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चारुदत्त सेठको कथा
१७५ जाना पड़ा। सच है, विषयों द्वारा ठगे गये जीवोंकी अपने हितकी ओर कभी प्रीति नहीं होती।
जैसे उस मनुष्यको उपकारी विद्याधरने कुएसे निकालना चाहा, पर वह शहदकी लोलुपतासे अपने हितको नहीं जान सका, ठोक इसी तरह विषयोंमें फंसा हुआ जीव संसाररूपो कुएमें कालरूपी सिंह द्वारा अनेक प्रकारके कष्ट पा रहा है, उसकी आयुरूपी डालोको दिनरात रूपी दो धोले और काले चूहे काट रहे हैं, कुएके चार सर्परूपी चार गतियाँ इसे डसने के लिए मुंह बाये खड़ी हैं और गुरु इसे हितका उपदेश दे रहे हैं। तब भी यह अपना हित न कर शहदकी बूंदरूपी विषयोंमें लुब्ध हो रहा है और उनकी ही अधिक-अधिक इच्छा करता जाता है। सच तो यह है कि अभी इसे दुर्गतियोंका दुःख बहुत भोगना है। इसीलिए सच्चे मार्गकी ओर इसकी दृष्टि नहीं जाती।
इस प्रकार यह संसाररूपी भयंकर समुद्र अत्यन्त दुःखोंका देनेवाला है और विषयभोग विष मिले भोजन या दुर्जनोंके समान कष्ट देनेवाले हैं। इस प्रकार संसारको स्थिति देखकर बुद्धिमानोंको जिनेन्द्र भगवान्के उपदेश किये हुए पवित्र धर्मको, जो कि अविनाशी, अनन्तसुखका देनेवाला है, स्थिर भावोंके साथ हृदयमें धारण करना उचित है।
३५. चारुदत्त सेठकी कथा देवों द्वारा पूजा किये गये जिनेन्द्र भगवान्के चरणकमलोंको नमस्कार कर चारुदत्त सेठकी कथा लिखी जाती है।
जिस समयकी यह कथा है, तब चम्पापुरीका राजा शूरसेन था। राजा बड़ा बुद्धिवान् और प्रजाहितेषी था। उसके नीतिमय शासनको सारी प्रजा एक स्वरसे प्रशंसा करतो थी। यहीं एक इज्जतदार भानुदत्त सेठ रहता था । इसको स्त्रोका नाम सुभद्रा था। सुभद्राके कोई सन्तान नहीं हुई, इसलिए वह सन्तान प्राप्तिको इच्छासे नाना प्रकारके देवी-देवताओंकी पूजा किया करती थी, अनेक प्रकारको मान्यताएँ लिया करतो
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