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________________ दुलंध्यपुर-दृढरथा पर इसे अर्जुन ने छुड़ाया था। एक बार कपटपूर्वक इसने जुएँ में युधिष्ठिर का सब कुछ जीत लिया। इससे उन्हें बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ा। कृष्ण-जरासन्ध युद्ध में इसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ जिसमें इसे भाग जाना पड़ा था। इससे उसका वैर बढ़ा और पुनः युद्ध में आकर उसने युधिष्ठिर पर ही असि प्रहार किया। भीम बीच में आ गया और उसने इसका वध कर दिया । मरते समय भी इसके परिणाम शान्त नहीं हुए थे। अश्वत्थामा को युद्ध के लिए प्रेरित करके ही वह मरा था। मपु० ७२.२१५, पापु० १६.१०८१२५, १७.१०२-१०४, १४३, १९.१८८-१९०, २०.१६३-१६४, २८७-२९६ दुलंघयपुर-इन्द्र का एक नगर । इन्द्र ने नलकूबर को इसी नगर का ___ लोकपाल बनाया था। पपु० १२.७९ दुविमोचन-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का छत्तीसवाँ पुत्र। __ पापु० ८.१९७ दुष्टनिग्रह-राजा का एक कर्तव्य । दुष्टों को दण्ड देना राजा का कर्तव्य है। मपु० ४२.२०२ दुष्पवाहार-भोगोपभोग-परिमाणव्रत का एक अतिचार-अधपके और ___ अधिक पके आहार का ग्रहण करना । हपु० ५८.१८२ दुष्पूर-राजा पूरण का पुत्र । हपु० ४८.५१, दे० दुर्दर्श दुष्प्रणिधान-सामायिक-शिक्षाव्रत का एक अतिचार-सामायिक करते समय मन, वचन और काय की विषयों की ओर प्रवृत्ति । मपु० २१.२५, हपु० ५८.१८० दूत-सन्देशवाहक । राज्य संचालन में इनका बड़ा महत्त्व है। ये तीन प्रकार के होते हैं-निःसृष्टार्थ, मितार्थ और पत्रवाहक । मपु० ४३.२०२ दूरदर्शन--सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुय वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७६ दूर-भव्य-मिथ्यात्वी जीव । वीवच० १६.६४ दूषण-(१) खरदूषण का सेनापति । यह युद्ध में लक्ष्मण द्वारा मारा गया था। पपु० ४५.२९ । (२) राम का पक्षधर एक योद्धा । पपु० ५८.१५ (३) ज्ञानावरण और दर्शनावरण का आस्रव । यह प्रशस्त ज्ञानवाले को भी दोषी बतानेवाले के होता है । हपु० ५८.९२ दूण्यकुटो-कपड़े का तम्बू । भरतेश सैनिक प्रयाण में इसका उपयोग करते थे। मपु० ३७.१५३ दृढग्राही-एक राजा। इसने दीक्षित होकर तपस्या की और मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। मपु० ६५.६१-६३ दृढचर्या-दीक्षान्वय की सातवीं क्रिया-स्वमत के समस्त शास्त्रों के अध्ययन के पश्चात् अन्य मतों के ग्रन्थों अथवा अन्य विषयों का श्रवण करना । मपु० ३९.५१ वृढधर्म-एक आचार्य । ये सगर चक्रवर्ती के दीक्षागुरु थे । मपु० ९.९१, ४८१२८ दृढधर्मा-शान्तनु के पौत्र और राजा हदिक का द्वितीय पुत्र, कृतिधर्मा का अनुज । हपु० ४८.४२ जैन पुराणकोश : १६९ दृढनेमि-वसुदेव के बड़े भाई राजा समुद्रविजय का पुत्र । हपु० ४८.४३ दृढप्रहार्य-उज्जयिनी के राजा वृषभध्वज का चतुर योद्धा । उसकी स्त्री ___का नाम वप्रश्री और पुत्र का नाम वज्रमुष्टि था। मपु० ७१. २०९-२१० दृढबन्ध-पाण्डवों का पक्षधर एक राजा । हपु० ५०.१२६ बृढमित्र-(१) सुजन देश में हेमाभ नगर का एक राजा । इसकी रानी नलिना से हेमाभा नाम की पुत्री हुई थी । मपु० ७५.४२१ (२) सुजन देश में नगरशोभ नगर का राजा। मपु० ७५.४३८ वृढमुष्टि-(१) उज्जयिनी के राजा वृषभध्वज का एक योद्धा। हपु० ३३.१०३ (३) वसुदेव और मदनवेगा का पुत्र, विदूरथ और अनावृष्टि का अग्रज । हपु० ५०.११६ दृढरक्ष-उज्जयिनी के राजा प्रजापति के लोकपाल का पुत्र । मपु० ७५.१०३ वृढरथ-(१) विद्याधरों का स्वामी । यह राम का पक्षधर योद्धा था। पपु० ५८.४ (२) विद्याधर-वंश में उत्पन्न एक नृप । यह विद्याधर विद्युदृढ का पुत्र था । पपु० ५.४७, ५६ (३) तीर्थंकर शान्तिनाथ के पूर्वभव का जीव । पपु० २०.२१-२४ (४) भरतक्षेत्र के मलय देश में भद्रपुर नगर का स्वामी । इसके पुत्र तीर्थंकर शीतलनाथ थे । मपु० ५६.२४, २८.२९, पपु० २०.४६ . (५) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा धनरथ और रानी मनोरमा का पुत्र । पिता ने इसका विवाह सुमति नाम की कन्या से किया था, जिससे इनके वरसेन नाम का पुत्र हुआ था। राज्य से विमुख होकर अपने पिता ने साथ इसने दीक्षा धारण कर ली। आयु के अन्त में नभस्तिलक नामक पर्वत पर श्रेष्ठ संयम धारण करके एक महीने के प्रायोपगमन संन्यासपूर्वक शान्त परिणामों से शरीर छोड़कर यह अहमिन्द्र हुआ। मपु० ६३.१४२-१४८, ३०७-३११, ३३६-३३७, पापु० ५.५३-५७,९१-९८ (६) जम्बूद्वीप के मंगला देश में स्थित भद्रिलपुर नगर के राजा मेघरथ और रानी सुभद्रा का पुत्र । मपु० ७०.१८२-१८३, हपु० १८.११२ (७) राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का तेरासीवां पुत्र । पापु० ८.२०३ (८) तीर्थकर वृषभदेव के तीसरे गणधर । मपु० ४३.५४, हपु० १२.५५ (९) राजा बृहद्रथ का पुत्र और नरवर का पिता । हपु० १८. १७-१८ (१०) राजा नरवर का पुत्र और सुखरथ का पिता । हपु० १८. १८-१९ दृढरथा-कम्पिला नगरी के राजा द्रुपद की रानी, द्रौपदी की जननी । मपु०७२.१९८ २२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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