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पश्चिमतीर्थकृत-पाण्डवपुराण
जैन पुराणकोश : २१९
निदान के कारण नन्दि सेठ का पुत्र हुआ। पूर्वभव का भाई मरकर देव हुआ था। उसके द्वारा सम्बोधे जाने से यह भी देव हो गया था। दोनों देव स्वर्ग से चयकर मन्दोदरी के इन्द्रजित् और मेघवाहन
नामक पुत्र हुए । पपु० ७८.६३-८० पश्चिमतीर्थकृत-अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर । मपु० १.२०१ पांचजन्य-(१) पंचमुखी शंख । यह लक्ष्मण को प्राप्त रत्नों में एक रत्न था । मपु० ६८.६७६-६७७
(२) कंस के यहाँ प्रकट हुआ एक शंख । इस शंख की मेध के समान गर्जना होती थी। कंस से ही यह शंख कृष्ण को प्राप्त हुआ था । यह उनके सात रत्नों में एक रत्न था। हपु० १.११२, ३५.
७२, ५३.४९-५०, पापु० २२.४ पांचाल-अर्जुन तथा द्रौपदी से उत्पन्न पाँच पुत्र । मपु० ७२.२१४ पांशुमूल-विजया दक्षिणश्रेणी का तियालीसवाँ नगर । हपु० २२.९९ पाक-सत्त्व-सिंह आदि दुष्ट जन्तु । मपु० ३३.५४ ।। पाटनमण्डल-विद्याधरों का स्वामी । यह राम का शार्दू लरथवाही योद्धा
था । पपु० ५८.३-७ पाटला–तीर्थङ्कर वासुपूज्य का चैत्यवृक्ष । पपु० २०.४८, हपु० ६०.
पाटलिग्राम-धातकीखण्ड द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित गन्धिल देश का
एक ग्राम । मपु० ६.१२७-१२८ पाटलिपुत्र-मगध का एक प्रसिद्ध नगर । तीर्थङ्कर धर्मनाथ की दीक्षा
के पश्चात् प्रथम पारणा यही हुई थी। राजा शिशुपाल और उसकी रानी पृथिवीसुन्दरी के पुत्र चतुर्मुख (प्रथम कल्की) का जन्म यहीं
हुआ था। मपु० ६१.४०, ७६.३९८ पाटलीग्राम-धातकीखण्ड महाद्वीप के विदेहक्षेत्र में स्थित गन्धिल देश
का एक ग्राम । यहाँ नागदत्त सेठ और सुमति रहते थे। उसके पाँच पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। छोटी पुत्री का नाम निर्नामा था। मपु०
६.१२७-१३० पाणिग्रहण-वैवाहिक क्रिया । विवाह-यज्ञ में करग्रहण के पश्चात् वर
और कन्या दोनों पति-पत्नी हो जाते हैं । मपु० ७.२४८-२४९, पपु०
६.५३ हपु० ४५.१४६ पाणिपात्र-कर पात्र में आहार ग्रहण करनेवाले निग्रन्थ मुनि । इस
वृत्ति का प्रवर्तन तीर्थकर वृषभदेव ने किया था। मपु० २०.८९,
पपु० ४.२१ पाण्ड्य-(१) भरतक्षेत्र में दक्षिण का एक देश । यहाँ के राजा को
भरतेश के सेनापति ने दण्डरत्न द्वारा अपने अधीन किया था। इस देश के लोगों के भुजदण्ड बलिष्ठ थे और उन्हें हाथियों से स्नेह था । युद्ध में वे धनुष और भाला शस्त्रों का अधिक प्रयोग करते थे। मपु० २९.८०, ९५
(२) एक पर्वत । भरतेश का सेनापति इस पर्वत को पारकर सेना के साथ आगे बढ़ा था । मपु० २९.८९ ।। पाण्डव-राजा पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव
पांच पुत्र । इनमें प्रथम तीन पाण्डु की रानी कुन्ती के तथा अन्तिम
दो उसकी दूसरी रानी माद्री से उत्पन्न हुए थे। राज्य के विषय को लेकर इनका कौरवों से विरोध हो गया था। द्वेषवश कौरवों ने इन्हें लाक्षागृह में जलाकर मारने का षड्यन्त्र किया था किन्तु ये माता कुन्ती सहित सुरंग से निकलकर बच गये थे। स्वयंवर में अर्जुन ने गाण्डीय धनुष को चढ़ाकर माकन्दी के राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी प्राप्त की थी । अर्जुन के गले में डालते समय माला के टूट जाने से उसके फूल वायु वेग से उसी पंक्ति में बैठे अर्जुन के अन्य भाइयों पर भी जा पड़े इसलिए चपल लोग यह कहने लगे थे कि द्रौपदी ने पांचों भाइयों को वरा है। हपु० ४५.२, ३७-३९,५६५७, १२१-१३०, १३८, पापु० १२.१६६-१६८, १५.११२-११५ जुए में कौरवों से हार जाने के कारण इन्हें बारह वर्ष का बन और एक वर्ष का अज्ञातवास करना पड़ा था। द्रौपदी का अपमान भी इन्हें सहना पड़ा। विराट नगर में इन्हें गुप्त वेष में रहना पड़ा, इसी नगर में भीम ने कीचक को मारा था। हपु० ४६.२-३६, पापु० १६.१२१-१४१, १७.२३०-२४४, २९५-२९६ अन्त में कृष्ण-जरासन्ध का युद्ध हुआ। इसमें पाण्डव कृष्ण के पक्ष में और कौरव जरासन्ध की ओर से लड़े थे। इस युद्ध में द्रोणाचार्य को धृष्टार्जुन ने, भीष्म और कर्ण को अर्जुन ने तथा दुर्योधन और उसके निन्यानवें भाइयों को भीम ने मारा था। कृष्ण ने जरासन्ध को मारा था। कृष्ण की इस विजय के साथ पाण्डवों को भी कौरवों पर पूर्ण विजय हो गयी । उन्हें उनका खोया राज्य वापस मिला । पापु० १९. २२१-२२४, २०.१६६-२३२, २९६ राज्य प्राप्त करने के पश्चात् नारद की प्रेरणा से विद्याधर पद्मनाभ द्वारा भेजा गया देव द्रौपदी को हरकर ले गया था। नारद ने ही द्रौपदी के हरे जाने का समाचार कृष्ण को दिया था। पश्चात् श्री स्वस्तिक देव को सिद्ध कर कृष्ण अमरकंकापुरी गये और वहाँ के राजा को पराजित कर द्रौपदी को ससम्मान ले आये थे। पापु० २१.५७-५८, ११३-१४१ इन्होंने पूर्व जन्म में निर्मल काम किये थे। युधिष्ठिर ने निर्मल चरित्र पाला था, सत्य-भाषण से उसे यश मिला था। भीम वैयावृत्ति तप के प्रभाव से अजेय और बलिष्ठ हुआ, पवित्र चारित्र के प्रभाव से अजुन धनुर्धारी वीर हुआ, पूर्व तप के फलस्वरूप नकुल और सहदेव उनके भाई हुए। पापु० २४.८५-९० अन्त में नेमि जिन से इन्होंने दीक्षा ली । तप करते समय ये शत्रुजय गिरि पर दुर्योधन के भानजे कुर्यधर द्वारा किये गये उपसर्ग-काल में ध्यानरत रहे। ज्ञान-दर्शनापयोग में रमते हुए अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करते हुए ये आत्मलीन रहे। इस कठिन तपश्चरण के फलस्वरूप युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन ने केवलज्ञान प्राप्त किया तथा वे मुक्ति को प्राप्त हए । अल्प कषाय शेष रह जाने से नकुल और सहदेव सर्वार्थसिद्धि स्वर्ग में अहमिन्द्र हए । वहाँ से च्युत होकर वे आगे मुक्त होंगे। कुन्ती, द्रौपदी, राजीमती और सुभद्रा आर्यिका के व्रत पालकर सोलहवें स्वर्ग में
उत्पन्न हुई थीं। पापु० २५.१२-१४, ५२-१४३ पाण्डवपुराण-आचार्य शुभचन्द्र द्वारा संस्कृत भाषा में लिखा गया
पुराण, अपरनाम "भारत" । पापु० १.२०, २५ इस पुराण की
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