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ग्रंथ परिचय
नियुक्ति में समागत तीसरी दशा का 'अनाशातना' नाम विमर्शनीय है क्योंकि इस दशा में तेतीस आशातनाएं प्रज्ञप्त हैं। 'आसादणाए सबलो भवति । एतेणाभिसंबंधेण आसादणज्झयणं पण्णत्तं'-चूर्णि (पत्र ११) की इस पंक्ति से भी स्थानांग (१०/११५) में निर्दिष्ट आशातना' नाम की पुष्टि होती है। नियुक्ति गाथा (८) में प्रयुक्त अणसादण शब्द मूलतः आसादण ही रहा हो, लिपिकाल में आ के स्थान पर अण लिखा या पढ़ा गया हो, बहुत संभव है।
चौथा, आठवां और दसवां-इन तीन अध्ययनों को छोड़कर शेष सात अध्ययनों के विषय समवायांग में भी तत्-तत् संख्या से संबद्ध समवाय में प्रज्ञप्त हैं।
नियुक्तिकार ने समाधि, स्थान, आसायणा (आसादना-आशातना), गणी, सम्पदा, चित्त, प्रतिमा आदि शब्दों की निक्षेपपरक संक्षिप्त व्याख्या की है। स्थान शब्द के पन्द्रह निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, अद्धा, ऊर्ध्व, उपरति, वसति, संयम, प्रग्रह, योध, अचल, गणना, संधना और भाव। चूर्णिकार ने इन पन्द्रह स्थान-निक्षेपों की विस्तृत व्याख्या की है। उत्तराध्ययन नियुक्ति में उत्तर शब्द के पन्द्रह निक्षेप किए गए हैं। आठवीं दशा पर्युषणाकल्प की नियुक्ति में कलह और उसके उपशमन के संदर्भ में दुरूतक, चण्डप्रद्योत और द्रमक के दृष्टांत ऐतिहासिक एवं मार्मिक हैं। साधना के क्षेत्र में जागरूक न रहने से जब चित्त कषायावेश से आविष्ट हो जाता है तो उससे होने वाली क्षति और दुर्गति के प्रसंग में मरुक, अत्वंकारी भट्टा, पांडुरा आर्या और आर्यमंगु के उदाहरण पठनीय हैं।
दसवीं दशा की नियुक्ति में जाति, आजाति और प्रत्याजाति का स्वरूप बताकर आजाति का हेतु बताते हुए अनाजाति के उपायों का निर्देश किया गया है। श्रमण की आजाति का हेतु निदान बताकर अनिदानता की श्रेष्ठता स्थापित कर अंत में भवपारगामिता के पांच उपायों की प्रज्ञप्ति दी गई है। ० चूर्णि-दशाश्रुतस्कंधसूत्र और नियुक्ति के आधार पर जिनदासगणिकृत यह चूर्णि प्राकृत प्रधान है, कहीं-कहीं संस्कृत शब्द एवं वाक्य भी प्रयुक्त हैं। यह चूर्णि सरल, सरस एवं अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों से समृद्ध है। जीवन की दस अवस्थाओं के प्रसंग में शरीर-इंद्रियविज्ञान संबंधी कुछ तथ्य उद्घाटित किए गए हैं। जीवन के दूसरे दशक में इन्द्रियविज्ञान मंद रहता है, तीसरे, चौथे और पांचवें दशक में काम, शक्ति और प्रज्ञान का विकास होता है। छठे दशक में बाहुबल और नेत्रज्योति क्षीण होने लगती है। शरीरबल के बिना अध्ययन की श्रद्धा पैदा नहीं होती। दृढ संहनन के बिना उत्साह जागृत नहीं होता। इस चूर्णि में पूर्वो के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य विकीर्ण हैं* आचार्य भद्रबाहु ने नौवें प्रत्याख्यान पूर्व से दशा-कल्प-व्यवहार का निर्दृहण किया। * नौवें पूर्व के असमाधिस्थान प्राभृत से असमाधिस्थान (दशा १) का तथा सदृश नाम वाले प्राभृतों से शेष अध्ययनों का नि!हण किया गया है। * छठे सत्यप्रवादपूर्व के अक्षरप्राभृत में आ उपसर्ग उपवर्णित है। * आठवें कर्मप्रवाद पूर्व में अष्टांग महानिमित्त प्रज्ञप्त है। वहां स्वर निमित्त के प्रसंग में आ उपसर्ग वर्णित है। * कर्मप्रवाद पूर्व में अष्टविध कर्म को मोह कहा गया है।
___ चूर्णि में अनेक स्थलों पर आगमों के पाठांश तथा संस्कृत एवं प्राकृत के श्लोक भी उद्धृत हैं। बानवे (९२) पत्रों में मुद्रित चूर्णि २२२५ श्लोक परिमाण है।
१. दशानि १० चू प ४, ५ २. उनि १ ३. दशानि ९२-१०० ४. वही, १०४-११२
५. दशानि १२९-१४३ ६. दशाचू प ३ ७. वही, प ३, ५, १२, ७१
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