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आराधना कथाकोश जानकर आत्महितके चाहनेवाले सत्पुरुषोंको भगवान्के उपदेश किये पवित्र धर्मपर सदा विश्वास रखना चाहिए, जो कि स्वर्ग और मोक्षके सुखका प्रधान कारण है।
• ३४. विषयों में फंसे हुए संसारी जीवकी कथा ___संसार-समुद्रसे पार करनेवाले सर्वज्ञ भगवान्को नमस्कारकर संक्षेपसे संसारी जीवकी दशा दिखलाई जाती है, जो बहुत ही भयावनी है।
कभी कोई मनुष्य एक भयंकर वनीमें जा पहुंचा। वहाँ वह एक विकराल सिंहको देखकर डरके मारे भागा। भागते-भागते अचानक वह एक गहरे कूएमें गिरा। गिरते हुए उसके हाथोंमें एक वृक्षकी जड़ें पड़ गई। उन्हें पकड़ कर वह लटक गया। वृक्ष पर शहदका एक छत्ता जमा था। सो इस मनुष्यके पीछे भागे आते हुए सिंहके धक्केसे वृक्ष हिल गया। वृक्षके हिलजानेसे मधुमक्खियाँ उड़ गई और छत्तेसे शहदकी बूंदें टप-टप टपककर उस मनुष्यके मुँहमें गिरने लगीं। इधर कुएमें चार भयानक सर्प थे, सो वे उसे डसनेके लिए मुंह बाये हुए फुकार करने लगे और जिन जड़ोंको यह अभागा मनुष्य पकड़े हुए था, उन्हें एक काला और एक धोला ऐसे दो चूहे काट रहे थे। इस प्रकारके भयानक कष्टमें वह फंसा था, फिर भी उससे छुटकारा पानेका कुछ यत्न न कर वह मूर्ख स्वादकी लोलुपतासे उन शहदकी बदोंके लोभको नहीं रोक सका, और उलटा अधिक-अधिक उनकी इच्छा करने लगा। इसी समय जाता हुआ कोई विद्याधर उस ओर आ निकला । उस मनुष्य की ऐसी कष्टमय दशा देखकर उसे बड़ी दया आई। विद्याधरने उससे कहा-भाई, आओ और इस वायुयानमें बैठो। मैं तुम्हें निकाले लेता है। इसके उत्तर में उस अभागेने कहा-हाँ, जरा आप ठहरें, यह शहदकी बूंद गिर रही है, मैं इसे लेकर ही निकलता हूँ। वह बूंद गिर गई। विद्याधरने फिर उससे आनेको कहा। तब भी इसने वही उत्तर दिया कि हाँ यह बूंद आई जाती है, मैं अभी आया । गर्ज यह कि विद्याधरने उसे बहुत समझाया, पर वह "हां इस गिरती हुई बूंदको लेकर आता हूँ," इसी आशामें फंसा रहा। लाचार होकर बेचारे विद्याधरको लोट
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