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निार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कार्य शब्द ! ५६ उसके पाँच अर्थ होते हैं—१. हिज्जल (जल बेंत-स्थल बेत) २. कदर (सफेद कत्था) ३. वंश (कुल) ४. महानिम्ब, और ५. क्रियाक्षम (क्रिया करने में समथ)। इस तरह कार्तिक शब्द के तीन और कार्मण शब्द के तीन एवं कामुक शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिये। मूल : कार्य प्रयोजने हेतौ विवादे प्रत्ययादिषु ।
उन्मत्ते क्षपणेऽनर्थकरे कार्यपुट: पुमान् ॥ ३१६ ॥ हिन्दी टोका-कार्य शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं -१. प्रयोजन (उद्देश्य) २. हेतु (कारण) ३. विवाद, ४. प्रत्ययादि (व्याकरणशास्त्रप्रसिद्ध सुतिङ वगैरह प्रत्यय) आदि शब्द से आगम वगैरह समझना चाहिये । कार्यपुट शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. उन्मत्त (पागल) २. क्षपण (संन्यासी) और ३. अनर्थकर (अनर्थजनक वस्तु) इस प्रकार कार्य शब्द के तीन और कार्यपुट शब्द के भी तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : कार्यः कचूर - लकुच-कृशता - सालपादपे ।
काषिकेषोडशपणे प्रोक्त: कार्षापणेऽस्त्रियाम् ॥ ३१७ ॥ कालः क्षणादिसमये कासम शनौ यमे ।
मृत्यौ राले महाकाले कोकिले रक्तचित्रके ॥ ३१८ ॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग कार्य शब्द के चार अर्थ होते हैं-१. कचूर (वनस्पति विशेष) २. लकुच (लोची) ३. कृशता (पतलापन) और ४. सालपादप (सांखु का वृक्ष) । कार्षापण शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसका १. षोडशपण (सोलह पैसा का बना हुआ सिक्का विशेष) कार्षिक अर्थ माना जाता है। काल शब्द पुल्लिग है और उसके नौ अर्थ होते हैं -१. क्षणादि समय (क्षण पल मिनट घण्टा वगैरह) २. कासमर्द (गुल्म विशेष-वेसवार छौंकने का साधन विशेष) ३. शनि, ४. यम (धर्मराज) ५. मृत्यु, ६. राल (धूप) ७. महाकाल, ८. कोकिल (कोयल) और ६. रक्तचित्र (लाल चित्र) । इस तरह कार्य शब्द के चार एवं कार्षापण शब्द का एक और काल शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिये। मूल: कृष्णवर्ण त्रिलिंगस्तु मत: कृष्णगुणान्विते ।
कालकण्ठोः महादेवे मयूर कलविङ्कयोः ॥ ३१६ ॥ पीतसारे खंजरीटे पुमान् दात्यूहपक्षिणि ।
कालंजरो योगिचक्रमेलके पर्वतान्तरे ॥ ३२० ॥ हिन्दी टोका -पुल्लिग काल शब्द का कृष्ण वर्ण (काला वर्ण) भी अर्थ होता है किन्तु कृष्ण गुणान्वित (काला वर्ण से युक्त) अर्थ में काल शब्द त्रिलिंग माना जाता है। कालकण्ठ शब्द पुल्लिग है
और उसके छह अर्थ होते हैं-१. महादेव, २. मयूर, ३. कलविंक (चकली, गौरैय्या) ४. पीतसार (वृक्ष विशेष) ५ खरीट (खञ्जन पक्षी) और ६. दात्यूह पक्षी (धूये से रंग वाला कौवा -कारकौवा)। काल
जर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १ योगि चक्र मेलक (योगियों का षट् चक्र मेलक ध्यान काल विशेष) और २. पर्वतान्तर (पर्वत विशेष) को भी कालजर कहते हैं । इस प्रकार कालकण्ठ के छह और कालंजर शब्द के दो अर्थ हुए।
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