________________
वृणोति
वेरति
वेरिय
वेला
बेलु
वेवित वेश्या
वेग
जन
२५६ : परिशिष्ट १ वृक्षसाला
(साहा) वेर वृणीते
(पृ १३८) वेर
(वृणीते) वृत्त
(स्थान) वेरति वृत्त
(चरण)
वेरमण वृद्धि
(वर्द्धन) वृन्त
(मुकुल) वेइज्जमाण (एइज्जमाण) वेइय
(सिग्ध) वेइय
(खद्ध) वेंटक
(अंगुलेयक) वेस्सासिय
(रयस्) वैगुण्य वेच्च
(पृ १३८) वैधता
(लज्जिय) वोगड वेढक
(हत्थभंडक) वोच्छिण्ण वेद
(बंभण)
वोण्ण
(छन्द) वोम वेद
(पाण) वोरमण वेदज्झाइ
(बंभण) वोस? वेदणा
(एजणा) वासट्टकाय वेदन
(अवन) वोसिरण वेदपारग
(बंभण) वोसिरति वेदित
(अपगत) वोसिरिय वेय
(जीवस्थिकाय) वोसिरे
(णाण) व्यक्तिकर वेयणा
(विण्णाण) व्यञ्जक (पृ १३८) व्यञ्जनाक्षर
व्यत्यय (आयास) व्यपलाप (कम्म) व्यवशमित (डिब) व्यवसायिनु
वृक्षसाला व्यवसायिन्
(पाव) (अबंभ) (तितिक्खा) (पृ १३८) (वेरति)
(अरि) (पृ १३८)
(णावा) (पृ १३८) (मैथुनिकी)
(थेज्ज) (पृ १३९) (वैगुण्य) (विट्ठ) (विट्ठ)
(कम्म) (मागासस्थिकाय)
(पाणवह) (पृ १३९)
(दंत) (विउस्सग) (पृ १३६) (वोसट्ठ)
(छड्डे) (पृ १३९) (पृ १३९) (पृ १३६) (पृ १३९) (आह्वान) .(क्षामित), (पृ १३९)
वेद
वेयण
वेर
बेर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org