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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-पल्लव शब्द | २१६ वेश्यापतौ मत्स्यभेदे पुमान् पल्लवको मतः।
विस्तृते पल्लवाये च त्रिषु पल्लवितः स्मृतः ॥१२३३॥ हिन्दी टीका-पल्लव शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. विटप (शाखा-डाल) २. नवपत्रादियुक्त शाखाग्रपर्व (नये पते वगैरह से युक्त डाल का अगला पोर) ३. अलक्तराग (अलता का रंग) ४. वलय (कंगण) एवं ५. चापल (चंचल)। पल्लवक शब्द पुल्लिग माना गया है और उसके दो अर्थ होते हैं-५. वेश्यापति (वेश्या का पति-भडुआ) और २. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष)। त्रिलिंग पल्लवित शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. विस्तृत (विस्तार) और २. पल्लवाढ्य (अधिक पल्लव) ।
पल्ली स्त्री गृहगोधायां कुटी-नगरभेदयोः । स्थाने ग्रामटिकायां च गृह ग्रामे कुटीचये ॥१२३४॥ आपाके प्रयते नीरे पावने पवनं मतम् ।
पवनो मारुते राजमाषे पावयितर्यपि ।।१२३५।। हिन्दी टीका-पल्ली शब्द स्त्रीलिंग है और उसके आठ अर्थ माने गये हैं - १. गृहगोधा (गिरगिट) २. कुटी ३. नगरभेद (नगरविशेष) ४. स्थान, ५. ग्रामटिका (छोटी बस्ती) ६ गृह (घर) ७. ग्राम तथा ८. कुटीचय (झोंपड़ी समुदाय) । नपुंसक पवन शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. आपाक (कुछ पका हुआ) २. प्रयत (पवित्र) ३. नीर (जल, पानो) और ४. पावन (पवित्रता) किन्तु पुल्लिग पवन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. मारुत (पवन, वायु) २. राजमाष और ३. पावयिता (पवित्र करने वाला) । इस तरह पवन शब्द के सात अर्थ जानना।
पवमानो गार्हपत्यवह्नि - मारुतयोः स्मृतः । पवितस्त्रिषु पूते स्यात् क्लीवन्तु मरिचे मतम् ॥१२३६॥ पवित्रं वर्षणे ताम्र कुशे पयसि घर्षणे ।
मधन्य?पकरणे घृत - यज्ञोपवीतयोः ॥१२३७॥ हिन्दी टीका-पवमान शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. गार्हपत्यपवह्नि (गार्हपत्य नाम का अग्नि विशेष) और २. मारुत (पवन)। १. पूत (पवित्र) अर्थ में पवित शब्द त्रिलिंग माना जाता है किन्तु २. मरिच (काली मरी-मरीच) अर्थ में पवित शब्द नपुंसक ही माना गया है। पवित्र शब्द नपुंसक है और उसके नौ अर्थ माने जाते हैं—१. वर्षण, २. ताम्र (तांबा) ३. कुश (दर्भ) ४. पयस (दूध या पानी) ५. घर्षण (घिसना) ६. मधु (शहद) ७. अर्घोपकरण (पूजा की सामग्री) ८. घृत (घी) और ६. यज्ञोपवीत (जनेऊ) । इस प्रकार पवित्र शब्द के नौ अर्थ जानना। मूल : पवित्रः प्रयते शुद्धद्रव्ये त्रिषु प्रकीर्तितः।
पुमांस्तु तिलवृक्षेऽसौ पुत्रजीवतरावपि ॥१२३८॥ पवित्रको दमनकेऽश्वत्थे कुश उदुम्बरे ।
पवित्रकन्तु जाले स्याच्छण सूत्रेऽपि कीर्तितम् ॥१२३६॥ हिन्दी टोका-१. प्रयत (शुचि) और २. शुद्धद्रव्य अर्थ में पवित्र शब्द त्रिलिंग माना जाता है
मूल :
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