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________________ ग्रंथ परिचय हैं। अनुयोग व्यवस्था में छेदसूत्रों को चरणकरणानुयोग के अंतर्गत रखा गया है (द्र श्रीआको १ अनुयोग)। नन्दी में इनकी गणना अंगबाह्य कालिकसूत्रों में की गई है (द्र श्रीआको १ अंगबाह्य) । इनका मुख्य विषय कल्प-अकल्प, विधि-निषेध और प्रायश्चित्त है (द्र प्रस्तुत कोश, छेदसूत्र)। २. निशीथ (आचार की पांचवीं चूला) यद्यपि छेदसूत्रों की गणना में निशीथ का स्थान चतुर्थ है, किन्तु हमने परिचय-क्रम में इसे प्रथम स्थान पर रखा है क्योंकि निशीथ आचारांग की पांचवीं चूला है। आचारचूला के साथ इसकी विषय संबद्धता भी है। निशीथ को आचारांग का छब्बीसवां अध्ययन कहा गया है। निशीथ को एक अध्ययन के रूप में मान्यता प्राप्त है, इसीलिए इसे निशीथाध्ययन भी कहा जाता है। इसके बीस उद्देशक हैं, जिनमें कुल १४१७ सूत्र हैं। उन्नीस उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान है और बीसवें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया है। इस उद्देशक का मुख्य विषय आरोपणा है। १. मासिक उद्घातिक २. मासिक अनुद्घातिक ३. चातुर्मासिक उद्घातिक ४. चातुर्मासिक अनुद्घातिक और ५. आरोपणा-इन पांच विकल्पों के आधार पर बीस उद्देशकों का विभाजन किया गया है। स्थानांग (५/१४८) में इन्हीं पांच विकल्पों को 'आचार-प्रकल्प' (निशीथ) कहा गया है। निशीथ का अर्थ है-अप्रकाश। यह सूत्र अपवादबहुल है, इसलिए इसका यत्र-तत्र प्रकाशन नहीं किया जाता। जिसकी बुद्धि परिपक्व होती है, वह परिणामक पाठक ही निशीथ पढ़ने का अधिकारी है। जो रहस्य को धारण नहीं कर सकता, जो अपरिणामी या अतिपरिणामी है, वह निशीथ पढ़ने का अधिकारी नहीं है। इस ग्रंथ का अक्षरपरिमाण ७६०२१, अनुष्टुप् श्लोकपरिमाण २३७५ है। व्याख्या ग्रंथ नियुक्ति-निशीथ का सबसे प्राचीन व्याख्या ग्रंथ नियुक्ति है। आचार की चौथी चूला के अंत में नियुक्तिकार ने प्रतिज्ञा की है कि इसके पश्चात् मैं पांचवीं चूला (निशीथ) की नियुक्ति करूंगा। चूर्णिकार ने नियुक्तिकार के रूप में भद्रबाहुस्वामी का उल्लेख किया है। इससे निशीथ नियुक्ति का अस्तित्व सहज सिद्ध होता है। ० भाष्य-दूसरा व्याख्या ग्रंथ भाष्य है। वर्तमान में नियुक्ति और भाष्य परस्पर एकमेक हो गए हैं। भाष्यकार संघदासगणी क्षमाश्रमण हैं, ऐसी संभावना की जाती है। प्राकृत भाषा में निबद्ध नियुक्ति-भाष्य की पद्य-संख्या ६७०३ है। भाषा, संस्कृति, इतिहास व मनोविज्ञान की दृष्टि से यह ग्रंथ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। ० चूर्णि- तीसरा व्याख्या ग्रंथ विशेष चूर्णि है। इसके कर्ता जिनदासगणी महत्तर हैं, जो प्रतिपाद्य विषय के साथ पारिपार्श्विक विषयों का संकलन-संग्रहण करने में बहुत दक्ष हैं। उन्होंने साधक के मानसिक आरोह-अवरोहों का सूक्ष्मता से विश्लेषण किया है। देश-काल संबंधी परिस्थितियों से प्रभावित हो कहीं-कहीं अपवादों की अतियों को भी प्रश्रय दिया है, किन्तु अंततोगत्वा दृढ़ मनोबली संयमी की निर्दोष जीवनचर्या को ही अग्रिम स्थान पर प्रतिष्ठित किया है। प्रस्तुत चूर्णि भारतीय सभ्यता, लोकसंस्कृति एवं इतिहास का आकर ग्रंथ है। इस गद्यमय व्याख्याग्रंथ का परिमाण २८००० श्लोक प्रमाण है। 0 सुबोधा व्याख्या-यह बीसवें उद्देशक की चूर्णि की व्याख्या है। इसके कर्ता श्रीचन्द्रसूरि हैं। १. निचू २ पृ४ २. निभा ६९, ४९५ चू ३. आनि ३६६ ४. निचू २ पृ ३०७ ५. बृभा, भाग-६ प्रस्तावना, पृ २२ ६. निभा ४६० चू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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