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________________ आराधना कथाकोश तथापि इसका पुण्यकर्म बहुत प्रबल है उससे यह पूतीगन्ध राजाको पट्टरानी बनेगो। मुनिने दरिद्राका जो भविष्य सुनाया, उसे भिक्षाके लिए आये हुए एक बौद्ध भिक्षुकने भो सुन लिया। उसे जैन ऋषियोंके विषयमें बहुत विश्वास था, इसलिए वह दरिद्राको अपने स्थानपर लिवा लाया और उसका पालन करने लगा। दरिद्रा जैसी-जैसो बड़ो होती गई वैसे ही वैसे यौवन ने उसकी श्रीको खूब सम्मान देना आरम्भ किया। वह अब युवतो हो चली। उसके सारे शरीरसे सुन्दरताकी सुधाधारा बहने लगी। आँखोंने चंचल मीनको लजाना शुरू किया। मुँहने चन्द्रमाको अपना दास बनाया। नितम्बोंको अपनेसे जल्दी बढ़ते देखकर शर्मके मारे स्तनोंका मुंह काला पड़ गया। एक दिन युवती दरिद्रा शहरके बगीचे में जाकर झुलेपर झूल रही थी कि कर्मयोगसे उसी दिन राजा भी वहीं आ गये। उनकी नजर एकाएक दरिद्रा पर पड़ी। उसे देखकर वे अचम्भेमें आ गये कि यह स्वर्ग सुन्दरी कौन है ? उन्होंने दरिद्रासे उसका परिचय पूछा । उसने निस्संकोच होकर अपना स्थान वगैरह सब उन्हें बता दिया। यह बेचारी भोली थी। उसे क्या मालूम कि मुझसे खास मथुराके राजा पूछताछ कर रहे हैं। राजा तो उसे देखकर कामान्ध हो गये। वे बड़ी मुश्किलसे अपने महलपर आये। आते ही उन्होंने अपने मंत्रोको श्रीवन्दकके पास भेजा। मंत्रीने पहुंचकर श्रीवन्दकसे कहा-आज तुम्हारा और तुम्हारी कन्याका बड़ा ही भाग्य है, जो मथुराधीश्वर उसे अपनी महारानी बनाना चाहते हैं । कहो, तुम्हें भी यह बात सम्मत है न ? श्रीवन्दक बोला-हाँ मुझे महाराजकी बात स्वीकार है, पर एक शर्तके साथ । वह शर्त यह है कि महाराज बौद्धधर्म स्वीकार करें तो मैं इसका ब्याह महाराजके साथ कर सकता है। मन्त्रोने महाराजसे श्रीवन्दककी शर्त कह सुनाई । महाराजने उसे स्वीकार किया। सच है लोग कामके वश होकर धर्मपरिवर्तन तो क्या पर बड़े-बड़े अनर्थ भी कर बैठते हैं। आखिर महाराजका दरिद्राके साथ ब्याह हो गया। दरिदा मुनिराजके भविष्य कथनानुसार पट्टरानी हुई । दरिद्रा इस समय बुद्धदासीके नामसे प्रसिद्ध है । इसलिये आगे हम भी इसी नामसे उसका उल्लेख करेंगे । बुद्धदासी पट्टरानी बनकर बुद्धधर्मका प्रचार बढ़ाने में सदा तत्पर रहने लगी। सच है, जिनधर्म संसारमें सुखका देनेवाला और पुण्यप्राप्तिका खजाना है, पर उसे प्राप्त कर पाते हैं भाग्यशाली हो । बेचारी अभागिनी बुद्धदासीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
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