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५८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-कार शब्द
वाद्यभेदे वथे देहे कर्मगीतप्रभेदयोः।
कायस्थे करणे हेतौ साधनेऽपि प्रयुज्यते ॥ ३१० ॥ हिन्दी टीका-कार शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं --१. वध (हिंसा) २. तुषाराद्रि (हिमालय) ३. निश्चय (निर्णय) ४. बलि. ५. यत्न, ६. पति, ७. यति (संन्यासी) और ८. क्रिया (क्रिया करना) । कारण शब्द नपुंसक है और उसके नौ अर्थ होते है --१. इन्द्रिय, २. वाद्यभेद (बाजा विशेष) ३. वध, ४. देह ५. कर्म (क्रिया) और ६. गीतप्रभेद (गीत विशेष) ७. कायस्थ करण (शरीर के अन्दर विद्यमान मन वगैरह करण) ८. हेतु (कारण) और ६. साधन। इस तरह कारण शब्द के नौ अर्थ जानना। मूल : कारा प्रसेवके दूत्यां पीडायां बन्धनालये ।
सुवर्णकारिकायां च बन्धनेऽपि स्त्रियां मता ॥ ३११ ॥ कारिका यातना वृद्धि शिल्पेषु नट योषिति ।
कृतौ विवरणश्लोके क्लीबं कर्मादिकारके ॥ ३१२ ॥ हिन्दी टोका-कारा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं -१. प्रसेवक (सेवा करने वाला) २. दूती, ३. पीड़ा (दुःख कष्ट वगैरह) ४. बन्धनालय (जेल खाना) ५. सुवर्णकारिका (सोना बनाने वाली) और ६. बन्धन (बाँधना)। इस तरह कारा शब्द के छह अर्थ जानना। कारिका शब्द भी स्त्रीलिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं- १. यातना (वेदना, अत्यन्त दुःख) २. वृद्धि, ३. शिल्प (कला-हुनर) ४. नट योषित (नटभार्या-नटी) ५. कृति (यत्न) ६. विवरण श्लोक (अनुवाद पद्य) किन्तु ७. कर्मादिकारक (कर्ता कर्म करण वगैरह कारक) अर्थ में पुल्लिग ही माना जाता है । इस तरह कारिका शब्द के सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : कारुजो गैरिके शिल्पि चित्रे वल्मीक फेनयोः ।
स्वयंजाततिले नागकेशरे करभे पुमान् ॥ ३१३ ॥ कार्तिक: कार्तिकेये स्याद् बाहुले हायनान्तरे । कार्मण मन्त्र - तन्त्रादियोजने मूलकर्मणि ॥ ३१४ ।। कर्मठे तु त्रिलिंगः स्यादथ स्यात् पुंसि कार्मुकः ।
हिज्जले कदरे वंशे महानिम्बे क्रियाक्षमे ॥ ३१५ ।। हिन्दी टोका-कारुज शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं -१. गैरिक (गैरिक धातु) २. शिल्पी चित्र (शिल्पि का चित्र) ३. वल्मीक (दीमक) ४. फेन, ५. स्वयंजात तिल (स्वयम् वन में उत्पन्न तिल) ६. नागकेशर और ७. करभ (ऊँट के बच्चे को बाँधने का काष्ठ की बनी हुई बेड़ी पाद बन्धन)। इस तरह कारुज शब्द के सात अर्थ समझना। कार्तिक शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -- १. कार्तिकेय, २. बाहुल (कार्तिक मास) ३. हायनान्तर (वर्ष का मध्य)। कार्मण शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. मन्त्र तन्त्रादि योजन (मन्त्र-तन्त्रादि का प्रयोग टोना-टापर) और २. मूल कर्म, किन्तु ३. कर्मठ (कर्म निपुण) अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है। कामुक शब्द भी पुल्लिग है और
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