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देशी शब्दकोश
उल्हक-छोटा चूल्हा (पिनि ५४) । उल्हसिअ-उद्भट, तीव्र (दे ११११६) । उव-पक्षी-विशेष (अंवि पृ ६२) । उवअ-हाथी को पकड़ने के लिए बनाया गया गढा (पा ६००)। उवइक-दीमक (बृटी पृ १६६६) । उवइग-दीमक (निचू १ पृ६६) । उवइय--त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (जीव ११८८)। उवउज्ज-उपकार (दे १११०८)। उवएइआ-मद्य परोसने का पात्र (दे ११११८) ।' उवक- गढा, खातिका (बृटी पृ २२२) । उवकय---सज्जित (दे २११९)। उवकयय-सज्जित (दे ११११६ वृ) । उवकसिअ---१ सन्निहित, पास में पड़ा हुआ। २ परिसेवित। ३ सर्जित,
सृष्ट (दे १११३८)। उवक्खडाम-कोरडू, जो धान्य-कण पकाने पर भी नहीं पकता-'उवक्खडामं
णाम जहा चणयादीण उक्खडियाण जे ण सिझंति ते कंकडुया,
तं उवक्खडाम भण्णति' देखें-कंकडुय' (निचू ३ पृ ४८४) । उवग-१ योग्य-'उवगा नाम योग्याः' (सूचू १ पृ ४५) । २ गढा
(निचू ४ पृ ४८)। उवचिक-त्रीन्द्रिय जंतु-विशेष (अंवि पृ २६७) । उवचुल्ल-छोटा चूल्हा (निचू १ पृ ८२) । उवचल्लग-छोटा चूल्हा (निचू १ पृ ८२) । उवजंगल-दीर्घ (दे ११११६) । उट्टिअ-अनाथ, अशरण-'उवट्टितो अणाहो असरणेत्यर्थः'
(निचू १ पृ १२२) । उवतिग-दीमक-'संचारोवतिगादी, संजमे आयाऽहि विच्चुगादीया'
(बृभा ६३२२)। उवत्थवण-अस्तमन (वेला) (निचू १ पृ ८७) । उवदीव-द्वीपान्तर, अन्यद्वीप (दे १११०६) । उवयिय-त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष (जीवटी प ३२) । उवर-कक्ष, कोठरी, तलघर (निभा १७३) ।
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