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________________ (ix) प्राणी कोश की रूपरेखा प्रस्तुत ग्रंथ में कीट-पतंग, पक्षी, रेंगने वाले जीव, मछली, जानवर आदि के नामों की कुल संख्या 570 है। उनको अकारादि अनुक्रम से संयोजित किया है, इसमें मूल शब्द प्राकृत भाषा के हैं । वे मोटे, गहरे टाइप में क्रमांक से अनुगत हैं। उनके सामने कोष्ठक में संस्कृत छाया दी गई है। जिस शब्द की छाया नहीं बनती यानि जो देशी शब्द हैं वे मूल शब्द ही कोष्ठक में दिये गये हैं । कोष्ठक के सामने उसके प्रमाण स्थल का निर्देश है । मूल प्राकृत शब्द के नीचे अंग्रेजी भाषा में प्रचलित संज्ञा है । अंग्रेजी शब्द के सामने हिन्दी के पर्याय तथा क्वचित् अन्यान्य भाषाओं के पर्याय भी दिए गए । 1 1 यह विवरण अनेक ग्रंथों से चयनित होने के कारण इसमें भाषा की एकरूपता नहीं है। फिर भी विषय की पूरी जानकारी हो सके, इसके लिए भाषा का यत्र-तत्र परिमार्जन भी किया है। डॉ. के. एन. दवे की पुस्तक Birds in Sanskrit Literature का इसमें काफी उपयोग किया गया है । 'जानवरों की दुनिया' नामक पुस्तक वर्तमान में अप्राप्त है। फिर भी हमें जो प्रति प्राप्त हुई, उसमें प्रकाशक और लेखक के नाम वाला पृष्ठ था । इसलिए ग्रंथ सूची में प्रकाशक और लेखक का नाम नहीं दिया गया । नहीं अंत में तीन परिशिष्ट दिए हैं- प्रथम परिशिष्ट में अकारादि क्रम से प्राकृत शब्द तथा उसका हिन्दी एवं अंग्रेजी दिया गया है। द्वितीय परिशिष्ट में मूल प्राकृत शब्द तथा द्वीन्द्रय आदि जाति दी गई हैं। तृतीय परिशिष्ट में संदर्भ ग्रंथसूची प्रस्तुत की गई है। आभार हमारे प्रेरणा-स्रोत परमाराध्य गणाधिपति श्री तुलसी का सतत मार्गदर्शन, अपूर्व वात्सल्य भाव, निरन्तर सान्निध्य ही इस कोश-ग्रंथ की निष्पत्ति में मूल आहार बना है। उनकी अद्भुत प्रेरणा- शक्ति न मिलती, तो शायद इतना दुरुह कार्य कभी संभव न होता । आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी 20 वीं शताब्दी के आगम- दिवाकर हैं। उनके प्रत्यक्ष निदेशन में यह कार्य संपादित करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । आचार्य श्री ने 50 वर्षों से अधिक समय से सतत आगम- शोध कार्य का उपक्रम चालू रखा है। उनकी यह दीर्घ तपस्या फलवती हो रही है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रायोजित आगम साहित्य प्रकाशन के अन्तर्गत प्रकाशित सारे शोध ग्रंथ इनके अन्तः दर्शन (intuition) के लेजर (Laser) किरणों की पैनी पहुंच के कारण समग्र विद्वज्जगत में प्रशंसनीय हुए हैं । प्रस्तुत ग्रंथ में भी यत्र-तत्र जो नए तथ्य सामने आए हैं, उनमें उनकी मनीषा का अकल्पनीय योग है । श्रद्धेय युवाचार्य श्री महाश्रमण जी की सतत प्रेरणा, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन ने मेरे मार्ग को प्रशस्त किया और गति प्रदान की / महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी का समय-समय पर सुझाव एवं मार्गदर्शन ने मेरे उत्साह को निरन्तर वृद्धिंगत रखा है। इस श्रमसाध्य कार्य में मुनिश्री महेन्द्र कुमार जी एवं डॉ. दीपिका कोठारी (सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. डी. एस. कोठारी की पौत्री), जो जैन विश्व भारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय में शोध - विद्वान के रूप में कार्यरत थीं, ने अपनी वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर मेरी अनेक समस्याओं को समाहित किया । मुनि श्री सुखलाल जी, मुनि श्री दुलहराज जी, मुनि श्री मोहजीत कुमार जी और मुनि श्री धनंजय कुमार जी का अनुभव एवं सुझाव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016052
Book TitleJain Agam Prani kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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