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वज्रकुमारको कथा
भाग्यमें उसकी प्राप्ति कहाँ ?
अष्टका पर्व आया । उर्विला महारानीने सदाके नियमानुसार अबकी बार भी उत्सव करना आरम्भ किया । जब रथ निकालनेका दिन आया और रथ, छत्र, चँवर, वस्त्र, भूषण, पुष्पमाला आदिसे खूब सजाया गया, उसमें भगवान्की प्रतिमा विराजमान की जाकर वह निकाला जाने लगा, तब बुद्धदासीने राजासे यह कह कर, कि पहले मेरा रथ निकलेगा, उविला रानीका रथ रुकवा दिया । राजाने भी उसपर कुछ बाधा न देकर उसके कहनेको मान लिया । सच है
मोहान्धा नैव जानंति गोक्षीरार्कपयोन्तरम् ।
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-ब्रह्म नेमिदत्त
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अर्थात् मोहसे अन्धे हुए मनुष्य गायके दूधमें और आकड़े के दूधमें कुछ भी भेद नहीं समझते। बुद्धदासीके प्रेमने यही हालत पुतगंधराजाकी कर दी । उाको इससे बहुत कष्ट पहुँचा । उसने दुखी होकर प्रतिज्ञा कर ली कि जब पहले मेरा रथ निकलेगा तब ही मैं भोजन करूँगी । यह प्रतिज्ञा कर वह क्षत्रिया नामको गुहामें पहुँची । वहाँ योगिराज सोमदत्त और वज्रकुमार महामुनि रहा करते हैं । वह उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार कर बोली- हे जिनशासनरूप समुद्र के बढ़ानेवाले चन्द्रमाओं और हे मिथ्यात्वरूप अन्धकारके नष्ट करनेवाले सूर्य ! इस समय आप हो मेरे लिये शरण हैं । आप हो मेरा दुःख दूर कर सकते हैं । जैनधर्मपर इस समय बड़ा संकट उपस्थित है, उसे नष्ट कर उसको रक्षा कीजिये । मेरा रथ निकलने वाला था, पर उसे बुद्धदासोने महाराजसे कहकर रुकवा दिया है । आजकल वह महाराजकी बड़ो कृपापात्र है, इसलिये जैसा वह कहती है महाराज भी बिना विचारे वही कहते हैं । मैंने प्रतिज्ञा कर ली है कि सदाकी भाँति मेरा रथ पहले यदि निकलेगा तब ही मैं भोजन करूँगी । अब जैसा आप उचित समझें वह कीजिये । उर्विला अपनी बात कर रही थी कि इतनेमें वज्रकुमार तथा सोमदत्त मुनिकी वन्दना करनेको दिवाकरदेव आदि बहुत से विद्याधर आये । वज्रकुमार मुनिने उनसे कहाआप लोग समर्थ हैं और इस समय जैनधर्मपर कष्ट उपस्थित है । बुद्धदासीने महारानो उर्विलाका रथ रुकवा दिया है । सो आप जाकर जिस तरह बन सके इसका रथ निकलवाइये । वज्रकुमार मुनिको आज्ञानुसार सब विद्याधर लोग अपने-अपने विमानपर चढ़कर मथुरा आये । सच है जो धर्मात्मा होते हैं वे धर्म प्रभावनाके लिए स्वयं प्रयत्न करते हैं, तब उन्हें.
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