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४२ | नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - कुप, शब्द
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काकुद कहलाते हैं) २. प्राधान्य (मुख्य) ३. वृषभांग (बैल की पीठ पर ऊँचा गोलाकार मांसपिण्ड) और ४. शैला (पर्वत की चोटी) इसीलिए ककुद्मान् १. वृषभ (बैल) और २ शैल (पर्वत) तथा ३. ऋषऔषधि विशेष को भी कहते हैं ।
मूल :
ककुप् चम्पकमाला-दिक् प्रवेणी शास्त्रदीप्तिषु । ककुभो रागभेदेऽपि वीणाग्रेऽर्जुनपादपे ॥ २१६ ॥ कङ्कश्छद्द्मद्विजे कंसासुरभ्रातरि बाहुजे । लोहपृष्ठे महाराजचूते पुंसि युधिष्ठिरे ।। २२० ।।
हिन्दी टीका -- ककुप् शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. चम्पकमाला, २. दिक् (प्राची वगैरह दिशा ) ३. प्रवेणी (जटा ) ४. शास्त्र और ५. दीप्ति (तेज वगैरह ) ककुभ शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं १. रागभेद (गान राग विशेष) २. वीणाग्र ( वीणा का अग्र भाग ) और ३. अर्जुन पादप (धव वृक्ष विशेष, पाकर ) । कङ्क शब्द पुल्लिंग है और उसके छह अर्थ होते हैं १. छद्म द्विज (दाम्भिक ब्राह्मण ) २. कंसासुर भ्राता (कंस का भाई ) ३. वाहुज (क्षत्रिय) ४. लोहपृष्ठ (इस्पात ) ५. महाराजचूत (राजापुरी केरी, कच्चा आम ) और ६ युधिष्ठिर ।
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मूल :
कङ्कणं करभूषायां हस्तसूत्रेऽपि मण्डने ।
शेखरे चाथ किङ्कियां कङ्कणीत्युच्यते स्त्रियाम् ।। २२१ ॥
हिन्दी टीका - कङ्कण शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. करभूषा ( कंगन व लय वाला चूड़ी) २ हस्त सूत्र (नाड़ा) ३ मण्डन (भूषण) और ४. शेखर (शिरोभूषण) । किन्तु किङ्किणी ( नूपुर घुंघरू ) अर्थ में कङ्कणी शब्द का प्रयोग होता है । इस प्रकार कङ्कण शब्द के चार और कङ्कणी शब्द का एक ही अर्थ समझना चाहिये ।
मूल :
स्त्रियां कङ्कतिका नागवलायां केशमार्जने ।
कंकालः पुंसि देहास्थिपञ्जरे सद्भिरुच्यते ॥ २२२ ॥ कचः शुष्कव्रणे केशे बृहस्पतिसुते घने ।
कच्छो जलाशय प्रान्तदेशनौकाङ्गयोः पुमान् ॥ २२३ ॥
हिन्दी टोका कंकतिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ होते हैं - १. नागवला (गंगेरन ) और २ केशमार्जन (कंकही) । कंकाल शब्द पुल्लिंग है और उसका अर्थ- देहास्थिपञ्जर (अस्थिपञ्जर, हाड़का) है | कच शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १ शुष्कव्रण (सूखा हुआ घाव का चिन्ह ) २. केश (बाल) ३. बृहस्पतिसुत (वृहस्पति का पुत्र) और ४ घन (निविड अन्धकार, मेघ वगैरह ) कच्छ शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी दो हो अर्थ होते है १. जलाशय प्रान्त देश ( तालाब वगैरह का तट प्रान्त भाग) और २. नौकांग (नाव का एक अंग ) ।
मूल :
परिधानाञ्चले तुन्नवृक्षेऽनूपस्थलेऽपि च । कच्छपोमदिरायन्त्रविशेष निधिभेदयोः ॥ २२४ ॥ मल्लबन्धान्तरे कूर्मे नन्दीवृक्षे पुमान् स्मृतः। कच्छी भारती वीणा - कुर्मीकच्छपिकागद ॥ २२५ ॥
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