने उसे अपने घरसे निकाल बाहर किया । सच है, वेश्याओंकी प्रोति धनके साथ ही रहती है। जिसके पास जब तक पैसा रहता है उससे तभी तक प्रेम करती है । जहाँ धन नहीं वहाँ वेश्याका प्रेम भी नहीं । यह देख चारुदत्तको बहुत दुःख हुआ । अब उसे जान पड़ा कि विषय-भोगों में अत्यन्त आसक्तिका कैसा भयंकर परिणाम होता है । वह अब एक पलभरके लिए भी वहाँ पर न ठहरा और अपनी प्रियाके भूषण ले-लिवाकर विदेश चलता बना। उसे इस हालत में माताको अपना कलंकित मुँह दिखलाना उचित नहीं जान पड़ा ।
यहाँसे चलकर चारुदत्त धीरे-धीरे उलूख देशके उशिरावर्त नामके शहर में पहुँचा । चम्पासे जब यह रवाना हुआ तब साथ में इसका मामा भी हो गया था । उशिरावर्त में इन्होंने कपासकी खरीद की । यहाँसे कपास लेकर ये दोनों तामलिप्ता नामक पुरीकी ओर रवाना हुए। रास्ते में ये एक भयंकर वनोमें जा पहुँचे । कुछ विश्राम के लिए इन्होंने यहीं डेरा डाल दिया । इतनेमें एक महा आंधी आई। उससे परस्परकी रगड़ते बाँसोंमें आग लग उठी । हवा चल ही रही थी, सो आगकी चिनगारियाँ उड़कर इनके कपास पर जा पड़ीं। देखते-देखते वह सब कपास भस्मीभूत हो गया । सच है, बिना पुण्यके कोई काम सिद्ध नहीं हो पाता है । इसलिए पुण्य कमानेके लिए भगवान् के उपदेश किये मार्गपर सबको चलना कर्तव्य है । इस हानिसे चारुदत्त बहुत ही दुःखी हो गया। वह यहाँसे किसी दूसरे देश
१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org