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देशी शब्दकोश उवरिग-माल का निरीक्षण करने वाला अधिकारी--'सामि ! पेसेह उवरिगो
जो भंडं निरूवेइ' (उसुटी प ६५) । उवरिल्ल-ऊपर (पंक १४१) । उवरिल्लअ-मजबूत वस्त्र, मोटा कपड़ा-विरइओ उवरिल्लएण पासो,
णिबद्धो य कीलए' (कु पृ ५३)। उवरेग-व्यापाररहित-'तत्थ वरिसमेत्तं उवरेगं गओ' (उसुटी प ७६) । उवलभत्ता-कंगन (दे १११२०) । उवलयभग्गा -कंगन (दे १२१२०) । उवललय-मैथुन (दे १११७) । उवलुअ-लज्जायुक्त, लज्जालु (दे १११०७)। उवलेह-सन्तुष्ट-'तीसे महिलाए कप्पासमोल्लं दिन्नं, सा य उवलेद्दा'
(उशाटी प १६२) । उवसग्ग-मंद (दे ११११३)। उवसेर-रति-योग्य (दे १।१०४) । उवहत्थिय–समारचित, सज्जित (दे ११११६ व)। उवहा-मच्छ (निभा ४२२३ पा)। उवहावण-परिभव (ओटी प १३१) । उवाई-पोताकी' विद्या की प्रतिपक्षी विद्या (उसुटी प ७३) । उवातिय-खाद्य-विशेष (निचू ३ पृ ५२१) । उवारस-एक प्रकार का प्रावरण-'उवारसा कंबला खरडगपारिगादि
पावारगा' (निचू २ पृ ४००)। उवासणा-क्षीरकर्म, हजामत (बृभा २०६७)। उविअ-१ संस्कारित, परिकर्मित (ज्ञा १।१।२४) । २ शीघ्र (दे ११८६) । उन्वक्क–धौत, दूध में भिगोकर निकाला हुआ-'जह पुण ते चेव तिला
उसिणोदगधोयखीरउव्वक्का' (व्यभा ३ टी प ११०)। उव्वट-१ नीराग, रागरहित । २ गलित (दे २१२९ )। उठवी-नीवी, स्त्री के कटिवस्त्र की नाडी (दे १११५१ पा)। उव्वण्ण-उत्कण्ठित (व्यभा ७ टी प ६)। उव्वत्त-१ रागरहित । गलित (दे १११२६)। उव्वर–१ कक्ष, तलघर-'पुव्वखओ जो भूघरोव्वरो' (निचू १ पृ ६७)।
२ धान्य रखने का कोठा (बृभा ३२६६) । ३ घाम, ऊष्मा (दे ११८७)।
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