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ग्रंथ परिचय
० जोड़-श्रीमज्जयाचार्य (तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य) द्वारा कृत यह ग्रंथ निशीथ के भावानुवाद जैसा है। यह राजस्थानी भाषा में पद्यबद्ध रचना है। इसमें उन्नीस ढालें (गीत) और कुछ दोहे हैं। कुल पद्य ४०१ हैं। प्रारंभ में श्रीमज्जयाचार्य ने चारों छेदसूत्रों को कोतवाल के समान बताते हुए उनमें निशीथ को सारभूत कहा है। क्योंकि इसमें दोषविशुद्धि के लिए नाना प्रकार के प्रायश्चित्तों का विधान है। निशीथ जोड़ का रचना स्थान-गोगुंदा (मोटा गांव)। रचनाकाल-वि. सं. १८८१ चैत्रमास का शुक्ल पक्ष । जयाचार्यकृत निशीथ की हुंडी भी है, जिसमें निशीथ का सारांश है। निशीथसूत्र की विशेष जानकारी हेतु देखें-'निसीहज्झयणं' ग्रंथ की भूमिका। ३. दशा (दशाश्रुतस्कंध)
प्रस्तुत आगम के दो नाम उपलब्ध हैं। नंदी' की सूची में इसका नाम 'दशा' और स्थानांग में इसका नाम 'आचारदशा' मिलता है। इसके दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'दशा' है। प्रतिपाद्य विषय की दृष्टि से इसका नाम 'आचारदशा' है।
इसके नि!हक चतुर्दशपूर्वी आचार्य भद्रबाहु हैं। इसका नि!हण प्रत्याख्यान पूर्व से किया गया है।
प्रथम दशा में साधु की जीवनचर्या को अव्यवस्थित और असमाहित करने वाले बीस असमाधि स्थान प्रज्ञप्त हैं यावत् दसवीं दशा में आजाति स्थान/निदानकरण का निरूपण है।
_ 'प्रस्तुत आगम की आठवीं दशा का पाठ संक्षिप्त है। इसमें तेणं कालेणं....'-इस पाठ से सूत्र का प्रारंभ और 'जाव भुज्जो भुज्जो उवदंसइ'-इस पाठ से सूत्र पूर्ण होता है। इस जाव पद के द्वारा पूरा पर्युषणाकल्प यहां संगृहीत है। हमने पर्युषणाकल्प को परिशिष्ट में दिया है। प्रस्तुत अध्ययन के पांच विभाग हैं१. महावीर चरित्र (१-१०७) । २. शेष तेईस तीर्थंकरों का चरित्र (१०८-१८१) । ३. गणधरावलि (१८२-१८५)। ४. स्थविरावलि (१८६-२२२)। ५. पर्युषणाकल्प (२२३-२८८).... नियुक्ति और चूर्णि के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रस्तुत अध्ययन का 'पर्युषणाकल्प' मूल था। महावीर चरित्र और स्थविरावलि ये दोनों देवर्द्धिगणी की वाचना के समय जुड़े।.....तेवीस तीर्थंकरों के विवरण की तथा स्थविरावलि की चूर्णि नहीं है। इससे स्पष्ट है कि ये दोनों चूर्णि की रचना के पश्चात् इसके साथ जोड़े गए। ...... पर्युषणाकल्प' अनेक कालखंडों में संकलित है। देवर्द्धिगणी की वाचना के उत्तरवर्ती संकलन को आगम की कोटि में रखना एक समस्या है।.... इस दृष्टि से हम पर्युषणाकल्प के समग्र रूप को आगम की कोटि में नहीं रख पाते। इसीलिए उसे दशाश्रुतस्कंध आगम के एक परिशिष्ट के रूप में रखा है।५ व्याख्या ग्रंथ ० नियुक्ति-'दशा' के प्रमुख शब्दों और विषयों की संक्षिप्त किन्तु मौलिक व्याख्या करने वाली यह नियुक्ति १४३ गाथाओं में निबद्ध है। सर्वप्रथम नियुक्तिकार ने दशा-कल्प-व्यवहार के नि!हणकर्ता चरम चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु की वन्दना करते हुए क्रीड़ा आदि दस आयुविपाकदशाओं का नामोल्लेख किया है और अध्ययनदशा के अंतर्गत ज्ञाता आदि छह अंग-अध्ययनों को महती दशा बताते हुए इस आचारदशा को छोटी दशा कहा है, जिसका निर्वृहण शिष्यों पर अनुग्रह करने के लिए किया गया है।
१. नंदी, सूत्र ७८ २. ठाणं १०/११५ ३. दशानि १ चू प२
४. नवसुत्ताणि, दसाओ ५. नवसुत्ताणि, भूमिका, पृ६०-६३ ६. दशानि १-६
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