________________
मूल :
मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-ऐरावती शब्द । ४१ (वट वृक्ष विशेष) इस तरह एन्द्र शब्द के कुल मिलाकर १२ अर्थ होते हैं और ऐरावत शब्द के कुल मिलाकर सात अर्थ होते हैं ऐसा समझना वाहिए।
ऐरावत स्त्रियां विद्युद्विशेषे तडिति स्त्रियाम् । ओकमोको गृहे क्लीवमाश्रये यूकओकणिः ॥ २१३ ॥ ओघः पुंस्युपदेशे स्यात् समूहे जलवेगयोः ।
परम्परायां शीघ्रनृत्य - गीतवाद्येऽपि कीत्यते ।। २१४ ।। हिन्दी टीका-ऐरावत हथिनी को एवं विद्युद् विशेष तडित् को भी ऐरावती शब्द से व्यवहार करते हैं। नपुंसक ओक शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. गृह (घर) और २. आश्रय । पुल्लिग ओकणि शब्द का १. यूक (जौंक) अर्थ होता है जो कि विकृत पानी में रहने वाला जल जन्तु विशेष कहलाता है। ओघ शब्द पुल्लिग है और उसके आठ अर्थ होते हैं -१ उपदेश , २. समूह, ३. जलवेग, ४. परम्परा (बहुत दिनों से आती हुई परिपाटी) ५ शीव्र. ६. नृत्य, ७. गीत और ८. वाद्य (पखाउज) नाम के वाद्य विशेष को भी ओघ कहते हैं। इस प्रकार ऐरावती शब्द के और भी दो एवं ओक शब्द के दो और ओकणि शब्द के एक एवं ओघ शब्द के आठ अर्थ समझना चाहिए।
ओजः प्रकाशेऽवष्टम्भे बले दीप्तौ नपुंसकम् । ओड्रो देशविशेष स्याद् जपापुष्पतरौ पुमान् ॥ २१५ ॥ औशीरं चामरे दण्डे नपुंसकमुशीरजे ।
शयनासन औशीरः पुमान् चामरदण्डके ॥ २१६ ॥ हिन्दी टीका-ओजस शब्द सकारान्त नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. प्रकाश, २. अवष्टम्भ (रोकना) ३. बल (सामर्थ्य) और ४. दीप्ति (प्रकाश, ज्योति वगैरह)। ओड्र शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१ देश विशेष, और २ जपापुष्पतरु (बन्धुकफूल दोपहरिया फूल का वृक्ष)। उशीर (खस-खस से बना हआ शयन आसन । इस अर्थ में औशोर शब्द नपुंसक माना जाता है और चामर दण्ड को भी औशीर कहते हैं किन्तु विशेष्यनिघ्न होने से दण्ड शब्द पुल्लिग है इसलिए उसका विशेषणभूत औशीर शब्द भी पुल्लिग ही माना जाता है। इस तरह ओजः शब्द के चार एवं ओड़ शब्द के दो और औशोर शब्द के कुल मिलाकर चार अर्थ होते हैं।
कंसोऽस्त्रीतैजसद्रव्ये पान-भाजन - कांस्ययोः । परिमाण विशेषेऽथकंसः श्रीकृष्णमातुलो ।। २१७ ।। ककुदो राजचिन्हेऽस्त्री प्राधान्य वृषभाङ्गयोः ।
शैलानेऽथवृषे शैले ककुद्मानृषभौषधौ ॥ २१८ ॥ हिन्दी टीका-कंस शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. तैजस द्रव्य (कांसा) २. पान भाजन (प्याला) ३. कांस्य (पात्र विशेष गिलास) और ४. परिमाण-विशेष (केवल पुल्लिग कंस शब्द का श्रीकृष्ण भगवान का मातुल मामा) अर्थ होता है। ककुद शब्दं पुल्लिग तथा नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं ---१. राज-चिन्ह (राजा का चिन्ह विशेष जैसे सूर्यवंशी राजा रामचन्द्र
मूल :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org