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भविष्य में मेरी सृजनशक्ति को उजागर करने में निमित्त बने तथा मेरे बाध्यात्मिक मार्ग को प्रशस्त करता रहे।
__ मैं महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा श्रीकनकप्रभाजी के प्रति प्रगत हूं जिनके हार्दिक स्नेह और वात्सल्य ने प्रेरणा का कार्य किया है। माशा करती हूं कि उनके आध्यात्मिक संरक्षण में समण श्रेणी उत्तरोत्तर प्रगति करती रहेगी।
____ मुनिश्री दुलहराजजो ने एकार्थक कोश के चयन तथा परिशिष्टों के निरीक्षण में अपना बहुमूल्य समय प्रदान कर मेरा मार्ग-दर्शन किया, इसके लिए मैं उनके प्रति जितना भी आभार व्यक्त करूं उतना थोड़ा है। यह उनके प्रोत्साहन और मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि यह गुरुतर कार्य इतने स्वल्प समय में सम्पन्न हो सका।
'अनेकान्त शोधपीठ' के निदेशक डॉ. टाटियाजी के सहयोग को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता, जिन्होंने समय समय पर नई प्रेरणाएं देकर तथा कोश का पुरोवचन लिखकर इसका गौरव वृद्धिंगत किया है।
मैं सम्पूर्ण समणी परिवार के हार्दिक सहयोग का स्मरण करती हुई अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव करती हूं, क्योंकि धर्मसंघ की मर्यादा के अनुसार कोई भी समणी या साध्वी अकेली कहीं जा नहीं सकती। इस कार्य के लिए मुझे जहां कहीं भी जाने की अपेक्षा महसूस हुई समणियों ने उदार हृदय से मेरा सहयोग किया।
अन्त में मैं उन समस्त साध्वियों, समणियों और मुमुक्ष बहिनों के सहयोग का स्मरण करती हूं जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस कार्य में अपने श्रम-बिन्दु अर्पित किये हैं
निर्देशिका १. साध्वी कनकधी
निशीथ २. , यशोधरा
व्यवहार ३. , अशोकश्री
आचारांग, दशाश्रुतस्कन्ध, पंचाशक,
सूर्यप्रशप्ति जिनप्रज्ञा
सूत्रकृतांग (प्रथम श्रुतस्कन्ध) ५. ,, कल्पलता
दशवकालिक ६. , विमलप्रज्ञा
आवश्यक (द्वितीय भाग), उत्तराध्ययन, नवीन कर्मग्रन्थ
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