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व्यवस्था - सउज्जव
व्यवस्था
व्यवस्था
व्यवहार
व्यवहार
व्यवहार
व्याकुल
व्याकोश
व्याख्या
व्याघात
व्यापन्न
व्यापार
व्यापृत
व्याप्त
व्याप्त
व्याप्त
व्याप्त
व्यावृत्त
व्याहृति
व्युत्सर्ग
व्यूत
व्रतमोक्ष
व्रतिन्
शंकित
शठ
शठ
शबल
शब्दित
शयन
शरीर
शरीरभृद्
शशिन्
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( जीत )
(धर्म)
( पृ १३६ )
(आदेश)
( कल्प)
( दुस्सह)
(फुल्ल)
(वर्द्धन)
( विक्षेप)
( पृ १३९ )
(योग)
( वावड)
(आस्पृष्ट)
(आपूरित)
( स्पृष्ट) (संकीर्ण )
( पृ १३६ )
( विकल्प )
( पृ १३९ )
(वेच्च)
( प्रतिगमन )
(अनगार )
( पृ १४० )
( खलुंक)
. (धूर्त)
( बकुश)
[ ( शापित )
(त्वग्वर्तन)
शांत
शापित
शास्त्र
शिक्षित
शिव
शीलहीन
शुक्ल
शुद्ध
शुभ
शुभवृद्धि
शृणोति
शेखरक
शोधि
शोभते
शोभन
शोभन
श्रद्दधाति
श्रमण
श्रेणि
श्रेयस्
श्रेष्ठ
श्लक्ष्ण
श्लाघा
श्लोक
श्वपच
अट्ठ
सइ
सइ
( बोंदि) संउक्केस
(जीव )
(चन्द्र)
सउज्जाय
सउज्जोव
परिशिष्ट १
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: २५७
( पृ १४० )
( पृ १४० )
( नन्दि )
( पृ १४० )
(कल्याण)
(क्षुद्र )
(लघुक)
(आदर्श)
(पुण्य)
( पृ १४० )
( पृ १४० )
(आमेलक)
( पृ १४० )
( प्रभाति )
( उदार)
(उदग्ग)
( प्रत्येति )
(अनगार)
(लता)
(कल्याण)
(वर)
( पृ १४० )
(श्लोक)
( पृ १४० )
( सौकरिक)
( पृ १४० )
(आभिणिबोहिय)
( मइ )
( पावय)
( सप्पम )
( सप्पभ )
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